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    मेरठ छावनी के बाश‍िंंदे चाहें निगम, मूलभूत सुविधाओं को तरस रहे हैं लोग

    By Taruna TayalEdited By:
    Updated: Mon, 11 Jul 2022 01:56 PM (IST)

    जब से मेरठ छावनी के लोगों को यह सपना दिखाया गया है कि इसके अधिकांश क्षेत्र को नगर निगम में शामिल किया जा सकता है तब से लोग बेताब हैं। जल्द से जल्द से निगम में शामिल होने का इंतजार कर रहे हैं।

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    छावनी के लोग न‍िगम में शामिल होने का इंतजार कर रहे हैं।

    मेरठ, जागरण संवाददाता। छावनी परिषद क्षेत्र में रह रहे लोग मूलभूत सुविधाओं को तरस रहे हैं और अंग्रेजी काल के नियम-कानूनों से परेशान हैं सो अलग। जब से यहां के लोगों को यह सपना दिखाया गया है कि इसके अधिकांश क्षेत्र को नगर निगम में शामिल किया जा सकता है तब से लोग बेताब हैं। जल्द से जल्द से निगम में शामिल होने का इंतजार कर रहे हैं। हाल ही में यहां के भवनों के किराएदारों को मालिकाना हक देने का निर्णय आया है। इसे इसी कड़ी की पहल माना जा रहा है। वैसे ऐसा नहीं है कि नगर निगम क्षेत्र में जनता बहुत सुखी और सुविधा संपन्न है लेकिन छावनी के जो कानून उन्हें बेवजह तंग करते रहते हैं उससे उनका लगाव निगम से बढ़ा है। छावनी अब बजट को भी तरस रहा है, जबकि निगम को सरकार भरपूर बजट देती है और ढेरों योजनाएं देती है।मकान बनाए छत नहीं दी

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    शहर में तीन हजार से अधिक मकान ऐसे हैं जो कई साल से बने खड़े हैं लेकिन एक अदद छत की चाह रखने वालों को दिया नहीं जा सका। करोड़ों रुपये खर्च करके इन्हें बनाया गया। ये मकान हैं कांशीराम आवास योजना और समाजवादी आवास योजना। मायावती के सरकार के समय से कांशीराम आवास के मकान खाली पड़े हैं और अखिलेश यादव सरकार के समय के समाजवादी आवास भी अधूरे बने खड़े हैं। ये दोनों मेरठ विकास प्राधिकरण के अधिकार में हैं, जिन्हें राजनीतिक कारणों से आवंटित नहीं किया जा रहा है। वैसे राजनीति की वजह से इन मकानों को दूर रखना चाहिए क्योंकि इसमें धन जनता का लगा है न कि किसी नेता या पार्टी का। इसलिए जनता के पैसे से बने मकान जनता को दे दिए जाने चाहिए। रही बात नाम रखने की तो इसे प्राधिकरण ने बनवाया तो प्राधिकरण ही नाम तय करे।

    कांवड़ चले शहर न रुके

    आस्था का सैलाब फिर दो साल बाद उमड़ने जा रहा है। उमंग और उत्साह की यह कांवड़ यात्रा ऐसी है जिसमें बड़ी संख्या में लोग इसके के अंग बनते हैं। हजारों लोग कांवड़ लाने जाते हैं तो बहुत से लोग शिविरों व उससे जुड़ी सेवा में शामिल होकर पुण्य के भागी बन जाते हैं। इस दौरान कई रास्ते प्रभावित होते हैं तो बहुतों का व्यापार। फिर भी सब खुश रहते हैं। जब पूरा शहर और गांव इस यात्रा का स्वागत पूरे मनोयोग से करता है तो कांवड़ लाने वाले और कांवड़ यात्रा संपन्न कराने वाले लोगों को यह विश्वास दिलाना चाहिए कि उनकी वजह से शहर नहीं रुकेगा। सुंदरता भी तभी इस पर्व की दिखाई देगी जब इसके आयोजन से किसी को कष्ट न हो बल्कि भक्ति की बयार से सावन के इस माह में शीतलता मिले। अव्यवस्था का शोर नहीं श्रद्धा का संगीत सुनाई दे।

    स्मार्ट सिटी के हसीन सपने

    मुंगेरीलाल के हसीन सपनों की तरह ही स्मार्ट सिटी के सपने हैं। इन सपनों को दो साल पहले बुना गया। लेकिन एक भी सपना अभी तक पूरा नहीं हुआ। इनमें इंटीग्रेटेड ट्रैफिक मैनेजमेंट प्लान, स्कूलों में स्मार्ट क्लास, स्मार्ट रोड, स्मार्ट पार्किंग समेत कई काम शामिल हैं। इंटीग्रेटेड ट्रैफिक मैनेजमेंट का आधा-अधूरा काम हुआ। चंद चौराहों पर लाल-हरी बत्ती जलाकर इसे अधूरा छोड़ दिया गया है। बाकी के स्मार्ट प्रोजेक्ट कब शुरू होंगे। न तो नगर निगम अधिकारियों को पता है और न ही शासन पर इनकी चर्चा हो रही है। अब सपने तो सपने ही होते हैं। कुछ पूरे होते हैं कुछ रात बीतने के साथ कहीं गुम हो जाते हैं। खैर, रैपिड रेल कारिडोर का निर्माण तीव्र गति से चल रहा है। 2025 तक यह दिल्ली से मेरठ के बीच दौड़ेगी। उम्मीद है कि स्मार्ट सिटी की परियोजनाएं भी तभी पूरी होंगी।