Lok Sabha Election: दावेदारों के रेगिस्तान में पानीदार प्रत्याशी तलाश रही बसपा, क्यों डगमगा रहे 'हाथी' के पैर
Lok Sabha Election 2024 गरीब अति पिछड़े और उपेक्षित लोगों के सहारे 2024 के समर में अकेले उतरने का नाद करने वाली हाथी के सामने दावेदारों का रेगिस्तान है। 2017 के विधानसभा चुनाव में 100 मुस्लिम प्रत्याशियों को उतारकर अचंभित कर देने वाली बसपा के पास अब मुस्लिम बहुल पश्चिम उप्र में भी गिनती के मुस्लिम समाज के कद्दावर चेहरे नहीं बचे हैं।

जागरण संवाददाता, मेरठ। गरीब अति पिछड़े और उपेक्षित लोगों के सहारे 2024 के समर में अकेले उतरने का नाद करने वाली हाथी के सामने दावेदारों का रेगिस्तान है। 2017 के विधानसभा चुनाव में 100 मुस्लिम प्रत्याशियों को उतारकर अचंभित कर देने वाली बसपा के पास अब मुस्लिम बहुल पश्चिम उप्र में भी गिनती के मुस्लिम समाज के कद्दावर चेहरे नहीं बचे हैं।
पश्चिम की बिजनौर सीट से 1989 में पहली बार सांसद और सहारनपुर की हरौड़ा सीट से 1996 में विधायक बनकर मुख्यमंत्री पद पर पहुंचीं मायावती को अब यह क्षेत्र भी धीरे-धीरे छोड़ते हुए नई राजनीतिक कहानी का पात्र बनता जा रहा है तभी तो अचानक उभरे चंद्रशेखर अब मायावती की व्यक्तिगत पकड़ वाली सीटों पर उलटफेर का दम भरने लगे हैं।
बसपा से कई विधायकों ने किया किनारा
बसपा ने कई विधायक, सांसद को बाहर निकाला तो बहुतों ने स्वयं ही अलग रास्ता देख लिया। 2019 में सपा और रालोद के साथ गठबंधन करके पश्चिम की 14 में से चार सीट हासिल करने वाली बसपा अब उसे भूल मानते हुए पश्चाताप की राह पर सधे कदमों से अकेले निकलकर भविष्य के आकाश की ओर ताक रही है।
अब तलाश उसे ऐसे कुछ पानीदार प्रत्याशियों की है जो हाथी में नई ऊर्जा भर सकें ताकि सरकार किसी की भी बने उसकी रथयात्रा में हाथी शामिल हो सके। उधर, कोर्डिनेटरों को दी गई अंतिम समय सीमा भी पार होने वाली है, जिन पर दावेदारों की स्क्रीनिंग कराने का दबाव है।
अब तक बसपा ने नहीं की टिकट की घोषणा
भाजपा, सपा और कांग्रेस की अपनी रणनीति है और गठबंधन की स्थिति भी स्पष्ट है लेकिन इस सबके बीच विधानसभा चुनाव 2022 में पश्चिम की 71 में एक भी सीट न जीत पाने वाली राष्ट्रीय पार्टी बसपा शांत है। सबसे पहले टिकट की घोषणा कर देने वाली बसपा इस बार पीछे है। इसके पीछे उस पार्टी में लगातार हो रही उठापटक भी है।
अमरोहा से बसपा सांसद दानिश अली कांग्रेस से हाथ मिला चुके हैं। अब यहां कोर्डिनेटरों के सामने चुनौती है। सहारनपुर सीट पर बसपा ने संकेत स्पष्ट करने की कोशिश की है। बसपा में परंपरा रही है कि वह किसी को प्रत्याशी घोषित करने से पहले कुछ समय तक लोकसभा प्रभारी पद पर रखती है। यहां के बसपा से वर्तमान सांसद हाजी फजलुर्रहमान को नजरंदाज करके माजिद अली को प्रभारी बनाया गया है।
चुनावी मैदान से दूर हैं याकूब कुरैशी
मेरठ-हापुड़ सीट से पिछली बार चुनाव लड़ चुके हाजी याकूब कुरैशी इस बार निजी कारणों से चुनाव से स्वयं को दूर कर चुके हैं, दरअसल, वह मीट प्लांट के मामले में जेल तक जा चुके हैं।
वहीं बसपा के टिकट पर इसी सीट से सांसद रहे हाजी अखलाक भी चुनाव लड़ने से मना कर चुके हैं। ऐसे में अब यहां पर अचानक सपा नेता बदर अली का नाम चर्चा में आया है। महापौर चुनाव में एआइएमआइएम को मजबूत करने और सपा प्रत्याशी को हराने में उनकी भूमिका मानी गई थी।
कांग्रेस और सपा से होते हुए बसपा में पहुंचे सहारनपुर के इमरान मसूद को हाथी सवारी नहीं बना पाई। चंद दिनों में ही हाथी से तालमेल बिगड़ा और कांग्रेस में वापसी कर गए। पश्चिम में मुस्लिम वर्ग में खास पहचान रखने वाले इमरान भी बसपा के नहीं रह सके। नगीना आरक्षित सीट पर बसपा से सांसद गिरीशचंद हैं। 2009 में बनी इस नई सीट पर चौथा लोकसभा चुनाव होगा लेकिन यहां के लोग हर बार दूसरी पार्टी के सांसद चुन लेते हैं। इस बार आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर सपा-कांग्रेस गठबंधन के साथ मिलकर टिकट की पैरवी में हैं।
मलूक नागर पर दांव लगा सकती है बसपा
बिजनौर सटी पर बसपा से मलूक नागर सांसद हैं उन्हें पार्टी फिर मौका दे सकती है लेकिन भाजपा-रालोद गठबंधन में रालोद के खाते में गई इस सीट पर भाजपा भी सारा जोर लगाएगी। गौतमबुद्धनगर, गाजियाबाद में बसपा पहले से ही कमजोर रही है जहां भाजपा की लगभग एकतरफा जीत होती रही है। मुजफ्फरनगर, बागपत, बुलंदशहर में भी बसपा कमजोर होती चली गई। कैराना सीट पर भाजपा का कब्जा है, इस बार फिर सिटिंग सांसद को भाजपा ने दोहराया है और सपा ने इकरा हसन को टिकट दिया है लेकिन यहां भी बसपा चर्चा में जगह नहीं बना पाई है।
संभल सीट पर सपा के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क थे। सबसे उम्रदराज बर्क के निधन से सपा को क्षति पहुंची है तो उसी परिवार पर दावेदारी फिर से जाने का संकेत सपा ने दिया है उधर बसपा भी यहां दलित-मुस्लिम गठजोड़ से दो बार जीत चुकी है। बर्क की वहां बेहतर पकड़ थी लेकिन उनके इस दुनिया में न होने से बसपा अब मुस्लिम प्रत्याशी उताकर मैदान खाली मानकर चल रही है। यहां पर तीन नामों पर चर्चा है लेकिन अभी निर्णय नहीं हाे सका है।
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