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    Famous Temple In Saharanpur : शिवालिक की पहाड़ियों पर सजता है माता शाकंभरी का दरबार, यह है धार्मिक मान्यता

    By Taruna TayalEdited By:
    Updated: Tue, 21 Jun 2022 08:43 AM (IST)

    सहारनपुर में शिवालिक की पहाड़ियों पर स्थित मां शाकंभरी देवी मंदिर आस्था का बड़ा केंद्र है। मां शाकंभरी को माता दुर्गा का अवतार कहा गया है दुर्गाशप्तशती में भी मां शाकंभरी की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। यह शक्तिपीठ देश भर के भक्तजनों को आकर्षित करती है।

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    शिवालिक पर्वत श्रृंखला की घाटी में स्थित सिद्धपीठ श्री शाकंभरी देवी का भव्य मंदिर।

    सहारनपुर, हरिओम शर्मा। पश्चिम उप्र के सहारनपुर जनपद में शिवालिक की पहाड़ियों पर स्थित मां शाकंभरी देवी मंदिर आस्था का बड़ा केंद्र है। मां शाकंभरी को माता दुर्गा का अवतार कहा गया है, दुर्गाशप्तशती में भी मां शाकंभरी की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। यह शक्तिपीठ देश भर के भक्तजनों को आकर्षित करती है। सहारनपुर जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर बेहट क्षेत्र में स्थित इस शक्तिपीठ को लेकर मान्यता है कि यहां से कोई मुराद खाली नहीं जाती।

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    यह है धार्मिक मान्यता

    मान्यता है कि प्राचीनकाल में भगवान ब्रह्मा से वरदान पाकर दुर्गम नामक राक्षस ने देवताओं तथा इंसानों को परेशान करना शुरू कर दिया। राक्षसों के अत्याचार से त्राहि-त्राहि मच गई। पृथ्वी पर घोर पाप होने के कारण अकाल पड़ गया। तब देवताओं ने माता शक्ति की घोर तपस्या की तो आदिशक्ति ने प्रसन्न होेकर देवताओं के संकट हरने का संकल्प लिया और प्रकट हुईं। आदिशक्ति ने युद्ध कर राक्षसों का संहार किया। अकाल के कारण वनस्पति भी पूरी तरह से समाप्त प्राय हो चुकी थी। तब माता ने पृथ्वी में तीर मारा तो जल धारा फूटी, जिसे अब सिद्धपीठ से कुछ दूरी पर स्थित बाण गंगा के नाम से जाना जाता है। उस समय पृथ्वी से निकली धार और माता के प्रताप से भारी वर्षा हुई। इससे पृथ्वी हरी-भरी हो गई। मार्कण्डेय पुराण में भी शाकंभरी सिद्धपीठ का उल्लेख आता है। वनस्पति के उगने से माता ने शाक से देवताओं की उदर पूर्ति की थी। इसलिए आदिशक्ति शाकंभरी के नाम से प्रसिद्ध हुई।

    छिन्नमस्ता देवी की भी बड़ी मान्यता

    माता के गर्भगृह से कुछ दूरी पर रक्तबीज दैत्य का संहार करने वाली माता रक्तदंतिका और दूसरी तरफ माता छिन्नमस्ता देवियों के मंदिर है। यहां भी माता शाकंभरी के दर्शन करने वाले श्रद्धालु भारी संख्या में पहुंचकर प्रसाद अर्पित करते हैं।

    मैया का सबसे ममतामयी अवतार

    मां शाकंभरी शक्तिपीठ स्थित जगदगुरू शंकराचार्य आश्रम के पीठाधीश्वर स्वामी सहजानंद कहते हैं कि शाकम्भरी देवी मां आदिशक्ति देवी दुर्गा का एक सौम्य अवतार हैं। इन्हे अष्टभुजा से भी दर्शाया गया है। मां शाकम्भरी ही रक्तदंतिका, छिन्नमस्तिका, भीमादेवी, भ्रामरी और श्री कनकदुर्गा है। देश में माता शाकंभरी के अनेक पीठ हैं। लेकिन शक्तिपीठ केवल एक ही है, जो सहारनपुर के पर्वतीय भाग में स्थित है। वैष्णो देवी से शुरू होने वाली नौ देवी यात्रा में मां चामुण्डा देवी, मां वज्रेश्वरी देवी, मां ज्वाला देवी, मां चिंतपूरणी देवी, मां नैना देवी, मां मनसा देवी, मां कालिका देवी, मां शाकम्भरी देवी सहारनपुर आदि शामिल हैं। नौ देवियों मे मां शाकम्भरी देवी का स्वरूप सबसे सौम्य और ममता से भरा है।

    गर्भगृह में यह मूर्तियां

    शिवालिक घाटी में प्रतिष्ठापित आदिशक्ति माता शाकंभरी के गर्भगृह में भगवान श्री गणेश के साथ माता शाकंभरी, भीमा देवी, भ्राभरी देवी तथा शताक्षी देवी की प्रतिमाएं स्थापित है। इस दरबार में पहुंचने वाले सभी भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है और भक्त परिवार हर प्रकार से सुखी व समृद्धशाली हो जाते हैं।

    भूरा देव मंदिर की भी मान्यता

    मंदिर के पूर्व में बाबा भूरा देव (भगवान भैरव) का मंदिर है। माता के दरबार से लगभग एक किमी पहले बाबा भैरवनाथ का मंदिर स्थित है। मान्यता है कि माता के दर्शन करने से पूर्व माता के सेनापति कहे जाने वाले बाबा भैरव के दर्शन किए जाते हैं। तभी इस सिद्धपीठ की यात्रा पूर्ण मानी जाती है।भगवान भैरव के दर्शन किए बगैर भक्तों के लिए शाकुंभरी देवी मंदिर के दर्शन अधूरे हैं।

    यहां लगता है मेला

    साल में नवरात्रि, होली व अन्य मौकों पर मां शाकंभरी मेला लगता है। मेले में बड़ी संख्या में भक्त शामिल होते हैं। भक्त पहले भूरा देव मंदिर जाते हैं, इसके बाद शाकंभरी देवी के दर्शन करते हैं। नवरात्रि में यहां काफी भक्त उमड़ते हैं। आश्विन और चैत्र के नवरात्रों के समय मंदिर में बड़ी संख्या में तीर्थयात्री दर्शन करने के लिए आते हैं। प्रत्येक वर्ष पौष मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को माता शाकंभरी का प्राकट्य दिवस मनाया जाता है। स्वामी सहजानंद 56 भोग का निर्माण कराकर विराट धार्मिक आयोजन करते हैं।

    मंदिर का समय

    मंदिर सुबह पांच बजे से रात्रि 09:30 बजे तक भक्तों के लिए खुला रहता है, विशेष दिनों में मंदिर की समयावधि में बदलाव किया जाता है।

    उपयुक्त समय

    यहां पर आने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के महीने तक का है। इन दौरान यहां मौसम बहुत खुशनुमा होता है। अप्रैल से जून तक यहां गर्मी का मौसम होता है, हालांकि उत्तराखंड तथा हिमांचल के बार्डर पर स्थित होने के कारण अपेक्षाकृत गर्मी का प्रभाव कम होता है।

    ऐसे पहुंचे

    शाकंभरी मंदिर का निकटतम रेलवे स्टेशन सहारनपुर रेलवे स्टेशन है, जो यहां से लगभग 40 किलोमीटर दूर है। निकटतम हवाई अड्डा देहरादून का जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है, जो शाकुंभरी देवी मंदिर से लगभग 90 किलोमीटर दूर है। इसके अलावा गाजियाबाद, नोएडा से सीधी रोडवेज बस सेवा शाकंभरी देवी के लिए है। प्राइवेट बसें भी सीधी चलती हैं, जो सहारनपुर से मिल सकती हैं।

    यह मंदिर जसमौर पूर्व रिसासत के क्षेत्र में आता है। इसका प्रबंधन पीढ़ियों से पूर्व रिसासत जयमौर का राणा परिवार ही करता आया है। वर्तमान में भाजपा की पूर्व विधायक एवं राणा परिवार की अग्रज रानी देवलता और उनके पुत्र आदित्य प्रताप राणा, सानिध्य प्रताप राणा, आतुल्य प्रताप राणा करते हैं।