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    हिंदी दिवस 2022: प्रसिद्ध हित चौरासी काव्य रचना में मिलता है राधा और कृष्ण के अनन्य प्रेम का अलौकिक रंग

    कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर की रचनाओं ने कस्बे को नई पहचान दी तो यहीं पर जन्मे गोस्वामी हित हरिवंश ने राधा वल्लभ संप्रदाय के जरिए हिंदी साहित्य में कई रंग भरे। श्री कृष्ण-राधा भक्ति की नई धारा बहाते हुए साहित्य के पनघट पर भावों का दीप जलाया।

    By Taruna TayalEdited By: Updated: Wed, 14 Sep 2022 12:33 PM (IST)
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    हिंदी दिवस 2022: हित हरिवंश ने रसमार्ग से कराया काव्य का संगम।

    सहारनपुर, अश्वनी त्रिपाठी। देवबंद की उर्वरा धरा में हिंदी साहित्य की कई धाराएं फूटीं। कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर की रचनाओं ने कस्बे को नई पहचान दी, तो यहीं पर जन्मे गोस्वामी हित हरिवंश ने राधा वल्लभ संप्रदाय के जरिए हिंदी साहित्य में कई रंग भरे। श्री कृष्ण-राधा भक्ति की नई धारा बहाते हुए साहित्य के पनघट पर भावों का दीप जलाया।

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    कन्हैया मिश्र प्रभाकर के शब्दों में ‘देवबंद को गोस्वामी हित हरिवंश पर गर्व का अधिकार है, देश के धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठों पर उनके कारण देवबंद का नाम अंकित हुआ’। अपने अमर काव्य हित चौरासी में गोस्वामी हित हरिवंश ने राधा-कृष्ण के अनन्य प्रेम, नित्य विहार, रासलीला, भक्ति-भावना, प्रेम का सुरम्य वर्णन किया है। यह ग्रंथ राधावल्लभ संप्रदाय का मेरुदंड है, जिसमें राधा-कृष्ण की ब्रजलीला का वर्णन है, तो चौरासी स्फुटपदों का यह संग्रह हित हरिवंश के काव्य कौशल का प्रमाण भी है। सहारनपुर जिले के देवबंद कस्बे में ब्राह्मण परिवार में सन् 1502 में हित हरिवंश का जन्म हुआ। उनके गुरु के रूप में श्री राधाजी को स्वीकार किया जाता है। 16 वर्ष की आयु में हरिवंश का विवाह श्री रुकमणी देवी के साथ हुआ। स्थायी रूप से वृंदावन वास करने का निश्चय कर मनन-अध्ययन के बाद अपनी नूतन साधनापद्धति प्रवर्तित की। नए संप्रदाय का प्रवर्तन किया। साधना के इस मार्ग में प्रेमभाव ही प्रबल था। प्रेम को रस के रूप में अपनाने के कारण इस मार्ग को रस मार्ग कहा गया।

    हित हरिवंश की काव्य साधना

    गोस्वामी हित हरिवंश ने काव्य को अपने भाव प्रदर्शित करने जा माध्यम बनाया। गोस्वामी हित हरिवंश द्वारा रचित दो हिंदी ग्रंथ, दो संस्कृत ग्रंथ और दो गद्यपत्र उपलब्ध हैं। हिंदी ग्रंथों में हितचौरासी और स्फुटवाणी हैं। संस्कृत ग्रंथो में राधासुधानिधि तथा यमुनाष्टक हैं तथा विट्ठलदासजी को लिखे गए दो गद्य-पत्र हैं। यह सभी ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं। हित हरिवंश रचित चौरासी पदों के संग्रह का नाम ‘हितचौरासी’ है। यह काव्यरचना ही राधावल्लभ-सम्प्रदाय का मूल ग्रन्थ बनी। अपने काव्यसाधना के जरिए हित हरिवंश ने 84 पदों में प्रेमरस अलौकिक माधुर्य उड़ेल दिया है। स्फुट वाणी में हित हरिवंश ने 27 पद संकलित किए। परिष्कृत ब्रजभाषा की रचना होने के कारण यह बेहद चर्चित हुई। गोस्वामीजी की राधासुधानिधि में 270 श्लोक हैं, इसमें राधा की वंदना, उपासना, प्रशस्ति, सेवा, पूजा, भक्ति, सामीप्य, सौंदर्य आदि के विविध वर्णन किए गए हैं। इसे भक्तिभाव के श्रेष्ठतम काव्यों में शुमार किया गया है। गोस्वामी हित हरिवंश की एक अन्य कृति में यमुनाष्टक है। इस काव्य में यमुना के लिए जिन विशेषणों का प्रयोग किया गया है, वह अकल्पनीय हैं। हितहरिवंश के ग्रंथों में माधुर्य, प्रवाह का अद्भुत समागम मिलता है। ब्रजभाषा का जैसा प्रवाह हितहरिवंश के काव्यों में नया रस पैदा करता है। उन्होंने संस्कृत की तत्सम पदावली को ब्रजभाषा के प्रवाह में ढालने का प्रयोग किया है।

    मानवीय चेतना का भंडार है कन्हैया लाल मिश्र का साहित्य

    कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर ने देवबंद कस्बे में जन्म लेने के बाद ताउम्र साहित्य साधना की। उन्होंने जिन्दगी लहलहाई, जिंदगी मुस्कराई, बाजे पायलिया के घुंघरू, महके आंगन चहके द्वार, दीप जले शंख बजे, कारवां आगे बढ़े, माटी हो गई सोना, अनुशासन की राह पर, आकाश के तारे धरती के फूल आदि अमर कृतियों की रचना की। उनका रचा साहित्य मानवीय चेतना और चिंतन का अक्षय भंडार है। कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर को दो दर्जन से अधिक सम्मान मिले।