यूपी के इस शहर में हवा की गुणवत्ता सुधार पर 6 साल में खर्च हुए 154 करोड़, फिर भी नहीं सुधरी हालत
एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण के कारण मेरठ को पहली बार संतोष ट्राफी फुटबॉल मैच की मेजबानी गंवानी पड़ी। इससे शहर की छवि धूमिल हुई और वायु गुणवत्ता सु ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता,मेरठ। वायु गुणवत्ता सुधार की कवायदें एक बार फिर धरी की धरी रह गईंं। एनसीआर क्षेत्रों में बढ़ रहे प्रदूषण के कारण मेरठ को पहली बार मिली संतोष ट्राफी फुटबाल मैचों की मेजबानी छिन गई। इससे न केवल मेरठ की छवि धूमिल हुई है बल्कि वायु गुणवत्ता सुधार के दावों की हवा-हवाई तैयारी की पोल खुल गई है। बीते छह सालों में वायु गुणवत्ता सुधार के लिए पानी की तरह पैसा बहाया गया।
प्रदूषण से निपटले के लिए केंद्र और राज्य से 187 करोड़ रुपये नगर निगम को मिले। जिसके सापेक्ष 154 करोड़ खर्च भी हो गए। लेकिन प्रदूषण के स्तर में कोई सुधार नहीं आया। पानी छिड़काव के लिए एंटी स्माग गन और वाटर स्प्रिंकलर मशीनें खरीद ली गईं लेकिन प्राकृतिक रूप से हवा को शुद्ध करने के लिए शहर के अंदर ग्रीन बेल्ट विकसित करने में निगम नाकाम रहा।
शास्त्रीनगर तेजगढ़ी चौराहे से एल ब्लाक तिराहे तक की सड़क को छोड़ दें तो कहीं दूसरी ग्रीन बेल्ट छह सालों में विकसित नहीं की गई। बात यह हुई थी कि धूल का प्रकोप करने के लिए सड़क किनारे इंटरलाकिंग टाइल्स बिछाई जाएगी। वर्तमान में निर्माण कार्यों के लिए सड़कें खुदी पड़ी हैं। डिवाइडर किनारे धूल साफ करने की रोड स्वीपिंग मशीनें खुद धूल फांक रही हैं। हालात ये हैं कि प्रदूषण के चलते सांस, दमा, सीओपीडी और दिल के रोगी बढ़ गए हैं। मानसिक चिड़ाचिड़ापन भी बढ़ रहा है।
प्रदूषण बढ़ने की ये हैं वजह
- - कूड़ा जलने से निकलने वाले धुएं में हानिकारक रासायन होते हैं। जो वायु प्रदूषण बढ़ा रहें। प्लास्टिक, रबर और अन्य तरह का कचरा हर दिन शहर की सड़कों के किनारे जल रहा है।
- -कूड़ा जलने से कार्बन मोनो आक्साइड, कार्बन डाइ आक्साइड, फ्यूरान और सल्फर डाइ आक्साइड जैसी गैसों को उत्सर्जन बढ़ गया है। इसके अलावा पार्टिकुलेट मेटर भी हवा में बढ़ गए हैँ।
- -करीब एक लाख से ज्यादा घरों से डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन नहीं होता है। कूड़ा सड़क पर कई-कई दिन तक पड़ा रहता है। उसमें आग लगा दी जाती है।
- -शहर में 400 से ज्यादा धुलाई सेंटर हैं। जहां पर धुआं फेंकने वाले जनरेटर लगे हैं। औद्योगिक क्षेत्रों मेें भी चिमनियों और जनरेटरों का धुआं फैल रहा है। सड़क पर चलने वाले जुगाड़ वाहनों का भी धुआं है।
- -सड़क और नालाें का निर्माण कार्य बड़ी संख्या में चल रहा है। जहां देखिए वहीं सड़कें खुदी पड़ी हैं। इससे धूल उड़ रही है। वातावरण मेें धूल धुंध के रूप में छा रही है।
- -टीपीनगर, पिलोखड़ी रोड, बागपत रोड सहित अन्य मार्गों पर रेत, बालू, गिट्टी, मिट्टी सहित निर्माण सामग्री खुले मे बिना तिरपाल ढके रखी हुई है। हवा में इसका प्रदूषण है।
- -ग्रीन बेल्ट कम होने से शहर के अंदर की हवा को शुद्ध करने की प्राकृतिक क्षमता कम हो गई है।
प्रदूषण नियंत्रण के लिए ये उठाने थे कदम
- -वायु प्रदूषण रोकथाम के लिए जिला प्रशासन, नगर निगम, मेडा, आवास विकास परिषद, क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक संयुक्त निगरानी समिति बननी थी।
- -निगम को कूड़ा जलाने वालों, निर्माण सामग्री खुले मेें बिना ढके रखने वालों जुर्माना और एफआरआइ करानी थी।
- -निगम ने कूड़ा जलाने व सीएंडडी वेस्ट को लेकर आठ मामलों में जुर्माना और एक नामजद और दो अज्ञात एफआइआर कर जिम्मेदारी से इतिश्री कर ली।
- -निर्माण कार्यों वाले मार्गों व स्थलों पर धूल रोकने के लिए हर घंटे पानी का छिड़काव कराना जाना था। यह काम निगम, निर्माण एजेंसियों को करना था।
- -पानी छिड़काव के लिए निगम के पास एंटी स्माग गन, वाटर स्प्रिंकलर मशीनें हैं, लेकिन सड़क पर पानी की छिड़काव रोस्टर पर नहीं हो रहा है।
- -धुआं छोड़ते मियाद पूरी करने वाले डीजल वाहन, जुगाड़ वाहनों पर कार्रवाई की जानी थी। धुआं छोड़ते जनरेटर बंद कराए जाने थे।
छह साल में खर्च हुई इतनी धनराशि वर्षवार व्यय
| वर्ष | व्यय (करोड़) |
|---|---|
| 2020-21 | 6.92 |
| 2021-22 | 20.66 |
| 2022-23 | 23.12 |
| 2023-24 | 67.12 |
| 2024-25 | 35.12 |
| 2025-26 | 1.12 |
क्या बोले चिकित्सक?
-वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच रहा है। स्माग का प्रकोप शुरू हो चुका है। सांस के मरीजों की संख्या हर दिन बढ़ रही है। मरीजों में सांस लेने की दिक्कत//B के साथ आक्सीजन ड्राप हो रही है। इमरजेंसी में वेंटीलेटर सपोर्ट पर रखना पड़ रहा है। खांसी, निमोनिया, गले में खराश से लोग परेशान हैं। लोग आक्सीजन लेवल चेक कराएं। मरीजों मे 92 से कम और स्वच्छ व्यक्ति में 95 से कम आक्सीजन लेवल है तो तुरंत चिकित्सक को दिखाएं। प्रदूषण के चलते बीपी बढ़ने, हार्ट अटैक, दमा के अटैक पड़ रहे हैं।- डा. वीरोत्तम तोमर, वरिष्ठ सांस एवं छाती रोग विशेषज्ञ।

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