मेरठ स्टांप घोटाला: पांच साल में सरकारी खजाने को लगाई 4.54 करोड़ की चपत, अब खुली केस की परतें
मेरठ में स्टांप घोटाले में 2015-2020 के बीच 4.54 करोड़ रुपये के फर्जी स्टांप का उपयोग किया गया। 635 बैनामों में नकली स्टांप पाए गए। 2023 में घोटाला सामने आने पर जांच शुरू हुई जिसमें एडवोकेट विशाल वर्मा की भूमिका पाई गई। विधानसभा समिति ने 2015 तक की जांच का आदेश दिया। एआईजी निबंधन ने 4.54 करोड़ की स्टांप चोरी का मुकदमा दर्ज करने की जानकारी दी।

जागरण संवाददाता, मेरठ। मेरठ जनपद में स्टांप घोटाले में जुटे लोगों ने वर्ष 2015 से 2020 के बीच भी जमकर फर्जी स्टांप पेपर का उपयोग करके सरकारी खजाने को 4.54 करोड़ की चपत लगाई। 635 बैनामों में उन्होंने फर्जी स्टांप प्रयोग किए। वर्ष 2020 से 2023 के बीच तीन साल में साढ़े सात करोड़ रुपये के फर्जी स्टांप 999 बैनामों में प्रयोग किए गए थे।
वर्ष 2023 में मेरठ जनपद में स्टांप घोटाला सामने आया था। जांच हुई तो वर्ष 2020 से लेकर 2023 के बीच 999 बैनामे ऐसे मिले जिनमे साढ़े सात करोड़ रुपये के फर्जी स्टांप पेपर का प्रयोग किया गया। सरकारी खजाने को सीधे सीधे साढ़े करोड़ की चपत लगा दी गई।
जांच के बाद सामने आया कि उक्त सभी बैनामें एडवोकेट विशाल वर्मा ने लिखकर तैयार किए थे तथा उनका रजिस्ट्रेशन कराया। पुलिस ने उसे गिरफ्तार करके जेल भेज दिया। मामला विधानसबा की प्राक्कलन समिति के संज्ञान में आया तो समिति ने वर्ष 2020 से पहले भी इस घोटाले की आशंका जताते हुए वर्ष 2015 तक के बैनामों की जांच का आदेश दिया। यह जांच अब अंतिम चरण में है। अधिकांश बैनामों की जांच की जा चुकी है।
एआइजी निबंधन शर्मा नवीन कुमार एस ने बताया कि पांच वर्षों के बैनामों में प्रयोग किए गए भौतिक स्टांप पेपर का सत्यापन ट्रेजरी से कराया गया। जिसमें अभी तक 635 बैनामों में फर्जी स्टांप पेपर मिले हैं। इनकी राशि 4.54 करोड़ है।
इन सभी के विरुद्ध स्टांप चोरी का वाद दर्ज किया जा चुका है। उन्होंने बताया कि सत्यापन कार्य अंतिम चरण में हैं। अभी और भी मामले सामने आ सकते हैं। इस संबंध में प्राक्कलन समिति को भी रिपोर्ट भेजी गई है।
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