कल-कल बहने वाली काली बन गई काल, देश की सर्वाधिक प्रदूूषित नदी
दशकों से बजबजाती काली नदी का जहर सैकड़ों की जान ले चुका है। लोकसभा व विधानसभा तक गूंजने के बाद भी अब तक चुनावी मुद्दा नहीं बनी काली। ...और पढ़ें

मेरठ, [जागरण स्पेशल]। बात 70 के दशक की है। गंगा की सहायक नदी काली तब कल-कल बहा करती थी। इसके किनारों पर आस्था के दीप जगमगाते थे। आज वही काली नदी कैंसर जैसी बीमारी बांट रही है। कई लोगों की जान ले चुकी है। देश की सबसे प्रदूषित नदी का तमगा इसे मिल चुका है। सरकारें आईं और गईं, लेकिन सब इस नदी को मरते हुए देखते रहे। अब जाकर केंद्र सरकार से कुछ मदद मिली है। प्रश्न है कि क्या इस मदद से काली को पुराना स्वरूप वापस मिल सकेगा?
300 किमी का सफर और कराह उठी काली
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 70 के दशक में औद्योगिकीकरण ने गति पकड़ी। खेतों से अंधाधुंध पैदावार की स्पर्धा में बेहताशा कीटनाशकों एवं उर्वरकों का प्रयोग हुआ। नतीजा यह हुआ कि इस बेल्ट में न सिर्फ जलस्रोतों में जहर पहुंचा, बल्कि कीटनाशक बनाने वाले तमाम उद्योग भी पनप गए। अंतवाड़ा से निकलकर कन्नौज में गंगा नदी से मिलने के बीच 300 किमी सफर में काली नदी ईस्ट देश में सर्वाधिक प्रदूषित नदी बन गई। मुजफ्फरनगर व मेरठ की पेपर मिलों, चीनी मिलों, केमिकल इंडस्ट्री, स्पोट्र्स इंडस्ट्री, टेक्सटाइल्स व हजारों छोटी इकाइयों का कचरा काली नदी में सीधे गिराया गया। नदी में आक्सीजन खत्म होने से जलीय जीव गायब हुए। दर्जनों गांवों में कैंसर एवं पेट की असाध्य बीमारियां उभरीं। इधर, मेरठ के छह नालों से रोजाना करीब 500 एमएलडी प्रदूषित कचरा इस नदी में फेंका गया। एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) नहीं लगाया गया। जो लगे थे, उन्हें बिजली का बिल बचाने के लिए बंद किया गया।
देश में सर्वाधिक प्रदूषित नदी
केंद्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक काली नदी में लेड, क्रोमियम, कैडमियम, पारा, मालिब्डेनम, कापर, जिंक, आयरन, आर्सेनिक एवं फ्लोरायड की मात्रा बेहद ज्यादा है। कमेलों के कचरे एवं सीवेज से फीकल कोलीफार्म बैक्टीरिया की मात्रा तीन लाख प्रति एमएलपी प्रति 100 एमएल तक दर्ज हुई, जो देश की किसी भी नदी के प्रदूषण से ज्यादा है। मेरठ से रोजाना 500 मिलियन लीटर पर डे (एमएलडी) सीवेज काली नदी में गिरता है। पूर्व केंद्रीय मंत्री सोमपाल शास्त्री ने नदी की सफाई के लिए आंदोलन छेड़ा, किंतु यह चुनावी रंग नहीं ले सका।
गंगा के लिए सर्वाधिक घातक काली
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की नई रिपोर्ट के मुताबिक, गंगा नदी के 2500 किमी के सफर में काली नदी सर्वाधिक रासायनिक प्रदूषण उड़ेल रही है। इसमें बायोडिसाल्व्ड आक्सीजन (बीओडी) की मात्रा 68 मिलीग्राम प्रति लीटर मिली, जो मानक से 22 गुना है। दूसरे नंबर पर वाराणसी की वरुणा नदी है, जिसमें 46 मिलीग्राम प्रति लीटर का बीओडी लोड है।
काली में प्रदूषण के बड़े स्रोत
नाला रोजाना गिरने वाला कचरा
- आबू नाला- 1 50 एमएलडी
- आबू नाला- 2 188 एमएलडी
- ओडियन- 140 एमएलडी
- छोइया नाला- 86 एमएलडी
- कादराबाद नाला- 95 एमएलडी
पांच गुना ज्यादा फैला कैंसर
काली नदी के किनारे स्थित गांवों में अजीब सी उदासी है। कई गांव ऐसे हैं, जहां एक ही परिवार में कई लोग कैंसर की गिरफ्त में हैं। एनजीटी में पेश की गई रिपोर्ट में भले ही भूजल को साफ बताया गया, किंतु निजी एजेंसियों की जांच में पानी में कैडमियम, लेड एवं क्रोमियम जैसे कैंसरकारक तत्व मिले हैं। भारत में प्रति एक लाख पर कैंसर के करीब 150 मरीज हैं, जो करीब 1.5 फीसद है, किंतु मेरठ के तीन गांवों की चार हजार आबादी पर अगर 20 मरीज मिले तो यह राष्ट्रीय मानक से पांच गुना ज्यादा है। कन्नौज से लेकर मुजफ्फरनगर के बीच काली नदी के आसपास 103 औद्योगिक इकाइयां हैं। सटे शहर जैसे खतौली, मेरठ, मोदीनगर, हापुड़, बुलंदशहर, कासगंज और कन्नौज से रोजाना 1,79,250 किलो लीटर सीवेज नदी में गिराया जा रहा है।
सफाई का भगवा टोटका
मेरठ-हापुड़ क्षेत्र के सांसद राजेंद्र अग्रवाल संसद में कई बार काली नदी के प्रदूषण का मसला उठा चुके हैं। किंतु केंद्र में भाजपा सरकार बनने के बाद इस बार अपेक्षा बढ़ गई। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डा. लक्ष्मीकांत बाजपेई एवं तत्कालीन महापौर हरिकांत अहलूवालिया ने काली नदी के तटों पर पहुंचकर सफाई का टोटका किया। दो दिन जेसीबी मशीन चली और भाजपाई गर्व भाव से इतरा उठे। मानो काली अब कंचन बन गई है। फिर मुहिम ऐसी ठंडी पड़ी कि भाजपाई काली का दर्द भी भूल गए। हालांकि चंद माह पहले नीर फाउंडेशन के रमन त्यागी ने प्रशासन के साथ मिलकर दो दिन तक लगातार सफाई अभियान चलाया। इसमें गांव वालों ने बड़ी संख्या में भागीदारी करते हुए स्पष्ट कर दिया कि वो नदी का कायाकल्प चाहते हैं।
इनका कहना है
काली नदी का मुद्दा कई बार लोकसभा में उठाया। नदी किनारे तमाम गांवों में कैंसर फैलने की रिपोर्ट का हवाला दिया गया। एनजीटी भी सख्त हुआ। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने नमामि गंगे में शामिल काली नदी ईस्ट की सफाई के लिए 600 करोड़ रुपये के बजट की स्वीकृति देकर बड़ी समस्या का निराकरण कर दिया है। दर्जनभर नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाए जाएंगे।
- राजेंद्र अग्रवाल, सांसद, मेरठ-हापुड़
एनजीटी के निर्देश पर काली नदी के किनारे के तमाम गांवों में चिकित्सा कैंप लगाए गए। हैंडपंप के जल नमूनों की जांच कराई गई। पानी से कैंसर फैलने के प्रमाण तो नहीं मिले हैं, किंतु यह बीमारी तमाम गांवों में जरूर है। आइआइटी रुड़की के वैज्ञानिक भी काली पर शोध कर चुके हैं।
- डा. राजकुमार, सीएमओ
काली नदी के किनारे स्थित तमाम गांवों से कैंसर के मरीज पहुंचते हैं। वैज्ञानिक रिपोर्ट के मुताबिक काली के पानी में लेड, पारा, क्रोमियम, आर्सेनिक, जिंक जैसे भारी तत्व कैंसर की वजह बन सकते हैं। एनसीआर-मेरठ में प्रति एक लाख में कैंसर मरीजों की संख्या 150 से ज्यादा दर्ज की गई है, जो देश में सबसे ज्यादा है।
- डा. अमित जैन, कैंसर रोग विशेषज्ञ, वेलेंटिस
काली के कहर से जिंदगी बेहाल
मुजफ्फरनगर: मोती जैसा पानी देने वाली काली नदी अब काल बन गई है। लोगों के साथ फसलों के लिए भी इसका पानी जहर बन गया है। नदी किनारे बसे गांवों में जिंदगी बेहाल हो गई है। नासूर बन गई समस्या पर सियासी दलों के साथ जनप्रतिनिधियों ने खामोशी साध रखी है। काली के कहर से लगभग 100 से ज्यादा गांवों में पीने लायक पानी नहीं बचा है। पानी में हानिकारक रसायनों की मात्रा बढऩे से बीमारियां पनप रही हैं। शहरी क्षेत्र में लगी औद्योगिक इकाइयों का दूषित जल धंधेड़ा-भंडूरा नाले के जरिए काली नदी में गिरता है। पानी में केमिकल, रंगीन रयासन बहने से नदी का अस्तित्व खत्म होने लगा है। सराकारी तंत्र ने करीब 58 गांवों के हैंडपंपों की जांच की थी, जिसमें चौंकाने वाले तथ्य सामने आए थे। हैंडपंपों का पानी पीने लायक नहीं है। हालात इस स्तर तक खराब हैं कि भू-जल में 200 फीट तक जल दूषित हो गया है। जल प्रदूषण के कारण पशुओं में बांझपन होने के साथ लोगों में कैंसर जैसी बीमारियों का प्रकोप बढ़ गया है। एक-एक गांव में जल प्रदूषण की चपेट में आकर 100 से अधिक लोग विभिन्न बीमारियों से जूझ रहे हैं। यदा-कदा जांच होती है, उसमें भी सरकारी तंत्र लापरवाही बरतता है। काली नदी के किनारे बसे गांवों के पानी में टीडीएस 856, आयरन 8.19, फ्लोराइड 1.51, लेड 2.15, अमोनिया 14.0, सल्फाइड 18.3, निकिल 1.46, सिल्वर 1.06 मिलीग्राम प्रति लीटर पाया गया है। डबल गांव के प्रधान नरेश कुमार बताते हैं कि काली नदी काल बन गई है। गांवों में कैंसर समेत गंभीर बीमारियों से कई लोगों की मौत हो चुकी है। नदी के पानी से डबल, किताब, रतनपुर, सरधन, दूधली, जीवना, मोरकुक्का, घासीपुरा, बहलना, बेगराजपुर, धंडेडा, भंडूरा समेत सैकड़ों गांवों में जिंदगी बेहाल हो गई है। नीर फाउंडेशन के कार्यकर्ता मोहन त्यागी बताते हैं कि जल प्रदूषण से निजात दिलाने के लिए सरकारी मशीनरी ने योजनाएं खूब बनाईं, लेकिन कार्य नहीं हो सका है।
कारखानों की भेंट चढ़ गई
देवबंद : गंगा की सहायक नदी के रूप में जानी जाने वाली काली नदी उत्तराखंड के कई दर्जन गांवों से निकलकर देवबंद के विभिन्न गांवों से होकर अपना आगे का रास्ता तय करती है। हालांकि देवबंद से गुजर रही काली नदी साल में अधिकांश समय सूखी रहती है।
नदी किनारे बसे गावों का पानी भी हुआ दूषित
कभी निर्मल रही यह नदी आज उद्योग-धंधों और कल कारखानों की भेंट चढ़ चुकी है। शुगर मिलों, पेपर मिलों और रासायनिक उद्योगों से निकलने वाले दूषित पानी ने इस नदी को अपने आगोश में ले लिया है और अब यह विभिन्न बीमारियां बांट रही है। केंद्रीय भू-जल बोर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार इस नदी के पानी में लेड, मैगनीज व लौह जैसे भारी तत्व व प्रतिबंधित कीटनाशक अत्याधिक मात्रा में घुल चुके हैं। इसका पानी वर्तमान में किसी भी प्रयोग लायक नहीं रहा है। आलम यह है कि इसके किनारे बसे गांवों का भूजल भी प्रदूषित हो चला है। इससे ग्रामीण कैंसर समेत विभिन्न बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। इसके पानी से सिंचाई होने के कारण भारी तत्व व कीटनाशक का प्रभाव फसलों पर भी पड़ रहा है।
क्या कहते हैं ग्रामीण
काली नदी के किनारे बसे उत्तराखंड सीमा और यूपी के गांवों के लोगों के मुताबिक पिछले 30 साल से इस नदी में पानी नहीं है। केवल बरसात के समय ही इसमें पानी बहता दिखता है। उत्तराखंड क्षेत्र के गंझेड़ी, जगदेई, इस्माईलपुर, भवनपुर, मायाहेड़ी, बचीटी, राजूपुर, रसूलपुर गांव के लोगों का कहना है कि इस नदी के संरक्षण के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिए।

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