Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    हिमालय से मैदानी क्षेत्र में पहुंच रहे खंजन पक्षी, हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखता है यह पक्षी

    By Taruna TayalEdited By:
    Updated: Tue, 15 Sep 2020 11:19 PM (IST)

    हिमालय में अठखेलियों के बाद मैदानी क्षेत्रों में प्रणय लीला के लिए खंजन पक्षी पहुंचने लगे है।

    हिमालय से मैदानी क्षेत्र में पहुंच रहे खंजन पक्षी, हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखता है यह पक्षी

    मुजफ्फरनगर, [दिलशाद सैफी]। हिमालय में अठखेलियों के बाद मैदानी क्षेत्रों में प्रणय लीला के लिए खंजन पक्षी पहुंचने लगे है। हिमालय की ऊंची चोटियों पर बर्फ पडऩे के कारण यह प्रजाति उत्तर एवं दक्षिणी मैदानी क्षेत्रों की ताल-तलैया में प्रवास करती है। चरथाचल के घिस्सूखेड़ा निवासी पर्यावरण विज्ञान के शोध छात्र आशीष कुमार आर्य ने बताया कि खंजन पक्षी भारत के मैदानी क्षेत्रों में पहुंच रहा है। देहरादून, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर के साथ हैदरपुर झील और वन्य जीव सेंचुरी में पहुंच गया है। खंजन की छह प्रजातियों में से तीन प्रजातियां माइग्रेटरी है, जो प्रतिवर्ष, लेह-लद्दाख, कश्मीर, कुल्लू-मनाली, नीति-माणा जैसे दुर्गम पर्वतीय स्थलों से निकलकर शीत काल में मैदानी क्षेत्रों में प्रवास करती है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    प्रवास पर पहुंचने वाला सबसे पहला पक्षी

    आशीष कुमार ने बताया कि हिमालय पर रहने वाले ऋषियों ने इसे खंजन का नामा दिया है। इसे ग्रे-वैगटेल या ग्रे-खंजन के नाम से भी जाना जाता है, जो अपनी लंबी दुम, सलेटी-पीठ, तथा पीले पेट के कारण आसानी पहचाना जा सकता है। हिमालयी खंजन उत्तर भारत के क्षेत्रों के साथ मुंबई व दक्षिणी पठार के अनेक क्षेत्रों तक पहुंच जाता है। खास है कि इसकी याददाश्त इतनी तीव्र होती है, यह जहां पहले प्रवास करता है। अगले पड़ाव पर शीत प्रवास उसके ही चुनता है।

    हिंदी साहित्य में लेखकों ने दिया स्थान

    हिंदी साहित्यकार मैथिलीशरण गुप्त ने अपने महाकाव्य साकेत में लिखा है कि स्वागत स्वागत शरद भाग्य से मैंने दर्शन पाये। जबकि संत तुलसी दास भी किङ्क्षष्कधा कांड में प्रकृति का वर्णन करते समय लिखते हैं कि जानि सरद रितु खंजन आए। पाइ समय जिमि सुकृत सुहाए। तुलसीदास इस तथ्य के वर्णन में कहते हैं कि शरद ऋतु में खंजन आए क्योंकि यह लंबी अवधि में किए गए हमारे पुण्यकर्मों का सुफल है।

    इन पक्षियों पर लिखा गया

    सुंदर पक्षियों का चित्रण संस्कृत साहित्यकारों ने खूब किया है। सूरदास ने भ्रमरगीत द्वारा, जायसी ने पद्मावत में, चंद्र चकोर का प्रेय, हंस की आकर्षक चाल, चकवा-चकई व तोता-मैना की कथा का मोहक वर्णन किया है। प्रवासी पक्षियों में सुरखाब के पंख को भी सुंदरता में लिखा गया है।