बच्चा गोद लेने संबंधी विवादित फतवे को दारुल उलूम देवबंद ने अपनी वेबसाइट से हटाया
Darul Uloom Deoband दारुल उलूम देवबंद से बच्चे को गोद लेने के संबंध में जारी हुए फतवे पर था विवाद। एक शिकायत पर बाल आयोग ने दिए थे जांच के आदेश डीएम न ...और पढ़ें

सहारनपुर, जागरण संवाददाता। Darul Uloom Deoband राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की आपत्ति और जिलाधिकारी के आदेश के बाद दारुल उलूम देवबंद ने बच्चे को गोद लिए जाने के संबंध में दिए फतवे को अपनी वेबसाइट से हटा लिया है। दरअसल, एक माह पूर्व एक शख्स द्वारा राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग से शिकायत की गई थी कि दारुल उलूम देवबंद अपने फतवे में कहता है कि बच्चा गोद लिया जा सकता है लेकिन परिपक्व होने के बाद गोद लिए बच्चे का संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं होगा और बच्चा किसी भी मामले में वारिस नहीं होगा।

लिंक को पब्लिक डोमेन से हटाया
इस शिकायत का संज्ञान लेते हुए आयोग ने यूपी सरकार और डीएम सहारनपुर को दारुल उलूम के पोर्टल की जांच के निर्देश दिए थे। जिसके बाद डीएम अखिलेश सिंह ने दारुल उलूम प्रबंधन को पत्र भेजकर बच्चों से संबंधित कंटेंट को वेबसाइट से हटाने के आदेश दिए थे। डीएम के आदेश के बाद दारुल उलूम देवबंद ने इस फतवे के लिंक को पब्लिक डोमेन से हटा लिया है। डीएम अखिलेश सिंह का कहना है कि बच्चे के संबंध में दारुल उलूम से जारी हुए फतवे के लिंक को बाधित किया गया है। हालांकि संस्था की वेबसाइट चलती रहेगी। फिलहाल जांच जारी है। उधर, दारुल उलूम के मोहतमिम मुफ्ती अबुल कासिम नौमानी का कहना है कि डीएम के आदेश के बाद संबंधित फतवे को पब्लिक डोमेन से हटा लिया गया है।
यह था पूरा मामला
बाल आयोग ने सहारनपुर के कलेक्टर से बच्चों के बारे में दिए गए फतवों और उन्हें वेबसाइट पर डालने को गैरकानूनी बताते हुए दारुल उलूम देवबंद के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा था। आयोग ने इस बारे में भी गहरी नाराजगी जाहिर की है कि गोद लिए गए बच्चों को अधिकारों से वंचित करने वाले ये फतवे देवबंद की वेबसाइट पर डाले गए हैं। बाल आयोग ने स्पष्ट किया है कि गोद लिए बच्चों को जैविक बच्चों के समान ही समस्त कानूनी अधिकार हासिल होते हैं। आयोग ने इस बात पर तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की है कि बच्चा, गोद लेने वाले व्यक्ति का वारिस नहीं कहलाएगा और न ही उसका सम्पत्ति पर कोई अधिकार होगा। देवबंद के फतवे में बच्चे के वयस्क होने पर उस पर शरिया कानून लागू होने की भी बात कही गई है। इसे भी बाल आयोग ने खारिज कर दिया है। आयोग का कहना है कि इस तरह के फतवे देश के कानूनों के खिलाफ हैं क्योंकि भारत का संविधान बच्चों को शिक्षा और समानता का अधिकार प्रदान करने के साथ-साथ मौलिक अधिकार भी प्रदान करता है।
अंतरराष्ट्रीय हेग कन्वेंशन का भी हवाला
इस सिलसिले में उसने अंतरराष्ट्रीय हेग कन्वेंशन का भी हवाला दिया, जिसमें गोद लिए बच्चों को जैविक बच्चों के समान ही अधिकार प्रदान करने पर भारत ने भी हस्ताक्षर किए हैं। आयोग ने किशोर न्याय अधिनियम की धारा 2(2) में दत्तक बच्चे के अधिकार परिभाषित करते हुए बताया गया है कि उसे जैविक बच्चे के समान ही सभी अधिकार और विशेषाधिकार हासिल है। इसमें उत्तराधिकार का अधिकार भी शामिल है। फतवों में शिक्षकों का बच्चों को पीटना जायज बताया। जिस पर आयोग ने यह कहकर आपत्ति जताई है कि आरटीई कानून के तहत यह प्रतिबंधित किया जा चुका है।

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