आपत्ति का तो मौका ही नहीं दिया और थमा दिए हाउस टैक्स के बढ़े हुए बिल...भवन स्वामियों के उड़े होश
मेरठ शहर में संपत्ति मालिकों को बिना नोटिस दिए गृहकर के बढ़े हुए बिल बांटे जा रहे हैं, जिससे वे परेशान हैं। निगम कार्यालय में स्वकर प्रपत्र भरने में असमर्थता के कारण कर जमा नहीं हो पा रहा है। नियमों का उल्लंघन हो रहा है, और व्यापार संघ ने आपत्ति दर्ज कराने के लिए समय देने की मांग की है। निगम का कहना है कि आपत्ति दर्ज कराने का मौका दिया जाएगा।

गृहकर के आपत्ति काउंटर पर भवन स्वामियों की भीड़। जागरण
जागरण संवाददाता, मेरठ। शहर के हजारों संपत्ति मालिकों को बिना पूर्व सूचना या उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम की धारा-213 के तहत अनिवार्य नोटिस दिए बिना गृहकर के बढ़े हुए बिल बांटे जा रहे हैं। भारी-भरकम बिल देख भवन स्वामियों के होश उड़े हैं। वे बिल लेकर निगम कार्यालय पहुंच रहे हैं तो उनको स्वकर प्रपत्र थमा दिया जाता है लेकिन जानकारी के अभाव में वे इस प्रपत्र को नहीं भर पा रहे हैं। बढ़े बिलों का समाधान न होने से भवन स्वामी गृहकर नहीं जमा कर पा रहे। इससे नगर निगम में कर अनुभाग के कैश कांउटर सूने पड़े हैं।
नगर निगम के अंतर्गत आवासीय एवं व्यवसायिक मिलाकर कुल चार लाख संपत्तियां हैं। इनमें 1.45 लाख नई संपत्तियों को कर के दायरे में लाना है। वित्तीय वर्ष 2025-26 में लगभग 25 हजार भवन स्वामियों को गृहकर के बिल बांटे गए हैं। वित्तीय वर्ष के सात महीने बाद निगम110 करोड़ के सापेक्ष सिर्फ 33 करोड़ रुपये वसूल पाया है। इसमें भी अकेले नौ करोड़ रुपये गृहकर आरएएफ वेदव्यासपुरी ने जमा किया है। जल कर, सीवर कर भी इसमें शामिल है।
धारा 213 का है उल्लंघन : नगर निगम अधिनियम की धारा 213 के अनुसार, संपत्ति कर निर्धारण में बदलाव से पहले संपत्ति मालिक को आपत्ति दर्ज कराने के लिए व्यक्तिगत नोटिस जारी करना चाहिए। भवन स्वामियों का आरोप है कि उन्हें जीआइएस सर्वे को आधार बनाकर मनमाने बिल भेजे गए लेकिन 213 का नोटिस देकर आपत्ति नहीं ली गई। पुराने और नए करों के बीच काफी अंतर है। संशोधन कराने पहुंच रहे भवन स्वामियों को कर निर्धारण अधिकारी, कर अधीक्षक, राजस्व निरीक्षक एक ही जवाब दे रहे हैं कि गृहकर के बिलों में बढ़ोत्तरी ज्योग्राफिकल इनफार्मेशन सिस्टम (जीआइएस) सर्वे के आधार पर हुई है।
संयुक्त व्यापार संघ के अध्यक्ष ने उठाए सवाल
सोमवार को संयुक्त व्यापार संघ के अध्यक्ष अजय गुप्ता ने मुख्य कर निर्धारण अधिकारी एसके गौतम से मिलकर कहा कि निगम धारा-213 के नोटिस जारी करने के बाद गृहकर बिल बांटे। आपत्ति दर्ज कराने व सुनवाई के लिए 30 दिन का समय मिले। कहा, पहले स्वकर फार्म के साथ बुकलेट दी जाती थी। बुकलेट में क्षेत्र का सर्किल रेट होता था। स्व मूल्यांकन के तरीके का उल्लेख होता था। इससे लोग खुद मूल्यांकन कर लेते थे। अब एक पन्ने का स्वकर प्रपत्र दिया जा रहा है, जिसे भरना काफी मुश्किल है।
समाधान के बिना जमा न करने की मजबूरी
मेरे भवन का गृहकर पिछले साल 1181 रुपये था, जो इस बार 5,186 रुपये कर दिया गया। नोटिस देकर नहीं बताया कि यह बढ़ोत्तरी किस आधार पर की गई है। नगर निगम कार्यालय गया तो मुख्य कर निर्धारण अधिकारी ने स्व मूल्याकंन का स्वकर प्रपत्र थमा दिया। इसकी गणना कैसे होगी, मुझे पता नहीं है। निगम में सुनवाई नहीं हो रही है। -संजीव कुमार, निवासी दशमेश नगर
देवपुरी में छह दुकानों को गृहकर बिल 18,845 रुपये मेरे नाम से भेजा है। चार दुकानें कई साल पहले बेच चुके हैं। उनकी सिर्फ दो दुकानें बची हैं। आपत्ति करने पर निगम अधिकारी यह कह रहे हैं कि जीआइएस सर्वे में छह दुकानें दिखाई गई हैं। अधिकारियों ने बिना 213 का नोटिस दिए गृहकर बिल भेजा है।-रमन कथूरिया, दुकानदार
धारा-213 के नोटिस जारी किए गए थे
जीआइएस सर्वे के बाद लगभग 40 प्रतिशत भवन स्वामियों को धारा-213 के नोटिस जारी किए थे। शेष भवन स्वामियों को भी जारी कर रहे हैं। आपत्ति दर्ज कराने का मौका सबको दिया जाएगा। इसके लिए निगम ने सार्वजनिक सूचना भी प्रकाशित की थी। जिन लोगों को बढ़े बिल पर आपत्ति है वह बिल के साथ आएं और आपत्ति दर्ज कराएं। यदि स्वकर प्रपत्र नहीं भर पा रहे तो निगम की टीम सभी जोनल कार्यालयों में स्वकर प्रपत्र भरवाने में मदद करेगी। -एसके गौतम, मुख्य कर निर्धारण अधिकारी नगर निगम

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