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    फीटल इको से जानें गर्भस्थ शिशु के दिल की सेहत, इन महिलाओं को ज्‍यादा खतरा

    By Taruna TayalEdited By:
    Updated: Wed, 13 Jul 2022 07:00 PM (IST)

    गर्भवती महिलाएं स्वयं भी ध्यान दें। अगर उनमें शुगर थायरायड हृदय रोग वायरल संक्रमण एवं दिमागी बीमारी की हिस्ट्री हो तो मेडिकल कालेज पहुंचकर गर्भ में पलने वाले बच्चे के दिल की जांच कराएं। फीटल इको से जानें गर्भस्थ शिशु के दिल की सेहत।

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    मां रोगी थी, गर्भ में बच्चा हृदय रोगी बन गया।

    मेरठ, संतोष शुक्ल। गर्भवती महिलाएं स्वयं भी ध्यान दें। अगर उनमें शुगर, थायरायड, हृदय रोग, वायरल संक्रमण एवं दिमागी बीमारी की हिस्ट्री हो तो मेडिकल कालेज पहुंचकर गर्भ में पलने वाले बच्चे के दिल की जांच कराएं। हाई रिस्क प्रेगनेंसी वाली महिलाओं के फीटल इकोकार्डियोग्राफी में पता चला कि गर्भ में कई शिशु हृदय रोगी हो चुके थे। समय रहते इलाज से कई शिशुओं की बीमारी ठीक कर ली गई।

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    अनुवांशिक बीमारी भी बड़ा खतरा

    मेडिकल कालेज के सुपरस्पेशियलिटी ब्लाक में पीडियाट्रिक कार्डियोलोजिस्ट डा. मुनेश तोमर ने बताया कि जिन महिलाओं में शुगर, बीपी, हार्ट, थायरायड, माता-पिता में अनुवांशिक बीमारियां एवं जटिल संक्रमण रहा है, उनके गर्भ में पल रहे बच्चे में हृदय रोग ज्यादा मिला। नार्मल अल्ट्रासाउंड की जगह गर्भस्थ शिशु के दिल की जांच के लिए फीटल इको कराना चाहिए। दिमागी बीमारी के इलाज, रेडिएशन एवं एल्कोहल लेने वाली महिलाओं में भी रिस्क मिला।

    धड़कन तेज थी दवा से ठीक कर दिया

    फीटल इको में कई गर्भस्थ शिशुओं के दिल की धड़कन तेज मिली। मां को दवा देकर बच्चे की धड़कन सामान्य कर ली गई। कई शिशुओं के दिल में छेद का पता चला, जिसकी बाद में सर्जरी कर ली जाती है। लेकिन अगर शिशु के दिल की बनावट में कमी है या दिल आधा ही बना है तो माता-पिता की सहमति से गर्भपात किया जा सकता है। कई शिशुओं के वाल्ब में खराबी मिली। चारों चेंबर विकसित नहीं थे।

    जानलेवा है बच्चों की हार्ट डिसीज

    पैदा होने वाले 1000 में आठ से दस बच्चों में हृदय रोग मिलता है। पैदाइश के दौरान मरने वाले बच्चों में 30 प्रतिशत में हृदय रोग कारण बना। 25 प्रतिशत बच्चों में हृदय की बीमारी का पता ही नहीं चल पाता है।

    क्या कहते हैं विशेषज्ञ...

    18 से 22 माह की हाई रिस्क प्रेगनेंसी वाली महिलाओं की फीटल इको जरूरी है। इससे गर्भ में पल रहे शिशु के दिल की सेहत का पता चलता है। विकार मिलने पर समय रहते इलाज हो सकता है। महिला के खानपान, दवा सेवन एवं वातावरण का भी असर पड़ता है। महिलाएं हरी सब्जियां एवं फूल ज्यादा खाएं। कई बच्चों के क्रोमोसोम एवं जीन में बदलाव से भी हार्ट डिसीज बन जाती है।

    - डा. मुनेश तोमर, पीडियाट्रिक कार्डियोलोजिस्ट, मेडिकल कालेज

    फीटल इको एक सरल और हानिरहित जांच है। इससे पता चल जाता है कि बच्चे के हृदय का विकास सही तरीके से हो रहा है या नहीं। टेस्ट टयूब बेबीज करने, ड्रग लेने और आटो इम्यून बीमारियों वाली महिलाओं के गर्भस्थ शिशु के हृदय पर ज्यादा रिस्क होता है। 12-13 सप्ताह के गर्भ की एनटी स्कैन भी जरूरी है।

    - डा. अमित उपाध्याय, बाल रोग विशेषज्ञ