चलो, हस्तिनापुर चलते हैं... मेरठ में होने जा रहा है कुछ ऐसा कि आप खुद ही यह बोल उठेंगे
मेरठ में एक खास पहल होने जा रही है, जिसकी विशिष्टता आपको प्राचीन हस्तिनापुर की याद दिलाएगी, और आप स्वयं कह उठेंगे, "चलो, हस्तिनापुर चलते हैं।"

महाभारतकालीन हस्तिनापुर। (प्रतीकात्मक फोटो)
जागरण संवाददाता, मेरठ। जिस महाभारतकालीन हस्तिनापुर पर हम गर्व करते हैं, उससे जुड़े आकर्षक चिह्न और प्रतीक अब जगह-जगह दिखाई देंगे। साकेत चौराहे से हस्तिनापुर तक पूरे मार्ग को कारिडोर की माफिक संवारा जाएगा। जगह-जगह महाभारत, जैन और सिख धर्म से संबंधित इतिहास के प्रतीक दिखेंगे। शहर में भी डिजिटल बोर्ड व शिलापट लगेंगे। यह प्रस्ताव कमिश्नर भानुचंद्र गोस्वामी ने इंटीग्रेटेड डेवलमेंट प्लान में शामिल कराया है।
मेरठ विकास प्राधिकरण (मेडा) इस प्रस्ताव पर काम करेगा। कमिश्नर ने बुधवार को विभिन्न विभागों की बैठक में कहा कि शहर में कही कोई ऐसा चिह्न-प्रतीक नहीं दिखता, जिससे महसूस हो कि महाभारतकालीन हस्तिनापुर यहां से इतना करीब है। मेरठ में आने वाले दूसरे शहरों के लोग लोग हस्तिनापुर जाने के लिए उत्सुक कैसे होंगे। गौरतलब है कि हस्तिनापुर प्रदेश सरकार के महाभारत व जैन सर्किट में भी शामिल है लेकिन अभी उस कड़ी में काम शुरू नहीं हुआ है।
एकसमान दिखेंगे सभी डिवाइडर, बनेगा माडल
शहर में सभी डिवाइडर अलग-अलग तरह के दिखते हैं। किसी की चौड़ाई अधिक है तो किसी की कम। रंग और डिजाइन भी अलग है। कमिश्नर ने सभी विभागों को निर्देश दिया कि जो भी विभाग सड़क या डिवाइडर बनाते हैं वे एकरूपता रखें। पूरे शहर में एक ही तरह के डिवाइडर दिखाई देने चाहिए। इसके लिए विशेष माडल भी बनाया जा सकता है।
सुरक्षा वाल लगाकर करें सीएम ग्रिड सड़क कार्य
नगर निगम की ओर से शहर में सीएम ग्रिड योजना के तहत सड़क चौड़ीकरण किया जा रहा है। नाले व नालियां भी बनाई जा रही हैं। इससे जाम भी लगता है और दुर्घटना की आशंका रहती है। ऐसा इसलिए क्योंकि ठेका कंपनी की ओर से सुरक्षा व डायवर्जन संबंधित नियमों का पालन नहीं किया जाता है। कमिश्नर ने निर्देश दिया कि जिस तरह से एनसीआरटीसी ने टिन वाल लगाकर अंदर कार्य किए, उस तरह से इसके कार्य भी होने चाहिए। रात में कार्य के दौरान पर्याप्त प्रकाश व्यवस्था हो। धूल न उड़े इसलिए पानी का छिड़काव किया जाए। कोई भी उपकरण, केबल, सामग्री आदि इधर-उधर बिखरी हुई दिखाई न दे।
हजरतगंज की तर्ज पर घंटाघर को मिलेगी भव्यता
मेरठ : किस्सा, कहानियों, उपन्यास से लेकर फिल्म तक में मेरठ के घंटाघर का जिक्र तो खूब होता रहा है लेकिन अगर आप इसे देखने पहुंचेंगे तो जाम और बेतरतीब व्यवस्था के जाल में उलझ जाएंगे। इसकी ऐतिहासिकता को अनुभव नहीं कर पाएंगे। कुछ क्षण रुककर फोटो खिंचवाना तो दूर, सेल्फी भी नहीं ले सकते। हालांकि अब यहां परिवर्तन होने वाला है। घंटाघर व उसका क्षेत्र भव्य दिखाई देगा। इसे लखनऊ के हजरतगंज की तरह संवारा जाएगा। वहां सड़कें चौड़ी करके फुटपाथ बनाया है। उस पर रेलिंग लगाई गई है। बेंच रखी गई हैं।
डिवाइडर बेहतर करके उस पर फूल-पौधे लगाने के साथ ही आकर्षक स्ट्रीट लाइट लगाई गई है। डस्टबिन और आटो खड़े करने के स्थान निर्धारित हैं। सभी दुकानों के बोर्ड एक ही रंग, डिजाइन के हैं। शब्द लिखने के फांट भी तय हैं। कमिश्नर भानु चंद्र गोस्वामी के निर्देश पर मेरठ विकास प्राधिकरण (मेडा) यहां काम शुरू करेगा। घंटाघर को फसाड लाइट से रोशन किया जाएगा।
घंटाघर को 1913 से पहले कंबोह दरवाजा के नाम से जाना जाता था। मेरठ के कंबोह नवाब आबू मोहम्मद खान ने सत्रहवीं शताब्दी में बनवाया था। 1913 में इसका जीर्णोद्धार हुआ और इलाहाबाद हाई कोर्ट में लगी घड़ी को यहां स्थापित किया गया। तब से यह घंटाघर कहलाने लगा। कहा जाता है कि मेरठ शहर इसी घड़ी के बताए समय पर चलता था। आजादी के बाद इस दरवाजे का नाम नेताजी के नाम पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वार हुआ। ये लाल पत्थर से बना घंटाघर मेरठ का प्रतीक है। कई बालीवुड फिल्मों में जब इस शहर का जिक्र होता है, तो घंटाघर की तस्वीर जरूर दिखाई देती है।

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