मेरठ बस कहने के लिए शहर है, रहने के लिए नहीं
जिस शहर का नगर निगम ऐसा हो, उस शहर का तो यही हश्र होना था। इस पर आश्यर्य क्यों? ...और पढ़ें

मेरठ (मुकेश कुमार)। कहते हैं कि बुद्धिजीवियों को सबसे बड़ी गाली हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि मुक्तिबोध ने दी है। उन्होंने गुस्से में लिखा था..मर गया देश और जीवित रहे तुम ! शुक्रवार को मेरठ भी कुछ ऐसे ही अपने गुस्से का इजहार कर रहा था। अभी सावन शुरू भी नहीं हुआ और एक बारिश में आधा शहर डूब गया। पानी को नालियों में बहना चाहिए था, लेकिन नालियों का पानी सड़कों और घरों में बहने लगा। उल्टी गंगा बहना इसी को कहते हैं। सुबह के 11 बजे तक शहर में त्राहि-त्राहि मच चुकी थी। पहले नगर निगम की आपराधिक लापरवाही की एक बानगी देखिए। कसेरूखेड़ा नाले में डिफेंस कालोनी की जल निकासी है। बारिश हुई, तो कालोनी में पानी भर गया, वहीं नाले का जल स्तर मुहाने तक पहुंच गया। अब से पहले ऐसी स्थिति में डिफेंस कालोनी के निकासी द्वार को बंद कर दिया जाता था ताकि कम से कम नाले का पानी कालोनी में न घुस पाए। इस बार ऐसा नहीं किया गया। नगर निगम शाम तक सोया रहा, जिससे नाले का पानी कालोनी में आ गया। ऐसा पहली बार हुआ। यह शहर का वो पॉश इलाका है, जहा जमीन के रेट सबसे ज्यादा हैं। डिफेंस कालोनी में पिछले 35 साल में ऐसा कभी नहीं हुआ था। तमाम घरों में पानी किचन तक पहुंच गया, गाड़िया डूब गईं, बंद हो गईं। करंट फैलने के डर से लोगों ने बिजली कट कर दी। पानी इतना ज्यादा था कि लोग घरों में कैद होकर रह गए। यही हाल वैशाली, फूलबाग कालोनी, देवलोक, मानसरोवर, देवपुरी आदि का भी थी। शहर के निचले इलाकों का क्या हाल हुआ होगा, आप अंदाजा लगा सकते हैं। गरमी से बेहाल शहर बारिश के लिए प्रार्थना कर रहा था, और जब बारिश हुई तो सबके हाथ-पाव फूल गए।
विडंबना देखिए, स्मार्ट सिटी के लिए चुने गए शहरों पर बात करने के लिए शनिवार को प्रधानमंत्री लखनऊ पहुंच रहे हैं। लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश का केंद्र मेरठ स्मार्ट सिटी तो दूर, रहने लायक भी नहीं रह गया है। यह हाल तब है जबकि नगर निगम ने इस साल भी नालों की सफाई के नाम पर पानी की तरह पैसा बहाया है। सफाई को लेकर बड़े-बड़े दावे किए गए थे, लेकिन एक ही बारिश में पोल खुल गई। यह था उनका बारिश प्रबंधन। जो एक बारिश नहीं संभाल सकते, वे कोई बड़ी आपदा आ जाए तो क्या संभालेंगे।
किसे मालूम नहीं कि ये बारिश के दिन हैं। नगर निगम यह शिकायत भी नहीं कर सकता कि उसे आगाह नहीं किया गया। सुबह 11 बजे तक नगर निगम को शहरभर से सूचनाएं मिलने लगी थी। दोपहर तक बूंदाबादी भी बंद हो चुकी थी। नगर निगम के पास देर शाम तक का समय था, लेकिन उसने कुछ नहीं किया। दोपहर बाद आला अफसर बाहर निकले, मगर पानी में नहीं उतरे। जहा-कहीं मशीनें भेजी गईं, वो भी काम न आईं। जलभराव पर आला अफसर पब्लिक को ज्ञान बाटकर चलते बने। काम न करने के कुतर्क, बहाने बनाने में उन्होंने पूरा ज्ञान उड़ेल दिया। यही विद्धता अगर समाधान में लगाया होता तो शहर की ऐसी दुर्गति नहीं होती। खैर, घटों बेकार चले गए। अंधेरा उतर आया और पब्लिक को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया।
निकम्मापन इससे ज्यादा हो नहीं सकता। जिस शहर का नगर निगम ऐसा हो, उस शहर का तो यही हश्र होना था। इस पर आश्यर्य क्यों?

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।