National Handloom Day 2022: मेरठ की इस चटाई पर जापानी होंगे ध्यानमग्न, इन खासियतों ने बढ़ाई डिमांड
राष्ट्रीय हथकरघा दिवस 2022 पर विशेष मेरठ में तैयार हो रही हैं आयुर्वेदिक मैट जापान से मांगे गए सैंपल। रबर और प्लास्टिक के विकल्प के रूप में औषधीय महत्व की घासों से तैयार मैट से बुनकरों को बड़ी संख्या में आर्डर मिलने की उम्मीद।

ओम बाजपेयी, मेरठ। National Handloom Day 2022 बदलती जीवन शैली में मैट का चलन आम हो चुका है। योग और प्राणायाम के लिए भी लोग इन्हें खूब प्रयोग करते हैं लेकिन रबर और प्लास्टिक के मैट शारीरिक संक्रमण का कारण भी बन सकते हैं।
शरीर के लिए भी सुरक्षित
मेरठ के मंगल पांडे नगर स्थित बुनकर सेवा केंद्र ने मूंज, डाब घास (कुश) और सूती धागों से विशेष किस्म की मैट तैयार की है। कुश में औषधीय गुण भी है, लिहाजा यह शरीर के लिए भी सुरक्षित है। इस विशिष्टता के चलते जापान से भी इस मैट की डिमांड आई है। इसके सैंपल तैयार किए जा रहे हैं। जापान से इसके आर्डर मिलने की उम्मीद है।
पांच लोगों की टीम ने किया तैयार
इस केंद्र पर पिछले एक माह से मूंज और डाब घास को सूतों के धागों के साथ पिरोकर हथकरघे पर समांजस्य बना कर बुनने का कार्य चल रहा है। तीन बुनकर और एक तकनीकी अधीक्षक समेत पांच लोगों की टीम ने इसे तैयार किया है। तीन साइज की मैट बनाई जा रही है। डेढ़ किलोग्राम की एक छोटी मैट में सूती धागों, मूंज और डाब घास का प्रयोग क्रमश: 250,750 और 500 ग्राम है। यही कारण है कि जापान से भी इसकी मांग आई है।
यह है इन घासों का महत्व
मूंज घास का प्रयोग ग्रामीण आंचल में आज भी छप्पर और रस्सी बनाने में होता है। ऐसी किवदंती है कि इससे बुनी हुई चारपाई पर सांप नहीं चढ़ते। डाब घास जिसे कुश भी कहते हैं सनातन धर्म में इसका बड़ा महत्व है। अथर्ववेद में इसे क्रोध शामक और अशुभ निवारक माना गया है। धार्मिक कृत्यों और श्राद्ध् कर्म में कुश का उपयोग होता है। कुश घास पठारी क्षेत्र में होती है। मूंज दलदलीय इलाकों में होती है। ऐसे में इनका प्रयोग बढ़ने से किसानों को भी अच्छी कीमत मिलेगी।
35 जिलों मे सेवाएं देता है बुनकर केंद्र
भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करने वाले मेरठ के बुनकर सेवा केंद्र का कार्य क्षेत्र प्रदेश के 35 जिलों में है। यह बुनकरों को तकनीकि और आर्थिक रूप से उन्नत बनाने की दिशा में कार्य करता है। मेरठ के लावड़, बागपत, मुरादाबाद, रामपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर आदि जिलों लगभग 50 हजार बुनकर इससे जुड़े हैं। केंद्र तकनीकी अधीक्षक वैभव त्रिपाठी ने बताया कि लावड़ में बड़े पैमाने पर सिर्फ मैट बनाने का कार्य होता है।
इनका कहना है
प्लास्टिक और रबर के मैट कई बार त्वचा के लिए इन्फेक्शन का कारक बनते हैं। खुजली और चकत्ते आदि के मामले सामने आते हैं। ऐसे में ऐसा मैट बनाने की दिशा में हम पिछले छह माह से प्रयासरत थे। इसकी घास में औषधीय गुण हैं इसलिए इसे आयुर्वेदिक योगा मैट का नाम दिया गया है। जापान के एक निर्यातक ने इस मैट के लिए सैंपल मांगे हैं। जिन्हें तैयार किया जा रहा है। इसे लोकप्रिय बनाने के लिए विभिन्न राष्ट्रीय स्तर की प्रदर्शनी में रखा जाएगा।
- ललता प्रसाद, उप निदेशक, बुनकर सेवा केंद्र
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