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    मेरठ में जंगल के प्रति 12 गांवों की आस्था, पेड़ काटना तो दूर टहनी भी नहीं तोड़ते, झांडे वाली देवी देती हैं सजा

    By Jagran NewsEdited By: Abhishek Saxena
    Updated: Sun, 09 Jul 2023 09:02 AM (IST)

    Meerut News यहां चलता है जंगल का कानून पेड़ काटना तो दूर टहनी भी नहीं तोड़ी जाती 12 गांवों में फैली है बढ़ला कैथवाड़ी के जंगल और झांडे वाली देवी के प्रति आस्था। बिना सरकारी दखल के सुरक्षित है 45 बीघे का जंगल। पिछले सौ वर्षाें से पेड़ों की सुरक्षा कर रही हैं देवी मान्यता। वन विभाग करेगा गांव वालों के साथ संक्षरण।

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    यहां चलता है जंगल का कानून, पेड़ काटना तो दूर टहनी भी नहीं तोड़ी जाती

    मेरठ, डिजिटल डेस्क। गढ़ रोड पर काली नदी से चार किलोमीटर पश्चिम में बढ़ला कैथवाड़ी गांव का पुराना वन अपने आप में मिसाल है। केवल एक नहीं आसपास के 12 गांवों के लोगों की जंगल के प्रति आस्था पर्यावरण प्रेमियों को भी प्रेरणा देने वाली है। यहां जंगल में पेड़ काटना तो दूर सूखी टहनी भी तोड़ना वर्जित माना जाता है। वृक्षों के प्रति श्रद्धा की जड़ें कितनी गहरी हैं इसका अंदाजा इसी से होता है कि यहां का देवी मंदिर भी झांडे वाली देवी (स्थानीय भाषा में इसका अर्थ जंगल, झाड़ - झंखाड़ है) के नाम से प्रसिद्ध् है।

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    पेड़ काटने वाले को सजा देती हैं देवी

    बढ़ला कैथवाड़ी के जंगल के संबंद्ध् में लोक मान्यता है कि अगर किसी ने यहां पेड़ काटा तो उसके साथ अप्रिय घटना जैसे लकवा मारना (पक्षाघात), बीमारी, परिवार में जन हानि, आर्थिक नुकसान जैसी अनहोनी का सामना करना पड़ेगा। यहां के 12 वर्ष प्रधान रहे धर्मपाल 70 वर्ष ने बताया कि मेरे देखते देखते कई ऐसी घटनाएं हुई हैं जिन्होंने पेड़ों को क्षति पहुंचाई तो उनके साथ अनिष्ट हुआ।

    एक बार तीन सौ रुपये में बेचा था पेड़

    25 - 30 पुरानी बात है गांव के एक दबंग व्यक्ति ने विरोध के बावजूद अपने कुछ साथियों के साथ हरा भरा विशाल पेड़ कटवा कर तीन सौ रुपये में बेच दिया था। उनके पास 60 बीघे जमीन थी और भरा पूरा परिवार था। आज न जमीन है न ही गांव में उसके परिवार का कोई बचा है।

    टैबू कर रहा जंगल की रक्षा

    क्षेत्र के सामाजिक परिवेश का अध्ययन कर चुके मेरठ कालेज के समाजशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर अजीत सिंह ने बताया जब किसी समाज में किसी सामुदायिक उद्देश्य को लेकर कोई प्रतिबंध या निषेध प्रचलित होता है तो समाजशास्त्र में उसे टैबू कहते हैं। यहां जंगल का अस्तित्व इसीलिए बचा है चूंकि लोगों गहरा विश्वास है कि अगर पेड़ों को नुकसान हुआ तो उनके साथ अहित होगा। हर समाज की व्यवस्था में इस तरह के टैबू अलग-अलग उद्देश्यों को लेकर होते हैं। यह सरकारी कानून से अधिक कारगर होते हैं।

    12 गांवों को तोमरों का बहारे के नाम से जानते हैं

    समीप के छोटा हसनपुर गांव निवासी डा. जेएस तोमर मुजफ्फरनगर के एसएमडीटी गर्ल्स डिग्री कालेज के प्राचार्य हैं। बताया कि जंगल के आसपास बसे 12 गांवों को तोमरों का बहारे के नाम से जानते हैं। जंगल और झांडे वाली देवी के प्रति उक्त विश्वास पीढ़ियों से चला आ रहा है।

    एनएएस कालेज इतिहास विभाग के पूर्व डा. डीसी शर्मा ने बताया कि झांडे वाली देवी का स्वरूप दुर्गा का है। मूर्ति शिल्प काफी पुराना है। जंगल में तुंबे वाले बाबा की समाधि भी है। बाबा यहीं तपस्या करते थे। जिनकी प्रतिष्ठा रोग कष्ट हरने वाले संत की है। इन सब कारणों से क्षेत्र में जंगल के प्रति आस्था अडिग है।

    वन विभाग में दर्ज नहीं जंगल

    जंगल का वर्तमान में क्षेत्र 17 हजार वर्गमीटर में क्षेत्र में फैला है। जिसका कोई सरकारी रखरखाव नहीं है। बावजूद कई स्पाटों पर पेड़ों और झाड़ियों की सघनता इतनी ज्यादा हैं कि धरती पर सूर्य की किरणें भी नहीं पड़ती। पर्यावरण विद जीएस खोशारिया ने बताया कि कई पेड़ 100 वर्ष से अधिक पुराने हैं। यह प्राकृतिक रूप से विकसित जंगल है।

    डीएफओ राजेश कुमार ने बताया कि उन्होंने मौके की पड़ताल कराई है। बढ़ला कैथवाड़ी का जंगल वृक्षों और वनस्पतियों से समृद्ध् है। यह वन विभाग के दस्तावेजों में नहीं हैं। ग्रामीणों के सहयोग से इसके संरक्षण के लिए प्रयास किए जाएंगे।