चौधरी साहब की बगावत से हिल गईं थी अंग्रेजी सरकार, देखते ही दिया था गोली मारने का आदेश
आजाद भारत की सियासत के केंद्र में लाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह का देश की आजादी के लिए योगदान कम नहीं रहा। अंग्रेजों ने दिया था देखते ही चौधरी साहब को गोली मारने का आदेश। दीपांकर समेत अनेक वीर सपूतों ने लड़ी देश की आजादी की जंग।

बागपत, जहीर हसन। गांव-गरीब और किसानों को आजाद भारत की सियासत के केंद्र में लाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह का देश की आजादी के लिए योगदान कम नहीं रहा। उन्होंने अंग्रेजों भारत छोड़ों आंदोलन में बगावत का ऐसा तूफान खड़ा कर दिया था कि अंग्रेजों ने उन्हें देखते ही गोली मारने का आदेश दिया था। वहीं आचार्य दीपांकर समेत बागपत के अनेक वीर सपूतों ने भी अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था।महात्मा गांधी ने नौ अगस्त 1942 में देशवासियों से ‘करो या मरो’ का आह्वान कर ‘अंग्रेजों भारत छोड़ों’ की आवाज उठाई। देश में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन खड़ा हो उठा था।
मेरठ संभाग की बागडौर संभाली
चौ. चरण सिंह ने पश्चिम उप्र में मेरठ संभाग की बागडौर संभाली। भूमिगत होकर उन्होंने मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, हापुड़ तथा बुलंदशहर के गांवों में क्रांतिकारियों का संगठन खड़ा कर अंग्रेजी शासन की नींद हराम कर दी।मेरठ प्रशासन ने उन्हें देखते ही गोली मारने का आदेश दिया था। उस दौरान चौ. चरण सिंह ने बागपत के दाहा में जनसभा संबोधित की थी, लेकिन पुलिस गिरफ्तार नहीं कर पाई थी। कुछ दिन बाद गिरफ्तार कर लिए गए थे। रालोद नेता सुखबीर सिंह गठीना तथा ओमबीर ढाका बताते हैं कि कि चौ. चरण सिंह 1930 में लोनी में नमक बनाने पर छह माह जेल व 1940 के सत्याग्रह आंदोलन में डेढ़ साल जेल में रहे थे।
आचार्य जी ने लाहौर तक किया नेतृत्व
-कम्युनिस्ट पार्टी से 1967 में बागपत से विधायक रहे बोढा गांव के स्व. आचार्य दीपांकर ने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था। इतिहासकार स्व. महेंद्र नारायण शर्मा की बागपत वातायन किताब के अनुसार एक पैर से दिव्यांग आचार्य जी ने वाराणसी से लाहौर, अमृतसर व पेशावर तक भारत छोड़ों आंदोलन का नेतृत्व किया था। उनकी गिरफ्तारी पर दस हजार रुपये ईनाम था। 23 मार्च 1943 में लाहौर में गिरफ्तार कर जेल में डाल दिए गए।
जानिए इनका भी योगदान
-भारत छोड़ों आंदोलन में रमाला के स्व. अतर सिंह, दाहा के स्व. अमन सिंह, सिलाना के स्व. आशराम, सूप के स्व. इंद्रराज, पदड़ा के स्व. उदयराज सिंह, भूड़पुर के स्व. कटार सिंह, खेकड़ा के स्व. कैन्हया, कृष्णदत्त विद्यार्थी, किरठल के स्व. कुंदन सिंह, बडौत के स्व. चरनीमल, लूंब के स्व. खजान सिंह, बड़ागांव के छग्गी सिंह, छपरौली के ज्योति प्रसाद, बावली के स्व. जगपाल समेत अनेक वीर सूपतों ने जेल की सजा भुगती थी।
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