उद्योगों के लिए आगे कुआं पीछे खाई, पीएनजी अपनाया तो आर्थिक चोट, नहीं तो तालाबंदी
मेरठ समेत दिल्ली-एनसीआर के सभी उद्यमी इस समय भारी दबाव और असमंजस से गुजर रहे हैं। उनके सामने आगे कुआं और पीछे खाईं वाली कहावत असलीयत में बदलते हुई दिख ...और पढ़ें

मेरठ, जेएनएन। मेरठ समेत दिल्ली-एनसीआर के सभी उद्यमी इस समय भारी दबाव और असमंजस से गुजर रहे हैं। उनके सामने आगे कुआं और पीछे खाईं वाली कहावत असलीयत में बदलते हुई दिखाई दे रही है। इसकी वजह है प्रदूषण एवं वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग का आदेश। इस आयोग ने आदेश दिया है कि कोयला, डीजल जैसे प्रदूषणकारी ईंधन से चलने वाले उद्योग 30 सितंबर 2022 तक अपने उपकरणों को बदलकर व शिफ्ट करके पीएनजी, लकड़ी या किसी बायोमास वाले ईंधन पर आ जाएं। एक अक्टूबर से कार्रवाई शुरू हो जाएगी। उद्यमियों का मुख्य दुख यह है कि यह नियम सिर्फ एनसीआर के लिए है और कोयला ही मुख्य ईंधन है, यदि पीएनजी का इस्तेमाल करते हैं तो उसके मुकाबले पीएनजी चार-पांच गुणा महंगी पड़ रही है। ऐसे में यदि पीएनजी से उद्योग चलाने में बढ़ी हुई लागत अगर उत्पाद का दाम बढ़ाकर वसूलते हैं तो एनसीआर के बाहर वाले उद्योगों से पिछड़ जाएंगे। इनके आर्डर कोई महंगे दाम में क्यों लेगा। अगर दाम नहीं बढ़ाते हैं तो आर्थिक बोझ हर महीने बढ़ता जाएगा। इससे लाभ सिमट जाएगा जोकि पलायन और बंदी की ओर धकेलेगा। कीमतों की तुलना
-कोयला 10 से 12 रुपये प्रति किग्रा में उपलब्ध हो रहा है
-उद्योगों को पीएनजी मेरठ में 61.50 रुपये प्रति किग्रा उपलब्ध हो रहा है
-आगरा में उद्योगों को सब्सिडी के बाद पीएनजी 38 रुपये में दी जा रही है
-कोयला जीएसटी के दायरे में आता है जबकि पीएनजी पर वैट लगता है
-हरियाणा में पीएनजी पर वैट 3.3 प्रतिशत, दिल्ली में पांच प्रतिशत व उप्र में 10 प्रतिशत लगता है
-परिवहन भाड़े की वजह से नोएडा, गाजियाबाद व मेरठ के पीएनजी के दाम में भी एक-दो रुपये का अंतर है आखिर पीएनजी की अनिवार्यता को मुद्दा क्यों बना रहे हैं उद्यमी
वर्तमान में जिस तरह से ईंधन के उपकरण प्रयोग किए जा रहे हैं, पीएनजी के लिए नए उपकरणों के साथ बदलना पड़ेगा। छोटे उद्योग को भी कम से कम 10 लाख रुपये खर्च करने होंगे। यह निर्भर करता है उद्योग के आकार व उपयोग पर। पेपर मिल में ईंधन का उपयोग ज्यादा है। वहां ब्यायनर, स्टीम आदि के लिए जरूरत पड़ती है। इसलिए उसमें खर्च अधिक आएगा। यही नहीं जेनरेटर सेट को भी पीएनजी इस्तेमाल में बदलवाना होगा। यह अधिक चुनौती वाला कार्य है। इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के एक अनुमान के अनुसार एनसीआर में 45 पेपर मिल हैं, इन सभी को मिलाकर बदलाव करने में करीब 50 करोड़ रुपये लागत आएगी। इसके साथ ही बिजली कनेक्शन की तरह सिक्योरिटी, फिक्स चार्ज आदि भी देना पड़ेगा। कीमत का अंतर है ही। जबकि कोयला सस्ता पड़ता है और उसके लिए किसी तरह की सिक्योरिटी, फिक्स चार्ज आदि का चक्कर नहीं है। विद्युत निगम सिक्योरिटी मनी पर ब्याज देता है जबकि गेल गैस लिमिटेड सिक्योरिटी मनी पर ब्याज नहीं देता है। यदि सब कुछ सहन करने के बाद पीएनजी का इस्तेमाल शुरू करते हैं तो लाभ का अनुपात कम हो जाएगा क्योंकि एनसीआर के बाहर के उद्योगों पर अभी पीएनजी अनिवार्य नहीं किया गया है, वे कोयले से चलते रहेंगे। अगर पीएनजी की वजह से उत्पाद का दाम बढ़ाया तो बाजार से बाहर हो जाएंगे। आगरा की तर्ज पर सब्सिडी क्यों मांग रहे हैं उद्यमी
ताज महल की वजह से आगरा व उसके आसपास के जिलों में सब्सिडी योजना लागू है। उन्हें सब्सिडी के बाद 38 रुपये प्रति किग्रा रुपये में गैस पड़ रही है। इसलिए मेरठ व एनसीआर के बाकी उद्यमी चाहते हैं कि यदि उसी तरह की सब्सिडी मिले तो उन पर पड़ने वाला बोझ कम हो जाएगा। 400 उद्योग पर पड़ेगा असर, सबसे अधिक पेपर मिल प्रभावित
कोयला आधारित ईंधन पर पेपर मिल,चीनी मिल, खेलकूद सामग्री बनाने वाले कुछ उद्योग, वायर, मेटल आदि से जुड़े उद्योग निर्भर हैं। पेपर मिल में सबसे अधिक बायलर का उपयोग होता है इसलिए अधिक कोयले का उपयोग होता है। मेरठ की करीब 400 यूनिट इससे प्रभावित होंगी। लेकिन इनमें से सबसे अधिक पेपर मिल चपेट में आएंगी। वर्तमान में मेरठ में उद्योग व वाणिज्यिक उपयोग को मिलाकर सिर्फ 88 यूनिटों में ही पीएनजी कनेक्शन है।

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