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    Meerut News: डा. लक्ष्मीकांत ने राज्‍यसभा में उठाया स्वर्णप्राशन का मुद्दा, आयुष मंत्रालय में लंबित है प्रोजेक्ट

    By Prem Dutt BhattEdited By:
    Updated: Sat, 06 Aug 2022 12:33 PM (IST)

    Dr Laxmikant Bajpai राज्यसभा में डा. लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने हजारों वर्ष पुरानी चिकित्सा पद्धति स्वर्णप्राशन को बढ़ावा देने संबंधी लंबित प्रोजेक्ट को जल्दी से आगे बढ़ाने की मांग की। उन्‍होंने बताया कि बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए कारगर है चिकित्सा पद्धति।

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    Dr Laxmikant Bajpai स्वर्णप्राशन का मुद्दा डा. लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने सदन में उठाया है।

    मेरठ, जागरण संवाददाता। Dr Laxmikant Bajpai आयुर्वेद में असंख्य गुणधर्म वाली औषधियां हैं, जिनके चौंकाने वाले परिणाम मिले हैं। शुक्रवार को राज्यसभा में डा. लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने हजारों वर्ष पुरानी चिकित्सा पद्धति स्वर्णप्राशन को बढ़ावा देने संबंधी लंबित प्रोजेक्ट को जल्दी से आगे बढ़ाने की मांग की। सदन में वैज्ञानिक तथ्यों को रखते हुए डा. बाजपेयी ने बताया कि पांच हजार वर्ष पहले महर्षि कश्यप ने स्वर्णप्राशन का जिक्र किया।

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    बेहद कारगर रहा शोध

    1975 में परीक्षण में यह विधि कुपोषित बच्चों के लिए अृमत समान प्रभावी मानी गई। डा. बाजपेयी ने बताया कि गोरखपुर के एक गांव में 800 बच्चों पर प्रयोग किया गया, जिनमें से 40 प्रतिशत की बीमारी दूर हुई। पीजीआइ लखनऊ, सेंटर आफ बायोमेडिकल रिसर्च लखनऊ और केजीएमयू के डाक्टरों एवं विज्ञानियों की देखरेख में शोध किया गया, जो बेहद कारगर रहा।

    यह जिक्र भी किया

    डा. बाजपेयी (Dr Laxmikant Bajpai) ने सदन में पीजीआइ के डा. गौरव पांडे, प्रोफेसर विकास अग्रवाल, बायोमेडिकल रिसर्च के डा. दिनेश, वैद्य अभय नारायण तिवारी व मेरठ के वैद्य आलोक शर्मा के शोध का जिक्र किया। उन्होंने आयुष मंत्रालय के अंतर्गत संचालित सेंटर काउंसिल फार रिसर्च इन आयुर्वेद साइंस में 27 फरवरी से वित्तीय व्यवस्था के लिए लंबित प्रोजेक्ट को मान्यता देने की मांग उठाई।

    स्वर्णप्राशन को जान लीजिए

    आधुनिक चिकित्सा प्रणाली में जिस प्रकार बच्चों की रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने एवं बच्चों को सामान्य बीमारियों से बचाने के लिए वैक्सीन का प्रयोग किया जाता है, उसी प्रकार आयुर्वेद में बच्चों के रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाने के लिए स्वर्णप्राशन संस्कार या विधि की जाती है। महर्षि कश्यप ने कश्यप संहिता में बताया है कि बच्चों को असंख्य रोगों से बचाव के लिए स्वर्णप्राशन संस्कार बेहद प्रभावी है। यह एक प्रकार की आयुर्वेदिक टीकाकरण की प्रक्रिया है।

    स्वर्णप्राशन का वैज्ञानिक अध्ययन

    गोरखपुर में जापानी इंसेफलाइटिस के बढ़ते मामलों के बीच किंग्स जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के तत्कालीन कुलपति प्रो. मदनलाल ब्रह्म भट्ट ने आयुर्वेदाचार्य वैद्य (डा.) अभय नारायण की सलाह पर केजीएमयू की चिकित्सकों एक टीम गोरखपुर के सबसे ज्यादा प्रभावित सहजनवां के भड़सार गांव में भेजी। यहां वैद्य अभय नारायण की देखरेख में वर्षभर तक प्रत्येक पुष्य नक्षत्र के दिन स्वर्णप्राशन संस्कार कराया गया। इस संस्कार के बाद मिले उत्साही नतीजों ने चिकित्सा विज्ञान के शोधार्थियों को स्वर्णप्राशन के बारे में और भी जानने को प्रेरित किया।

    ये सभी शामिल रहे

    तत्पश्चात एजीपीजीआइ-लखनऊ के क्लिनिकल इम्यूनोलाजी विभाग के प्रोफेसर विकास अग्रवाल की अगुवाई में एजीपीजीआइ लखनऊ के ही गैस्ट्रोएंटरोलाजी विभाग के प्रोफेसर गौरव पांडे, सेंटर आफ बायोमेडिकल रिसर्च लखनऊ के डा. दिनेश कुमार व स्वर्णप्राशन निर्माणकर्ता व संस्कारक वैद्य (डा.) अभय नारायण तिवारी के सहयोग से स्वर्णप्राशन से मानव शरीर की कोशिकाओं (टी सेल व साइटोकिनिन) में होने वाले बदलाव व अध्ययन शुरू किया। वैद्य आलोक शर्मा भी शामिल रहे।

    क्या-क्या मिला शोध में

    स्वर्णप्राशन की खुराक माहभर देने के बाद फीनाइलैलनीन (फेनिल एलनीन) अनुपात में परिवर्तन देखा गया। टायरोसीन में वृद्धि दर्ज की गई जिसकी वजह से डोपामाइन मार्ग सक्रिय हुआ और इसी ने नॉरपेनेफ्रिन को भी सक्रिय किया जो कि न्यूरोट्रांसमीटर और हार्मोन के रूप में कार्य करता है। इसी की वजह से बच्चों की मेधा, कुशाग्र बुद्धि में सकारात्मक व गुणात्मक परिवर्तन नजर आया। त्वचा भी कांतिमय हुई।

    बच्चों को शामिल किया गया

    सेंटर फार बायोमेडिकल रिसर्च, लखनऊ में एनएमआर द्वारा स्वर्णप्राशन कराने के पहले और बाद के मेटाबोलाइट्स के अध्ययन से प्राप्त परिणाम स्वर्णप्राशन संस्कार में जिन बच्चों को शामिल किया गया था, उनके खून व अन्य जांचें स्वर्णप्राशसन संस्कार के पूर्व व बाद में की गई थी। न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेजोनेंस (एनएमआर) पद्धति से सेंटर फार बायोमेडिकल रिसर्च, लखनऊ के डा. दिनेश कुमार की देखरेख में मेटाबोलाइट्स का अध्ययन किया गया।

    यह किया गया प्रमाणित

    अध्ययन से प्राप्त रिपोर्ट ने प्रमाणित किया कि...

    - ग्लूटामाइन/ग्लूटामेट के अनुपात में कोई खास कमी नहीं

    - अत्यधिक बढ़े होने की अवस्था में भी एलडीएल/वीएलडीएल के परिसंचरण स्तर में कमी देखी गई

    - क्रिएटनिन के स्तर में भी कोई खास बदलाव नहीं

    - अमीनो एसिड व टायरोसिन के अनुपात में भी इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं दिखा

    - अमीनो एसिड प्रोफाइल में कोई असामान्य परिवर्तन नहीं दिखा

    - किडनी की कार्यप्रणाली सामान्य रही

    - लीवर भी सामान्य रूप से काम करता पाया गया

    - वसा की पाचन व्यवस्था में गुणात्मक सुधार देखा गया

    - पाचन व्यवस्था भी सामान्य रही चिकित्सा विज्ञानियों का निष्कर्ष

    - अधिक मात्रा में स्वर्णप्राशन की खुराक भी मानव परिधीय रक्त मोनोन्यूक्लियर कोशिकाओं (पीबीएमसी) के लिए गैर-विषाक्त है।

    - स्वर्णप्राशन की बेहद कम खुराक (माह में एक बार) भी प्रो-इंफ्लेमेटरी साइटोकिन्स को स्रावित करने के लिए पीबीएमसी को उत्तेजित कर प्रतिरक्षण शक्ति को बढ़ा देती है, जो संक्रमण आदि से बचाने में मददगार हाते हैं।

    - कुपोषित बच्चों में तो स्वर्णप्राशन रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में बेहद प्रभावी या कहें रामबाण हो सकता है। नैनोपार्टिकल में हो जाता है परिवर्तित

    आइआइटी-रुड़की में इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोप के परीक्षण में स्वर्णप्राशन में उपस्थित स्वर्ण का कण (पार्टिकल) 20 नैनोमीटर से भी कम मिला। यह प्रमाणित करता है कि स्वर्णप्राशन में प्रयुक्त स्वर्ण घोटाई विधि के बाद नैनो पार्टिकल में परिवर्तित हो गया। ऐसे में संभावना प्रबल हो गई कि इसके माध्यम से शरीर के अंदर डुप्लीकेट वायरस गढ़ा जा सकता है, जो कोरोना और जीका वायरस से भी छोटो होगा और ऐसी बीमारियों के उपचार का नया और प्रभावी मार्ग प्रशस्त कर सकता है।