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    हस्तिनापुर में उत्खनन: सिनौली की तरह नया इतिहास रच सकता है पांडव टीला

    By Parveen VashishtaEdited By:
    Updated: Tue, 22 Feb 2022 09:20 AM (IST)

    Excavation at Hastinapur हस्तिनापुर में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की टीम दो स्थानों पर उत्खनन कर रही है। एक ब्लाक के उत्खनन में मौर्य काल तक के अवशेष मिले हैं जबकि दूसरे ब्लाक में मध्यकाल के अवशेष प्राप्त हो रहे हैं।

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    मेरठ के हस्तिनापुर में उत्खनन दौरान मिले मृदभांड आदि

    मेरठ, जागरण संवाददाता। हस्तिनापुर में उत्खनन जारी है। चित्रित धूसर मृदभांड तो बहुत पहले मिल चुके थे और अब भी मिल रहे हैं। लेकिन उत्खनन में बीआरडब्ल्यृ मृदभांड जैसे अकाटय प्रामाणिक साक्ष्य मिल गये जैसे कि संकेत मिलने लगे हैं, तो ऐतिहासिक घटना बनने जा रही है। सिनौली की तरह हस्तिनापुर नया इतिहास रच सकता है। काले रंग की गोलाकार आकृति मिलने से टीम की बांछें खिल गयी हैं।

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    उपलब्धियों से एएसआइ की टीम गदगद 

    महाभारतकालीन पांडव टीला पर उत्खनन जैसे-जैसे बढ रहा है, नायाब मृदभांड और पुरा अवशेष एसएसआई के खजाने में बढते जा रहे हैं। सोमवार को राजपूत व मध्यवर्ती काल की दीवारों के अलावा चित्रित धूसर मृदभांड , दाल-चावल के दाने मिले तो गैरिक सभ्यता का शानदार पेयजल के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला नायाब और पूरी तरह सुरक्षित मटका भी। बेहद आकर्षक रंगों के संयोजन के साथ चित्रित तश्तरी जैसे गोलाकार पात्र का टुकडा भी। इन उपलब्धियों से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की टीम गदगद है।

    दो स्थानों पर उत्खनन कर रही टीम

    टीम दो स्थानों पर उत्खनन कर रही है। एक ब्लाक के उत्खनन में मौर्य काल तक के अवशेष मिले हैं जबकि दूसरे ब्लाक में मध्यकाल के अवशेष प्राप्त हो रहे हैं। सोमवार को राजपूत तथा मध्यवर्ती काल की दीवारें दिखाई दीं, जिन्हें निखारने का काम जारी है। एक ब्लाक में काले रंग की गोलाकार आकृति भी दिखाई दी है, जिसकी ब्रश से सफाई कराई गई। मंगलवार को इसकी गहन जांच की जाएगी। 

    पानी रखने का पात्र व मटका मिला

    टीम को पानी रखने का आकर्षक मटका मिला है। इस स्थान को सुरक्षित कर लिया गया है। विशेषज्ञ यहां कुआं होने की संभावना भी जता रहे हैं। मटका गैरिक मृदभांड संस्कृति का है जिसका काल 1500 से 2000 ई पू का माना जाता है। इससे पूर्व आगरा में फतेहपुर सीकरी के हाड़ा महल, इनायतपुर के सढ़वारा खेड़ा, जगनेर के खलुआ और बटेश्वर में भी चार हजार वर्ष पुराने गैरिक मृदभांड और 3500 वर्ष पुराने चित्रित धूसर मृदभांड मिल चुके हैं। 

    गंगा के दोआब में है विस्‍तार

    गेरुए रंग के बर्तन ऊपरी गंगा दोआब क्षेत्र में मिलते हैं और केवल छूने भर से रंग छोड़ते और चूरा होने लगे हैं। गैरिक मृदभांड ताम्रनिधियों के साथ मिलते हैं। हस्तिनापुर, अहिच्छत्र और अतरंजीखेड़ा में इनके अवशेष मिले हैं। 1951 में भी हस्तिनापुर में गैरिक मृदभांड मिले थे। इनमें प्रमुख रूप से बड़े मटके, तसले, तश्तरी, कटोरे, नांद आदि होते हैं। रुहेल खंड के अहिच्छत्र टीले से 1940-44 में सबसे पहले चित्रित धूसर मृदभांड मिले। यही पात्र परंपरा ऊपरी गंगा घाटी में खूब मिलती रही है। इनमें थालियां, कटोरे, लोहे के उपकरण आदि हैं। कालखंड 1500-1000 ईसा पूर्व रखा जाता है। इन बर्तनों पर खड़ी व पड़ी और तिरछी रेखाएं, बिंदु समूह, संकेद्रित वृत्त, एवं स्वास्तिक व कमल पुष्प आदि मिलते हैं। 

    कई प्रदेशों के प्रशिक्षु जुटे 

    महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, झारखंड, पश्चिम बंगाल, यूपी, उड़ीसा, मध्यप्रदेश, लद्दाख, आसाम, उत्तराखंड, दिल्ली, राजस्थान व हरियाणा के अधिकारी व प्रशिक्षु उत्खनन कार्य में जुटे हैं।