मेरठ को खिलाफत और असहयोग आंदोलन की प्रयोगशाला बनाने आए थे बापू
गांधीजी मेरठ को असहयोग आंदोलन और खिलाफत मूवमेंट की प्रयोगशाला बनाना चाहते थे। बापू मेरठ में तीन बार आए। 1920, 1929 और 1931 में।
मेरठ (रवि प्रकाश तिवारी)। बात 1920 की है। मुस्लिम लीग के तीन गढ़ों में मेरठ भी अहम स्थान रखता था लिहाजा यहां खिलाफत आंदोलन का खूब जोर था। उस वक्त लोगों में खिलाफत के के गुस्से को असहयोग आंदोलन से जोड़कर ताकत दोगुनी करने का सपना महात्मा गांधी ने बुना और मेरठ को इसकी प्रयोगशाला बनाया। एक सप्ताह का कार्यक्रम बुना गया जिसमें पहले खिलाफ आंदोलन को धार देने वाले अली बंधु (मौलाना शौकत अली और मोहम्मद अली) 14 जनवरी, 1920 को मेरठ पहुंचे और उनके सम्मान में खिलाफत कमेटी और सिटिजंस ऑफ मेरठ न सिर्फ सभाएं की बल्कि जुलूस आदि भी निकलवाए। कई सभाओं की अध्यक्षता तो कांग्रेस के बड़े नेता पं. सीताराम ने की। उसके बाद स्वयं गांधीजी भी पहुंचे।
मोटर कार से मेरठ पहुंचे
गांधीजी के 1920 के दौरे से जुड़े दस्तावेजों (तब की खुफिया पुलिस की रिपोर्ट, अखबारों की कटिंग, तमाम पुस्तकें) को पलटते हुए प्रो. केडी शर्मा बताते हैं कि गांधीजी 22 जनवरी की सुबह 9.30 बजे मोटर कार से मेरठ पहुंचे। देवनागरी स्कूल में उनका भव्य स्वागत हुआ और फिर एक जुलूस निकाला गया और सभाएं भी हुईं। आठ दिन के उन कार्यक्रमों ने राजनीतिक गलियारे में भी हलचल मचा दी। हिंदू-मुस्लिम एकता से अंग्रेजी हुकूमत भी परेशान हो गई थी।
हिंदुओं ने पहना था चांद सितारा, मुस्लिम तिलक लगाकर निकले
देवनागरी स्कूल में स्वागत के बाद एक भव्य जुलूस निकला गया। जुलूस में कई लोग मिश्र, अरब और तुर्की के परिधानों को पहनकर आगे-आगे चल रहे थे। कई घोड़ों-साइकिल पर सवार थे तो कई नंगे पांव ही आगे बढ़ रहे थे। खास बात यह थी कि इस जुलूस में शामिल हिंदुओं ने जहां चांद-सितारा का चिह्न् अपने पोशाक पर लगाया था वहीं मुस्लिमों ने पीला चंदन का तिलक लगाया हुआ था। वंदे मातरम के नारे लग रहे थे। यह जुलूस ऐसे ही कम्बोह गेट तक पहुंचा और फिर वहां जनसभा हुई। यहां गांधीजी का नागरिक सम्मान भी हुआ था। जुलूस में जो लाइनें बार-बार दोहरायीं जा रही थीं। वो हैं...
ब्रिटैनिया की अजमत फिर
देखना जहां ले
जिस दिन बुलंद होगा कौमी निशां हमारा।
ब्रिटैनिया के साइज सर पर कबूल होगा
हम होंगे, ऐश होगा और होमरूल होगा।
मुस्तफा कैसल में लंच और बर्फखाना में शाम की सभा
सभा के बाद दोपहर 12.30 बजे गांधीजी कैंट स्थित नवाब इस्माईल के मुस्तफा कैसल पहुंचे, जहां भोजन की व्यवस्था थी। नवाब जाने-माने वकील थे और उस वक्त कांग्रेस में थे। बाद में मुस्लिम लीग के हो गए। यहां से वे दोपहर 2.30 बजे सनातन धर्म के हॉल में गए जहां केवल महिलाओं के साथ उनकी बैठक थी। यहां उन्होंने सादा जीवन, उच्च विचार का संदेश दिया और विदेशी वस्त्र और आभूषण आदि से बचने की सलाह दी। इसके बाद गांधीजी तहसील, बुढ़ाना गेट होते हुए बर्फखाना पहुंचे। यहां एक विशाल जनसभा को खिलाफत आंदोलन और सिटिजंस ऑफ मेरठ के लोगों ने संबोधित किया। गांधीजी ने भी अपनी बात रखी। आज का जीमखाना और लेडिज पार्क मिलकर तब बर्फखाना कहलाता था। उस दिन की अंतिम मीटिंग मेरठ कालेज में थी, जहां गांधीजी ने छात्रों और शिक्षकों को संबोधित किया था।
1929 और 1931 में भी मेरठ आए थे गांधीजी
दूसरी बार गांधीजी का मेरठ आगमन 1929 में हुआ। वे इस बार सविनय अवज्ञा आंदोलन से पहले मेरठ में माहौल बनाने पहुंचे थे। वे इस दौरान मेरठ के जेल में बंद कैदियों से मिले। गांधीजी का अंतिम मेरठ दौरा 1931 का है। वे इस दौरान गांधी आश्रम में रुके, मेरठ में कई बैठकों और सभाओं के बाद असौड़ा के चौ. रघुवीर नारायण सिंह के आवास पर रुके और वहां भी जनसभा को संबोधित किया था। यहां से लौटने के बाद उन्होंने अपने समाचार पत्र नवजीवन में गांधी आश्रम की गतिविधियों और भावी योजनाओं के बारे में विस्तार से लिखा।
भाषण में बोले, सत्याग्रह से ही खिलाफत का हल निकलेगा
(22 जनवरी को मेरठ में दिए भाषण के मुख्य अंश)
मैं मुसलमान भाइयों से यह कहना चाहता हूं कि इस प्रश्न (खिलाफत) के समाधान के लिए सत्याग्रह से अधिक कारगर कोई और उपाय नहीं है। आप शरीर बल द्वारा खिलाफत के प्रश्न को कभी हल नहीं कर सकते, लेकिन अगर आप सत्याग्रह को अपना लें तो आप स्वयं देखेंगे कि सफलता की कितनी संभावनाएं हैं।
...भारत की गुलामी उसी दिन से शुरू हुई जिस दिन उसने अपनी देशी चीजों का उपयोग छोड़ दिया। ईस्ट इंडिया कंपनी का लक्ष्य कभी भी लोगों को जीतना न था। उनके उद्देश्य विशुद्ध रूप से व्यावसायिक थे, परंतु हम सब जाल में फंस गए।
...पाखंड और चिकनी-चुपड़ी बातें करने से सच्ची एकता प्राप्त नहीं हो सकती। आप दूसरों को तो धोखा दे सकते हैं, लेकिन ईश्वर को नहीं। यदि हिंदू लोग चिकनी-चुपड़ी बातें कहकर मुसलमानों को गोवध बंद कर लेने पर राजी करना चाहते हों या इसी तरह मुसलमान खिलाफत के सवाल पर हिंदुओं का सहयोग प्राप्त करने की सोचते हों तो बहुत संभव है कि उन्हें निराशा ही हाथ लगे। ये तो अस्थायी वस्तुएं हैं। जहां तक आप लोगों का अपना-अपना धर्म अनुमति दे वहां तक आपको एक-दूसरे के हित के लिए अपने प्राण भी न्यौछावर करने को तैयार रहना चाहिए।
(ट्रिब्यून: 12 फरवरी, 1920 में प्रकाशित)

मोटर कार से मेरठ पहुंचे
गांधीजी के 1920 के दौरे से जुड़े दस्तावेजों (तब की खुफिया पुलिस की रिपोर्ट, अखबारों की कटिंग, तमाम पुस्तकें) को पलटते हुए प्रो. केडी शर्मा बताते हैं कि गांधीजी 22 जनवरी की सुबह 9.30 बजे मोटर कार से मेरठ पहुंचे। देवनागरी स्कूल में उनका भव्य स्वागत हुआ और फिर एक जुलूस निकाला गया और सभाएं भी हुईं। आठ दिन के उन कार्यक्रमों ने राजनीतिक गलियारे में भी हलचल मचा दी। हिंदू-मुस्लिम एकता से अंग्रेजी हुकूमत भी परेशान हो गई थी।
हिंदुओं ने पहना था चांद सितारा, मुस्लिम तिलक लगाकर निकले
देवनागरी स्कूल में स्वागत के बाद एक भव्य जुलूस निकला गया। जुलूस में कई लोग मिश्र, अरब और तुर्की के परिधानों को पहनकर आगे-आगे चल रहे थे। कई घोड़ों-साइकिल पर सवार थे तो कई नंगे पांव ही आगे बढ़ रहे थे। खास बात यह थी कि इस जुलूस में शामिल हिंदुओं ने जहां चांद-सितारा का चिह्न् अपने पोशाक पर लगाया था वहीं मुस्लिमों ने पीला चंदन का तिलक लगाया हुआ था। वंदे मातरम के नारे लग रहे थे। यह जुलूस ऐसे ही कम्बोह गेट तक पहुंचा और फिर वहां जनसभा हुई। यहां गांधीजी का नागरिक सम्मान भी हुआ था। जुलूस में जो लाइनें बार-बार दोहरायीं जा रही थीं। वो हैं...
ब्रिटैनिया की अजमत फिर
देखना जहां ले
जिस दिन बुलंद होगा कौमी निशां हमारा।
ब्रिटैनिया के साइज सर पर कबूल होगा
हम होंगे, ऐश होगा और होमरूल होगा।

मुस्तफा कैसल में लंच और बर्फखाना में शाम की सभा
सभा के बाद दोपहर 12.30 बजे गांधीजी कैंट स्थित नवाब इस्माईल के मुस्तफा कैसल पहुंचे, जहां भोजन की व्यवस्था थी। नवाब जाने-माने वकील थे और उस वक्त कांग्रेस में थे। बाद में मुस्लिम लीग के हो गए। यहां से वे दोपहर 2.30 बजे सनातन धर्म के हॉल में गए जहां केवल महिलाओं के साथ उनकी बैठक थी। यहां उन्होंने सादा जीवन, उच्च विचार का संदेश दिया और विदेशी वस्त्र और आभूषण आदि से बचने की सलाह दी। इसके बाद गांधीजी तहसील, बुढ़ाना गेट होते हुए बर्फखाना पहुंचे। यहां एक विशाल जनसभा को खिलाफत आंदोलन और सिटिजंस ऑफ मेरठ के लोगों ने संबोधित किया। गांधीजी ने भी अपनी बात रखी। आज का जीमखाना और लेडिज पार्क मिलकर तब बर्फखाना कहलाता था। उस दिन की अंतिम मीटिंग मेरठ कालेज में थी, जहां गांधीजी ने छात्रों और शिक्षकों को संबोधित किया था।
1929 और 1931 में भी मेरठ आए थे गांधीजी
दूसरी बार गांधीजी का मेरठ आगमन 1929 में हुआ। वे इस बार सविनय अवज्ञा आंदोलन से पहले मेरठ में माहौल बनाने पहुंचे थे। वे इस दौरान मेरठ के जेल में बंद कैदियों से मिले। गांधीजी का अंतिम मेरठ दौरा 1931 का है। वे इस दौरान गांधी आश्रम में रुके, मेरठ में कई बैठकों और सभाओं के बाद असौड़ा के चौ. रघुवीर नारायण सिंह के आवास पर रुके और वहां भी जनसभा को संबोधित किया था। यहां से लौटने के बाद उन्होंने अपने समाचार पत्र नवजीवन में गांधी आश्रम की गतिविधियों और भावी योजनाओं के बारे में विस्तार से लिखा।
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भाषण में बोले, सत्याग्रह से ही खिलाफत का हल निकलेगा
(22 जनवरी को मेरठ में दिए भाषण के मुख्य अंश)
मैं मुसलमान भाइयों से यह कहना चाहता हूं कि इस प्रश्न (खिलाफत) के समाधान के लिए सत्याग्रह से अधिक कारगर कोई और उपाय नहीं है। आप शरीर बल द्वारा खिलाफत के प्रश्न को कभी हल नहीं कर सकते, लेकिन अगर आप सत्याग्रह को अपना लें तो आप स्वयं देखेंगे कि सफलता की कितनी संभावनाएं हैं।
...भारत की गुलामी उसी दिन से शुरू हुई जिस दिन उसने अपनी देशी चीजों का उपयोग छोड़ दिया। ईस्ट इंडिया कंपनी का लक्ष्य कभी भी लोगों को जीतना न था। उनके उद्देश्य विशुद्ध रूप से व्यावसायिक थे, परंतु हम सब जाल में फंस गए।
...पाखंड और चिकनी-चुपड़ी बातें करने से सच्ची एकता प्राप्त नहीं हो सकती। आप दूसरों को तो धोखा दे सकते हैं, लेकिन ईश्वर को नहीं। यदि हिंदू लोग चिकनी-चुपड़ी बातें कहकर मुसलमानों को गोवध बंद कर लेने पर राजी करना चाहते हों या इसी तरह मुसलमान खिलाफत के सवाल पर हिंदुओं का सहयोग प्राप्त करने की सोचते हों तो बहुत संभव है कि उन्हें निराशा ही हाथ लगे। ये तो अस्थायी वस्तुएं हैं। जहां तक आप लोगों का अपना-अपना धर्म अनुमति दे वहां तक आपको एक-दूसरे के हित के लिए अपने प्राण भी न्यौछावर करने को तैयार रहना चाहिए।
(ट्रिब्यून: 12 फरवरी, 1920 में प्रकाशित)
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