चमत्कार नहीं वैज्ञानिक तरीके से काम करते हैं रत्न, धारण करने से पहले जान लें ये जरूरी बातें
रत्नों का वैज्ञानिक महत्व मानव शरीर के पांचों तत्वों को संतुलित रखने में रत्न महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। साथ नकारात्मक उर्जा को दूर करने व सकारात्मक उर्जा को बढ़ाने में भी इनकी महती भूमिका मानी गई है।

मेरठ, तरुणा तायल। रंग बिरंगे रत्न और पत्थर हमेशा से ही कौतुहल का विषय रहे हैं। कुछ लोग इसे चमत्कार से जोड़ते हैं तो कुछ अंधविश्वास से। रत्न चिकित्सा पद्धति में न केवल आमजन में बल्कि प्रबुद्ध वर्ग के लोगों में भी इसका खासा प्रभाव देखा गया है। ज्यादातर लोग रत्नों के वैज्ञानिक प्रभाव के विषय में कम जानते हैं। आइए जानते हैं कि क्या है रत्न चिकित्सा पद्धति और कैसे काम करते हैं ये रत्न...
एस्ट्रो जेमोलॉजिस्ट कुमार सुयश बताते हैं कि मानव शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है। जिस तरह शरीर को पूर्ण स्वस्थ रहने के लिए संतुलित आहार की आवश्यकता होती है, उसी तरह शरीर के प्राकृतिक तत्वों को संतुलित रखने के लिए रत्नों की आवश्यकता होती है। मानव शरीर के पांचों तत्वों को संतुलित रखने में रत्न महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। साथ नकारात्मक उर्जा को दूर करने व सकारात्मक उर्जा को बढ़ाने में भी इनकी महती भूमिका मानी गई है।
रत्न विशेष रूप से प्राकृतिक प्रकाश से प्रभावित होते हैं। रत्नों को सदैव शरीर के उजागर अंगों यानि जहां प्राकृतिक प्रकाश से सबसे ज्यादा संपर्क हो, वहां पहनाया जाता है। इसलिए इनको हाथ में पहनना अधिक प्रभावशाली बताया गया है। इन्हें गले में पेंडेंट के रूप में भी पहना जाता है लेकिन गले की बजाय तुलनात्मक रूप से हाथ में पहनने से इनका प्रकाश से संपर्क ज्यादा बेहतर रहता है।
शुद्धता एवं स्पष्टा की दृष्टि से रत्न तीन प्रकार के होते हैं
1- ट्रांसपेरेंट रत्न- ये अत्याधिक पारदर्शी होते हैं और वास्तविक काल में प्रकाश को प्रभावित करते हैं।
2- ट्रांसलूसेंट - ये कम पारदर्शी व धूंधलेपन में होते हैं। मोडरेट
3- अपरादर्शी ओपेक - ये पूर्ण रूप से बंद होते हैं। ये प्रकाश को ग्रहण करते हैं उसके बाद संप्रेषित करते हैं।
रत्नों का वैज्ञानिक पक्ष
रत्नों का वैज्ञानिक पक्ष हम उदाहरण से समझते हैं। जैसे किसी जातक को पुखराज पहनना बताया जाता है। तो पुखराज का कैमिकल फार्मुला एल्युमिनयम ऑक्साइड है। प्रमाणित है कि मानव शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है। रत्न प्रकाश के माध्यम से जातक को प्रभावित करते हैं। रत्न के माध्यम से प्रकाश संप्रेषित होकर रक्त प्रवाह को प्रभावित करता है। ऐसे में शरीर में जिस भी तत्व की कमी रहती है रत्न उसे संतुलित करने का काम करते हैं। यह एक विशुद्ध रासायनिक विज्ञान है।
ये भी रखें ध्यान
रत्न दो तरीके से पहने जाते हैं या तो आपकी राशि के अनुसार या आपके योगकारक ग्रहों के हिसाब से पहने जाते हैं। आपकी कुंडली में शुभ(बेनेफिक) व अशुभ(मेलेफिक) ग्रह होते हैं जिनके लिए ही इन्हें पहना जाता है। इसके लिए पहले किसी ज्योतिषाचार्य से संपर्क कर परामर्श लेना चाहिए। जब भी आप रत्न खरीदें तो किसी अंतरराष्ट्रीय संस्थान द्वारा प्रमाणित रत्न लें या फिर किसी पूर्ण शिक्षित जेमोलॉजिस्ट की सलाह अनुसार रत्नों का चुनाव करें।
विशेषज्ञ का कहना है...
मनुष्य जीवन का 70 प्रतिशत भाग कर्मप्रधान होता है और कर्मानुसार संभावनाओं के द्वार खुलते हैं । मात्र बीस से तीस प्रतिशत भाग ही पूर्व निर्धारित संभावनाओं के अनुसार प्रभावित होता है। आपकी जो जन्मकुंडली होती है उसके विषय में यदि आप जानकारी लेते हैं तो सकारात्मक संभावनाओं के द्वार आपके लिए खुल सकते हैं। रत्न चिकितसा या अन्य कोई भी ज्योतिषीय उपाय आपके कर्मो का ही एक हिस्सा है। इसको अंधविश्वास या चमत्कारिक ज्ञान न समझकर, इसका वैज्ञानकि पक्ष जानकर इसका अधिक से अधिक वैदिक ज्योतिष के माध्यम से लाभ उठाऐं ।
आपकी कुंडली में जो भी ग्रह योग कारक होते हैं उनका रत्न पहनना जातक के लिए लाभकारी होता है। योग कारक ग्रह में शुभ(बेनेफिक) व अशुभ(मेलेफिक) दोनों तरह के ग्रह हो सकते हैं। उसी के अनुसार रत्न धारण किये जाते हैं।
- एस्ट्रो जेमोलॉजिस्ट कुमार सुयश
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