वेदों में लिखा है ..पुत्र और पुत्री एक समान
वेदों में पुत्र और पुत्री को एक समान बताया गया है। दोनों का ही अर्थ नरक से तारने वाला होता है। ब्रह्मा ने जब सृष्टि की रचना की तब उन्होंने पुरुष की रचना की। जब उन्हें सृष्टि अपूर्ण लगी तब महादेव ने अपना अर्द्धनारीश्वर का रूप प्रकट किया। यह कहना है दिव्य ज्योति जागृति संस्थान दिल्ली शाखा की साध्वी लोकेशा भारती का।
मेरठ, जेएनएन। वेदों में पुत्र और पुत्री को एक समान बताया गया है। दोनों का ही अर्थ नरक से तारने वाला होता है। ब्रह्मा ने जब सृष्टि की रचना की तब उन्होंने पुरुष की रचना की। जब उन्हें सृष्टि अपूर्ण लगी तब महादेव ने अपना अर्द्धनारीश्वर का रूप प्रकट किया। यह कहना है दिव्य ज्योति जागृति संस्थान दिल्ली शाखा की साध्वी लोकेशा भारती का। जो चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में आयोजित कार्यशाला को संबोधित कर रहीं थीं।
शुक्रवार को आयोजित कार्यशाला में महिला दिवस के उपलक्ष्य में एक विशेष सत्र रखा गया। जिसमें साध्वी ने कन्या भ्रूण हत्या पर रोक और महिला शिक्षा के प्रसार पर जोर दिया। भारतीय समाज में महिला और पुरुषों के अनुपात में अंतर को एक वीडियो क्लिप के माध्यम से दिखाया। उन्होंने भारत की महान महिलाओं की चर्चा करते हुए कहा कि दुर्गा, सीता, अनुसूइया, कौशिकी आदि ने संसार में महान कीर्तिमान स्थापित किए। कार्यशाला के दूसरे सत्र में मेरठ कॉलेज के इतिहास विभाग के पूर्व प्रोफेसर डा. सुमंगल प्रकाश ने 1857 की क्रांति में भाग लेने वाले मेरठ के क्रांतिकारियों के विषय में बताया। जलियावाला बाग हत्याकांड के बाद चौ.रघुबीर नारायण सिंह के जीवन और उनके योगदान को बताया। जिनके विषय में गांधी जी ने अपने हरिजन अंक में लिखा था कि दलितोद्धार सीखना है तो चौ. रघुबीर नारायण सिंह से सीखें। जिन्होंने अपने मंदिर में दलितों को आने की अनुमति दे रखी थी। इतिहास विभाग की अध्यक्ष प्रो. एवी कौर ने महिलाओं के प्रति समाज का दृष्टिकोण बदलने पर जोर दिया। संचालन डा. शुचि ने किया। मौके पर छात्र- छात्राएं और शोधार्थी रहे।
निकाली गई रैली
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में इतिहास विभाग से कन्या भू्रण हत्या, जनजागरूकता रैली निकाली गई। परिसर में निकाली रैली में छात्राएं भी शामिल रहीं।
तब से मनाते हैं महिला दिवस
महिलाओं के सम्मान में विश्व में 08 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। यह एक मजदूर आंदोलन की उपज है। जिसका बीजारोपण वर्ष 1908 में न्यूयॉर्क में हुआ था। जहां फैक्ट्री में महिलाएं काम करती थीं। इन महिलाओं ने न्यूयॉर्क शहर में मार्च निकालकर नौकरी में कम घटों और बेहतर वेतन की माग की थी। 1909 में सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका ने इस दिन को महिला दिवस के रूप में मनाया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 1975 में इसे मान्यता दी। तब से आठ मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में पूरे विश्व में मनाया जाता है।
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