दूषित पानी और बदबू बन गए नदी की पहचान, कल-कल बहने वाली काली नाले के रूप में बह रही
काली बुला रही है दूषित पानी और बदबू बन गए नदी की पहचान । नदी किनारे गांवों में पनप रही गंभीर बीमारियां । किसी समय कल-कल बहने वाली नदी अब एक नाले का रूप ले चुकी है।

मेरठ, कपिल कुमार। काली नदी को बचाने के तमाम प्रयास भी असफल रहे हैं। प्रदूषण की मार से काली आज भी कराह रही है। किसी समय कल-कल बहने वाली नदी अब एक नाले का रूप ले चुकी है। दूषित पानी और बदबू फिर से इसकी पहचान हो गए हैं। दूषित जल से नदी किनारे गांवों में बीमारियां पनप रही हैं। नौ जिलों से बहते हुए काली का कन्नौज में गंगा से संगम होता है। 598 किलोमीटर के इस सफर में नदी को प्रदूषण की कई दुश्वारियां झेलनी पड़ रही हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की अनदेखी काली का काल बन रही है। खतौली गंगनहर से 110 क्यूसेक पानी अंतवाड़ा के पास काली में डालने का प्रस्ताव भी अभी फाइलों से बाहर नहीं आ पाया है। सिंचाई विभाग ने ईमानदारी से इस ओर कोई प्रयास ही नहीं किए।
अंतवाड़ा से काली का उद्गम
मुजफ्फरनगर जिले के अंतवाड़ा गांव से काली नदी का उद्गम हुआ है। खतौली से अंतवाड़ा की दूरी करीब छह किलोमीटर है। यहां से नदी मेरठ, हापुड़, बुलंदशहर, अलीगढ़, कासगंज, एटा, फर्रुखाबाद होते हुए कन्नौज में गंगा में मिलती है। अकेले मेरठ जनपद में नदी का प्रवाह 40 किमी है। मेरठ में प्रवेश होने से पहले ही यह सूखी दिखने लगती है। लावड़ कसबे में नालों के दूषित पानी की निकासी नदी में बेरोकटोक हो रही है। इसके अलावा भी नदी किनारे बसे नगरों का गंदा पानी भी काली में समा रहा है। पिछले कुछ सालों में काली की सेहत सुधारने के लिए कई योजनाएं बनीं। अधिकारी और ग्रामीणों ने मिलकर नदी को स्वच्छ करने का बीड़ा उठाया। हालात में सुधार भी हुआ, लेकिन कुछ दिनों बाद फिर वही हालात लौट आए।
कई गांवों में कैंसर का कहर
काली नदी के किनारे बसे गांवों में तमाम लोग बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। आढ़ गांव में काली सबसे अधिक कहर है। रहीमुद्दीन, उसकी मां अकबरी की कैंसर से मौत हुई। बाद में भाई कासमीन को भी कैंसर हुआ। पड़ोसी नियाज, गुलमोहर के साथ ही सात साल के एक बच्चे को भी कैंसर ने लील लिया। पिछले दस साल में सौ से अधिक लोग कैंसर का शिकार हो चुके हैं। इसके अलावा जलालपुर, अलीपुर, कुढ़ला, पीपलीखेड़ा, रजपुरा, अतराड़ा, अजराड़ा गांवों में दर्जनों लोग कैंसर, हृदय रोग, अलर्जी, बांझपन के रोगी इलाजरत हैं। पिछले साल गांवड़ी गांव के पास नदी से लिए गए सैंपल में सीसा समेत दर्जनों कैंसरकारक तत्व मिले थे। काली नदी को देश की सबसे प्रदूषित नदियों में गिना जाता है। पिछले 20 सालों से नदी में कूड़ा-कचरा डाला जा रहा है। नीर फाउंडेशन के रमन त्यागी ने नदी के प्रदूषण की कई बार जांच कराई। पानी में रक्त, बोन और आंतों का कैंसर करने वाले और डीएनए डिस्टर्ब करने वाले कई रसायन पाए गए थे।
वेटलैंड बनाने का प्रस्ताव
काली नदी की हालत सुधारने के लिए सरकारी स्तर पर भी कवायद चल रही है। सरकार ने पिछले दिनों नमामि गंगे परियोजना के तहत नदी किनारे आठ वेटलैंड बनाने का फैसला लिया है। इसके लिए अधिकारी सर्वे भी कर चुके हैं। वन विभाग की ओर से इसके प्रयास चल रहे हैं। शासन में यह योजना लंबित है। बताया गया है कि काली किनारे आने वाले जनपदों में यह योजना प्रस्तावित है। संबंधित सभी जिलों में योजना एकसाथ लागू की जाएगी। कुछ जिलों में अभी सर्वे का कार्य अधूरी है। इस वजह से परियोजना आगे नहीं बढ़ पा रही है।
इनका कहना है...
लोगों में जागरूकता आई है। काली नदी किनारे के गांवों के लोगों ने तालाबों को पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाया है। कई गांवों में इस पर अच्छा काम हो रहा है, लेकिन सरकारी विभागों में इच्छाशक्ति का अभाव है। काली नदी नमामि गंगे योजना में शामिल है। सिंचाई विभाग और वन विभाग को योजनाएं लागू करने में अनावश्यक विलंब नहीं करना चाहिए।
-रमन त्यागी, अध्यक्ष, नीर फाउंडेशन
काली नदी की मौजूदा स्थिति पर रिपोर्ट मांगी जाएगी। इसके बाद इसकी स्वच्छता के लिए अभियान छेड़ा जाएगा। पहले भी काली नदी को स्वच्छ करने के लिए प्रयास किए गए थे। इस कार्य में ग्रामीणों और युवाओं की भागीदारी भी बढ़ाई जाएगी। सरकारी स्तर पर जो प्रस्ताव लंबित हैं, उन्हें जल्द पूरा कराया जाएगा।
- शशांक चौधरी, सीडीओ
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