सात करोड़ से बनेगा सूरजकुंड और रिठानी में ग्रीन क्रिमिटोरियम
ग्रीन क्रिमिटोरियम बनाया जाएगा। इसमें मशीनों की लागत भी जुड़ी है। जिस कंपनी को संचालन के लिए दिया जाएगा

सात करोड़ से बनेगा सूरजकुंड और रिठानी में ग्रीन क्रिमिटोरियम
- कान्हा उपवन के गोबर से तैयार गो काष्ठ से होगा शव दाह संस्कार, 85 प्रतिशत लकड़ी की खपत होगी कम
मेरठ: पारंपरिक दाह संस्कार में इस्तेमाल होने वाली लकड़ी की खपत को कम करने और पर्यावरण को सुरक्षित रखने की दिशा में नगर निगम ने कदम बढ़ाया है। शहर के सूरजकुंड और रिठानी श्मशान घाट में ग्रीन क्रिमिटोरियम (हरित शव दाह गृह) बनाया जाएगा। यहां पर कान्हा उपवन में तैयार गो काष्ठ से दाह संस्कार किया जाएगा। निगम अधिकारियों का दावा है कि इस विधि से 85 प्रतिशत लकड़ी की खपत कम हो जाएगी। इससे पेड़ों का कटान कम होगा।
यह एक नई तकनीक है। लखनऊ में सबसे पहले इसका उपयोग किया गया। परिणाम बेहतर होने पर अब प्रदेश के सभी नगर निकायों में इसे लागू किया जा रहा है। इसी कड़ी में अब मेरठ में नगर निगम सूरजकुंड और रिठानी में ग्रीन क्रिमिटोरियम का निर्माण करने जा रहा है। यहां पर शव दाह संस्कार के लिए दो-दो मशीनें स्थापित करेगा। मशीन एक भट्टी की तरह होती है। चारों ओर से मोटी चादर से ढकी होती है। ग्रिल के साथ एक प्लेटफार्म होता है। उसी पर लकड़ी व गो-काष्ठ लगाई जाती है। उसके ऊपर शव रखा जाता है। सबसे नीचे प्लेट से राख एकत्र होगी। आग लगने के बाद शव को ढक दिया जाएगा। आग में तेजी लाने के लिए जैसे चूल्हे में फूंकनी से हवा देकर आग तेज की जाती है, वैसे ही मशीन पर शव रखकर पंप के जरिए हवा दी जाएगी। जिससे लकड़ी व गो काष्ठ तेजी से जलेगी। मोटी चादर होने के कारण ऊर्जा बाहर नहीं निकलेगी। इससे कम लकड़ी और गो-काष्ठ से अधिक ऊर्जा पैदाकर शव का दाह संस्कार हो जाएगा। इस विधि से एक दाह संस्कार एक से डेढ़ घंटा लगता है। अभी जिस प्रक्रिया से दाह संस्कार होते हैं, उसमें दो से तीन घंटे लगते हैं। एक मशीन पर एक दिन में पांच से छह शवों का अंतिम संस्कार हो सकेगा।
कार्बन उत्सर्जन होगा कम
इसमें 15 प्रतिशत लकड़ी और 85 प्रतिशत गो-काष्ठ का इस्तेमाल होगा। अभी पारंपरिक दाह संस्कार में तीन से चार कुंतल लकड़ी लगती है। ग्रीन क्रिमिटोरियम में 50 किलो लकड़ी और डेढ़ से दो कुंतल गो-काष्ठ में दाह संस्कार हो जाएगा। यानि प्रति शव दाह संस्कार में ढाई से तीन कुंतल लकड़ी का उपयोग कम होगा। इसके अलावा डिकार्बोनीजेशन फिल्ट्रेशन टेक्नोलाजी आधारित यह प्रक्रिया है। प्रदूषण नियंत्रण डिवाइस युक्त संयंत्र होगा। इससे कार्बन उत्सर्जन बहुत कम होगा। जो थोड़ा बहुत धुआं होगा उसे बाहर निकालने के लिए ऊंची चिमनी लगाई जाएगी। एक शव के दाह संस्कार से करीब 400 किलोग्राम कार्बन उत्सर्जन होता है। दावा है कि हरित दाह संस्कार से इसमें 80 प्रतिशत तक कमी आएगी।
सात करोड़ की आएगी लागत
मुख्य अभियंता प्रमोद कुमार सिंह ने बताया कि 4.68 करोड़ से सूरजकुंड और 2.73 करोड़ से रिठानी के श्मशान घाट में ग्रीन क्रिमिटोरियम बनाया जाएगा। इसमें मशीनों की लागत भी जुड़ी है। जिस कंपनी को संचालन के लिए दिया जाएगा, उसी को पांच साल तक मेंटीनेंस की जिम्मेदारी भी दी जाएगी। शासन को प्रस्ताव भेज दिया गया है। वहां से डीपीआर फाइनल होते ही टेंडर कर कार्य शुरू किया जाएगा।
कान्हा उपवन में लगेगी गो-काष्ठ बनाने की मशीन
हरित शव दाह गृह के लिए गो-काष्ठ उपलब्ध कराने के लिए नगर निगम कान्हा उपवन में इसे बनाने की मशीन लगवाएगा। कान्हा उपवन में 2500 से अधिक गोवंशी हैं। जिनसे प्रतिदिन लगभग 20 टन गोबर मिलने का अनुमान है। इतने गोबर का रोजाना निस्तारण हो सकेगा।
इन्होंने कहा----
दो ग्रीन क्रिमिटोरियम बनाए जाएंगे। लकड़ियों की खपत कम करने और पर्यावरण संरक्षण के लिए यह प्रोजेक्ट लाया गया है। गो-काष्ठ का उपयोग बढ़ेगा। इससे पेड़ों का कटान कम होगा।
सौरभ गंगवार, नगर आयुक्त
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