Famous Temples In Shamli: पौराणिक महत्ता और शिक्त का केंद्र है शामली का हनुमान धाम
Famous Temples In Shamli भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के युद्ध के दौरान कुरुक्षेत्र जाते समय यहां अपना पड़ाव डाला था। हनुमानजी की उपासना जिस टीले पर की गई थी उसी स्थान पर हनुमान धाम स्थापित है ।

शामली, जागरण संवाददाता। सिद्धपीठ मंदिर श्री हनुमान धाम शामली पौराणिक महत्ता और शक्ति का केंद्र है। किवदंती है कि भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के युद्ध के दौरान कुरुक्षेत्र जाते समय यहां अपना पड़ाव डाला था। हनुमानजी की उपासना जिस टीले पर की गई थी, उसी स्थान पर हनुमान धाम स्थापित है। भगवान श्रीकृष्ण के नाम पर ही नगर का नाम पहले श्याम वाली, फिर श्यामली और वर्तमान में शामली हो गया। अनेक संत-महात्मा हनुमान धाम पर तपस्या कर चुके हैं। शहर के बीचों बीच स्थित हनुमान धाम परिसर में मंदिरों की श्रृंखला का मनोहारी दृश्य देखते ही बनता है।
इस सिद्धपीठ स्थान पर सन्त बाबा धर्मदास ने दो माह तक निरन्तर खड़ी तपस्या की जोकि बहुत ही सिद्ध पुरुष थे। उनकी समाधि आज भी यहीं पर विद्यमान है। उन्होंने सन 1950 में अपने एक प्रिय शिष्य से कहा था कि बच्चा यह जगह चमत्कारों से भरपूर है, इस जगह पर हनुमान जी का डेरा है, उन्हीं की भक्ति कर सब कुछ अपने आप ठीक हो जाएगा। दरअसल, 14 सितम्बर 1966 को शहर के कुछ उत्साही बालकों द्वारा इस चमत्कारी स्थल को अपना आदर्श एवं कर्म मानकर 4 मई 1967 को इस देव भूमि के निर्माण का संकल्प लेकर इसका जीर्णोद्धार कार्य प्रारम्भ किया।
इस तपोभूमि पर 14 मार्च 1969 में पधारे चारों मठों के शंकराचार्य व विभिन्न मठों के मठाधीश एवं दण्डी स्वामियों ने अपने सारगर्भित प्रवचनों द्वारा इस क्षेत्र की जनता को अभिभूत किया। मुख्य रूप से ब्रह्मलीन जगदगुरु शंकराचार्य निरंजन देव तीर्थ पुरी, श्री ज्योतिष पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य कृष्णबोधाश्रम, धर्मसम्राट करपात्री जी, जगदगुरु कांचिकामकोटि पीठ जयेन्द्र सरस्वती, भूमानन्द जी, माधवाचार्य जी , ब्रह्मलीन श्री 1008 आत्मदेव तीर्थ (मोनी), रामसुखदास जी एवं 108 योगीराज बहालीन चन्द्रमोहन महाराज ने इस भूमि को अपनी चरण रज से पवित्र किया।
मंदिर की पौराणिक महत्ता
मंदिर प्रबंधन की ओर से प्रकाशित पत्रिका में मंदिर की पौराणिक महत्ता का उल्लेख इस प्रकार मिलता है। द्वापर युग में जब पांडवों और कौरवों का युद्ध हुआ, तो हस्तिनापुर से कुरुक्षेत्र जाने के लिए वाया मेरठ से शामली होते हुए यही मार्ग अपनाया गया था। तब भगवान श्री कृष्ण ने हनुमान धाम पर बरने के पेड़ों से घिरे शांत और छायादार स्थान पर कुछ समय विश्राम किया था। पुराने कुएं से जल पीकर प्यास शांत की थी। तदुपरांत शक्ति के आराध्य बाबा बजरंग बली की उपासना कर इस स्थान को धन्य किया था।
ऐतिहासिक कथा
उपलब्ध प्रमाणों के मतानुसार मराठा काल में जब दिल्ली को स्वतंत्र कराने के लिए मराठा सैनिकों ने इसे छावनी के रूप में विकसित कर पड़ाव डाला, तब सुरक्षा हेतु नगर के चारों कोनों पर भगवान शिवालयों की स्थापना और शिवालयों को छापामार युद्ध नीति अनुसार एक से दूसरे को भूमिगत जोड़ने के उद्देश्य से किया गया था। जबकि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल 1857 में इसी स्थान से बजाया गया था।
ये महानुभाव पधार चुके हैं
इस पावन तीर्थ स्थान पर तत्कालीन नेपाल के भारत में नियुक्त तत्कालीन राजदूत नीम बहादुर पाण्डेय, पूर्व प्रधानमन्त्री स्व. इन्दिरा गाधी, उमाशंकर दीक्षित ( तत्कालीन गृहमन्त्री भारत सरकार) स्व. चौधरी चरण सिंह, केदारनाथ पाण्डेय ( तत्कालीन रेल मंत्री) जीडी तपासे ( तत्कालीन राज्यपाल हरियाणा) एम चेन्ना रेंसी ( तत्कालीन राज्यपाल उत्तर प्रदेश) विरेन्द्र वर्मा ( तत्कालीन राज्यपाल हिमाचल) सूरजभान ( तत्कालीन राज्यपाल उत्तर प्रदेश), विजय कुमार मल्होत्रा ( तत्कालीन खेल मन्त्री) पूर्व प्रधानमन्त्री स्व. राजीव गांधी, राजेश पायलट ( तत्कालीन केन्द्रीय दूरसंचार मन्त्री), पूर्व मुख्यमन्त्री बनारसी दास गुप्त, पूर्व मुख्यमंत्री स्व. नारायण दत्त तिवारी, चौ. अजित सिंह (तत्कालीन उद्योगमंत्री), सुषमा स्वराज ( तत्कालीन सूचना प्रसारण मन्त्री), विद्याभूषण गर्ग (तत्कालीन मंत्री आबकारी), पूर्व मुख्यमन्त्री स्व. कल्याण सिंह, पूर्व सांसद स्व. हुकम सिंह (संसदीय कार्यमन्त्री), कौशल किशोर शर्मा (अध्यक्ष ब्राह्मण समाज) आदि राजनेताओं ने बाबा बजरंग बली की पूजा अर्चना कर आशीर्वाद प्राप्त किया।
यह है मंदिर की विशेषता
सिद्धपीठ पर तालाव के मध्य में देवाधिदेव भगवान शंकर की मूर्ति, प्राचीन बाबा बजरगंबली की समर्पण भाव से आशीर्वाद मुद्रा में दिव्य प्रतिमा, मन्दिर के पश्चिम में प्राचीन मनकामेश्वर महादेव के साथ-साथ नव-निर्मित विशाल श्री भगवान जगन्नाथ मन्दिर, श्री गणेश जी, भगवान परशुराम, रानी सती मन्दिर, मां जगदम्बाश्री सत्वनारायण, मां सन्तोषी, श्री राधाकृष्ण, मां पार्वती अपने पुत्र गणेश की अंगुली पकडकर तालाब स्थित भगवान शंकर को निहारती हुई, श्री लक्ष्मी नारायण, मां गायत्री तीनों रूपों में, त्रिपुर सुन्दरी मां भगवती, श्री शनि देव मन्दिर, भगवान विट्ठल नामदेव जी एवं श्रीराम दरबार, ब्रह्मा जी की कुटिया, जहारवीर एवं स्वतन्त्रता संग्राम सैनानियों का शहीद स्मारक भी यहां स्थित है। श्री हनुमान टीला समिति द्वारा संचालित उप संस्थाएं समाज सेवा का कार्य निरन्तर कर रही है। परिसर में द्वादश शिव सरोवर की स्थापना हो रही है।
बरने के वृक्ष की मान्यता
25 जुलाई से 28 सितम्बर 1999 तक इस देव भूमि पर जगदगुरु शंकराचार्य ज्योति पीठाधीश्वर माधवाश्रम एवं उनके संग पधारे 300 सन्यासियों, ब्रह्मचारियों साथ चार्तुमास व्रत आयोजन को शामली में प्रथम बार कराने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस भव्य आयोजन में देश विदेश से आए भक्तों ने इस स्थान की भूरि-भूरि प्रशंसा की। एक मान्यता के अनुसार जो भी व्यक्ति अपनी मनोकामना को पूर्ण करने हेतु बाबा के मन्दिर पर स्थित बरने के पेड़ से धागा बांधता है तथा बाबा की आराधना करता है उसका मनोरथ अवश्य ही पूर्ण होता है।
ऐसे पहुंचे हनुमान धाम
श्री मंदिर हनुमान धाम दिल्ली से उत्तर की ओर 98 किलोमीटर, करनाल से 40 किलोमीटर, सहारनपुर से 60 किलोमीटर, हरिद्वार से 110 किलोमीटर, मुजफ्फरनगर से 38 किलोमीटर और मेरठ से 68 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मंदिर शहर के बीच में है। इन शहरों से वाया बस से अजंता चौक स्थित बस स्टैंड पर पहुंचा जाता है। वहां से रिक्शा के जरिये मंदिर तक पहुंच सकते हैं। रेलवे स्टेशन से शुगर मिल की तरफ आने के बाद पैदल ही मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
खास आयोजन
मंदिर समित के प्रधान सलिल द्विवेदी के मुताबिक प्रत्येक मंगलवार को हनुमान जी का विभिन्न रूपों में श्रंगार किया जाता है। प्रत्येक शनिवार को शनिदेव को तेल द्वारा अभिषेक होता है। वट वृक्ष के नीचे श्री रामायण, भागवत कथा तथा महाभारत एवं अन्य शास्त्रों की कथा, सत्संग दोपहर दो से शाम चार बजे तक नित्य प्रतिदिन होता है। साल भर में 30 आयोजन मंदिर प्रबंध समिति द्वारा कराए जाते हैं। इनमें दो से चार अप्रैल को बूढ़े बाबा का मेला, 10 अप्रैल रामनवमी महोत्सव, 16 अप्रैल हनुमान प्रकटोत्सव एवं हनुमान जागरण महोत्सव, तीन मई अक्षय तृतीया एवं भगवान परशुराम जन्मोत्सव, 30 मई शनेश्चरी जयंती, 14 जुलाई से शिव कांवड़ सेवा शिविर, 31 जुलाई हरियाली तीज, चार अगस्त गोस्वामी तुलसीदास जयंती, पांच अगस्त त्रिपुर सुंदरी राज राजेश्वरी जयंती, 19 अगस्त श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, 24 अगस्त श्रीकृष्ण छठी उत्सव, 27 अगस्त नारायणी झुंझुनू वाली महोत्सव, 31 अगस्त गणेश प्रकटोत्सव, चार सितंबर राधा अष्टमी, एक सितंबर विश्वकर्मा जयंती, 26 सितंबर रामलीला (राम बरात), पांच अक्टूबर विजयदशमी पर्व आदि शामिल हैं।
आरती का समय
सुबह पांच बजे और शाम को सवा सात बजे नित्य प्रतिदिन मंदिर में हनुमानजी की आरती की जाती है। गर्मी और सर्दी के हिसाब से मौसम परिवर्तन के साथ आरती के समयमें परिवर्तन किया जाता है।
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