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    द्वैतवन से देववन फिर देववृंद और देवबंद, अब देववृंद की मुहिम, जानिए कैसे पड़ा देवबंद नाम

    By Taruna TayalEdited By:
    Updated: Thu, 19 Aug 2021 12:52 AM (IST)

    अपने नाम को लेकर देवबंद (देवबन्‍द) इन दिनों चर्चा में है। देवबंद का नाम बदलकर देववृंद (देववृन्‍द) करने की मुहिम परवान चढ़ रही है इस मुहिम का नेतृत्‍व कर रहे हैं यहां के स्थानीय भाजपा विधायक कुंवर बृजेश सिंह।

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    कई प्राचीन ग्रंथों में देवबंद के मिलते हैं अलग-अलग नाम।

    सहारनपुर, अश्‍वनी त्रिपाठी। अपने नाम को लेकर देवबंद (देवबन्‍द) इन दिनों चर्चा में है। देवबंद का नाम बदलकर देववृंद (देववृन्‍द) करने की मुहिम परवान चढ़ रही है, इस मुहिम का नेतृत्‍व कर रहे हैं यहां के स्थानीय भाजपा विधायक कुंवर बृजेश सिंह। विधायक का दावा है कि महाभारतकालीन इस कस्बे का नाम सबसे पहले द्वैतवन था, इसके बाद देववन हुआ, फिर अपभ्रंश होकर देववृंद और सबसे बाद में देवबंद हुआ। चुनाव जीतने के बाद देवबंद के नाम परिवर्तन का प्रस्‍ताव लाने वाले विधायक कुंवर बृजेश अब जल्‍द ही मुख्‍यमंत्री से फिर इस संबंध में मुलाकात भी करेंगे। बजरंग दल और कुछ दूसरे हिंदू संगठनों ने भी समर्थन में आवाज उठानी शुरू कर दी है।

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    देवबंद के असली नाम को लेकर स्थानीय इतिहासकार और शाेभित विश्‍वविद्यालय में विरासत, यूनिवर्सिटी हेरीटेज रिसर्च सेंटर के समन्वयक राजीव उपाध्याय यायावर बताते हैं कि प्राचीन ग्रंथों और सहित्यों में इस जगह का नाम सबसे पहले द्वैतवन होने के पुख्ता प्रमाण मिलते हैं। महाभारत में सभापर्व के वर्णन में द्वैतवन का उल्लेख मिलता है। एबीएल अवस्थी की पुस्तक प्राचीन भारतीय भूगोल-1972 में भी सहारनपुर के द्वैतवन का उल्लेख है। भगवती प्रसाद की पुस्तक स्कंद पुराण का सांस्कृतिक अध्ययन (बिहारी हिंदी ग्रंथ अकादमी) में भी द्वैतवन का उल्लेख है। वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग (शिक्षा मंत्रालय) द्वारा सघन शोधों के बाद लिखी गई पुस्तक ऐतिहासिक स्थानावली में लेखक बिजेंद्र कुमार माथुर ने इस जगह का नाम द्वैतवन ही बताया है। इतिहासकार राजीव उपाध्याय बताते हैं कि यह इलाका महाभारत काल में सघन वन क्षेत्र था, इसलिए इसको द्वैतवन कहा गया, ऐसी मान्यता है।

    कई प्राचीन साहित्यों में इसे देववन की संज्ञा दी गई। पुस्तक भारतीय संस्कृति के रक्षक संत में लेखक न्यायमूर्ति शंभूराज श्रीवास्तव ने श्रीहित ध्रुवदासजी का उल्लेख कर उनका जन्मस्थान देववन, सहारनपुर बताया है। वृंदावन शोध संस्थान द्वारा 1990 में प्रकाशित वृंदावन बिहारी गोस्वामी की पुस्तक यमुना एवं यमुनाष्टक में भी देववन का जिक्र मिलता है। केदारनाथ द्विवेदी द्वारा 1971 में लिखी गई पुस्तक श्रीहित ध्रुवदास और उनका साहित्य में देवबंद क्षेत्र का वर्णन बतौर देववन किया गया है। सन 1962 में परशुराम चतुर्वेदी ने मध्यकालीन प्रेम साधना की रचना की, इसमें भी देववन का उल्‍लेख मिलता है। यहां तक कि राहुल सांकृत्यायन ने भी अपनी पुस्तक हिमालय परिचय में इस इलाके को देववन ही लिखा है। नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा 1960 में प्रकाशित हिंदी विश्‍वकोश में भी इसको देववन ही बताया गया। इतिहासकार राजीव उपाध्याय बताते हैं कि द्वैतवन और देववन से अपभ्रंश होकर ही देववृंद बना है। पिछली कई शताब्दियों में देवबंद को अलग-अलग नामों से पुकारा गया। यह मान्यता है कि द्वैतवन तथा देववन के बाद लंबे समय तक देववृंद नाम रहा, जिसे बाद में देवबंद कहा गया।

    देवबंद नाम कैसे पड़ा

    विधायक बृजेश सिंह बताते हैं कि इस कस्बे का असली नाम देववृंद ही था। मुगल शासकों ने इस कस्बे का नाम बदलकर देवबंद कर दिया। यह नाम हमारी संस्क़ृति से मेल नहीं खाता इसलिए इसे बदलकर देववृंद ही करना चाहिए। दूसरी ओर इतिहासकार राजीव उपाध्याय बताते हैं कि देवबंद नाम को मुगल शासकों ने स्‍वीकार्यता दी थी, मुगलकाल में देवबंद नाम ही प्रचलित रहा। हालांकि आज भी यहां के ग्रामीण क्षेत्रों में देवबंद को देवबन (देववन) कहा जाता है। राजीव उपाध्‍याय के अनुसार यह भी माना जा सकता है कि देवबन ही अपभ्रंश होकर देवबंद हो गया। बहरहाल, आज भी यहां के श्री राधा नवरंगी लाल मंदिर और श्री चंदामल देवी कुंड संस्‍कृत महाविद्यालय के शिलापट्टों पर जगह का स्‍पष्‍ट उल्‍लेख मिलता है -देववृन्‍द।