World Cancer Day: जिंदादिली के आगे कैंसर का कद रह गया 'बौना', इनके हौसले ने औरों को दिखाई राह
World Cancer Day डा. आशा आनंद को जब 28 फरवरी 2012 को पता चला कि उन्हें कैंसर है तो सभी ने समझा यह उन्हें हरा देगा। कालेज में ही उनकी सहकर्मी डा. उषा किरण जोकि स्वयं भी कैंसर पीड़ित थीं उन्होंने कैंसर से लड़ने की राह दिखाई।

मेरठ, जेएनएन। जीवन से कैंसर का नाम जुड़ते ही लोग जिंदगी को खत्म समझ लेते हैं। इस बीमारी से लड़ने की बजाए घुटने टेक देना आधी हार के समान होता है। अगर जिंदादिली और हौसले को ढाल बनाकर इससे लड़ा जाए तो कैंसर की हार पक्की है। यह कहना है स्वयं कैंसर पीड़ित रहीं डा. आशा आनंद का। आशा इस्माईल कालेज के फाइन आर्ट्स विभाग की विभागाध्यक्ष रहीं हैं। वह कैंसर को मात देने के बाद कैंसर पीड़ितों की काउंसिलिंग कर इस बीमारी से लड़ने का जज्बा पैदा कर रही हैं। डा. आशा आनंद को जब 28 फरवरी 2012 को पता चला कि उन्हें कैंसर है तो सभी ने समझा यह उन्हें हरा देगा। कालेज में ही उनकी सहकर्मी डा. उषा किरण जोकि स्वयं भी कैंसर पीड़ित थीं उन्होंने कैंसर से लड़ने की राह दिखाई। उन्होंने बताया कि उनके द्वारा दिखाई गई उम्मीद की इस किरण ने संजीवनी का काम किया। हौसले व जीवटता के बल पर सर्जरी कराकर वह छह माह में ही स्वस्थ हो गई। 2018 से सर्जिकल आन्कोलाजिस्ट डा. उमंग मित्तल द्वारा कैंसर पीड़ितों को जागरूक करने के लिए बनाए गए समूह उम्मीद से जुड़कर उन्हें जागरूक कर रही हैं। डा. आशा की तरह ही समाज में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो इस बीमारी को अपने बुलंद इरादों से झुका रहे हैं। सामान्य बीमारी की तरह ही लें.. सूरजकुंड स्पोर्ट्स कालोनी निवासी टीना चढ्डा को पांच अगस्त 2020 को फिर से कैंसर का पता चला तो वह दुखी हो गईं। परिवार से मिले हौसले व उनके पति अमित चढ्डा के साथ से वह इस बीमारी से लड़ने के लिए उठ खड़ी हुई। उनका कहना है कि पांच वर्ष पहले जब कैंसर का पता चला तो पूरे परिवार को गहरा धक्का लगा लेकिन इस बीमारी की भयावहता उन पर हावी नहीं होने दी। इलाज कराने के बाद वह सामान्य हो गई थीं। लाकडाउन में फिर से उनकी छाती में दर्द का अहसास हुआ तो जांच कराई। जांच में फिर से कैंसर सक्रिय होने के बारे में पता चला। ऐसे में उनके परिवार ने एक बार फिर इससे लड़ने की उम्मीद दी। उन्होंने बताया कैंसर को अब वह सामान्य बीमारी की तरह ही लेती हैं। बस समय-समय पर फालोअप जांच कराकर यह सुनिश्चित करते रहना चाहिए कि कहीं दोबारा तो यह दस्तक नहीं दे रहा। कैंसर के कुचक्र से निकल दूसरों के लिए बनीं प्रेरणा श्रद्धापुरी निवासी नीता शर्मा को जब 2013 में छाती में असहनीय दर्द हुआ तो जांच कराने पर उन्हें कैंसर का पता चला। वह आर्मी पब्लिक स्कूल में क्राफ्ट की शिक्षक भी हैं। बीमारी का पता चलने पर उन्हें लगा यह जीवन का अंतिम क्षण है। परिवार को छोड़कर जिस किसी ने उनकी बीमारी के बारे में सुना उसने और नकारात्मकता बढ़ाने का काम किया। चिकित्सक के पास जब उनका उपचार शुरू हो तो उन्होंने इलाज के साथ ही बीमारी के प्रति व्याप्त भ्रांतियों को भी दूर किया। इसने उनकी जीवन जीने की चाह को और प्रबल बनाया। उनके पति मनमोहन शर्मा व कार्य क्षेत्र क्राफ्ट व कला ने भी सकारात्मक नजरिया दिया। इसके बूते वे सर्जरी कराकर छह माह में स्वस्थ हो गई। अब वह पूरी तरह से सामान्य जीवन जी रहीं हैं। वहीं, 2015 से दूसरे कैंसर पीड़ितों से संपर्क कर बीमारी से जुड़ी नकारात्मकता का अंत कर रही हैं।

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