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    Neera Arya Freedom Fighter: नेताजी सुभाष चंद बोस की रक्षा के लिए दिया सुहाग का बलिदान

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Sat, 30 Apr 2022 12:35 PM (IST)

    आजाद हिंद फौज में रानी झांसी रेजीमेंट की सिपाही नीरा आर्य ने नेताजी सुभाष चंद बोस की जान के दुश्मन बने अंग्रेज सरकार में सीआइडी इंस्पेक्टर अपने पति श्रीकांत जयरंजन को मार डाला था। वह अंग्रेजों की जासूसी भी करती थीं।

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    Neera Arya Freedom Fighter: नेता जी से जुड़े कोई भी राज अंग्रेजों से साझा नहीं किए...

    भूपेंद्र शर्मा, बागपत। स्वाधीनता के अमृत महोत्सव वर्ष में देश के लिए सर्वस्व न्योछावर करने वाले गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों को याद किया जा रहा है। इनमें बहुत सी वीरांगनाएं भी शामिल थीं। ऐसी ही एक वीरांगना थीं नीरा आर्य। बागपत के खेकड़ा (उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में) में पांच मार्च, 1902 को जन्मीं नीरा आर्य जब मात्र आठ वर्ष की थीं, तब महामारी के चलते उनकी माता लक्ष्मी देवी और पिता महावीर का देहांत हो गया था। छोटे भाई बसंत की जिम्मेदारी भी उन्हीं पर आ गई। उन दिनों खेकड़ा में आर्य समाज के एक सम्मेलन में भाग लेने कलकत्ता (अब कोलकाता) से आए सेठ छच्जूमल ने नीरा व उनके भाई को गोद ले लिया था। नीरा की शिक्षा-दीक्षा कलकत्ता में हुई थी।

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    25 दिसंबर, 1928 को नीरा का विवाह कलकत्ता में ही श्रीकांत जयरंजन से हुआ, जो अंग्रेज सरकार के गुप्तचर विभाग में अफसर थे। नीरा को विवाह के बाद पता चला कि उनके पति कई स्वतंत्रता सेनानियों को पकड़वा चुके थे। इसी बीच उन्हें यह भी जानकारी हुई कि उनके पति अंग्रेज अफसरों के साथ मिलकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की हत्या की योजना बना रहे हैं। इस पर भड़कीं नीरा ने पति से दो टूक कह दिया कि सरकारी नौकरी और मुझमें से किसी एक को चुन लो। पति ने जब सरकारी नौकरी को चुना तो उसी क्षण नीरा आर्य ने ससुराल को छोड़ दिया। इसके बाद नीरा कलकत्ता से दिल्ली के शाहदरा में अपने धर्मपिता आचार्य चतुरसेन के पास आ गईं। शाहदरा में रहते हुए नीरा बच्चों को संस्कृत व अंग्रेजी का ट्यूशन पढ़ाने लगीं। इसी दौरान नीरा खेकड़ा के सांकरौद गांव में लगने वाले तीज मेले में आई थीं। मेले में ही नीरा को अपने एक परिचित राम सिंह के आजाद हिंद फौज में शामिल होने व सिंगापुर जाने की जानकारी हुई। इस पर नीरा ने राम सिंह से सिंगापुर चलने और आजाद हिंद फौज में शामिल होने की इच्छा जताई। राम सिंह ने हामी भर दी। इसके बाद नीरा अपने छोटे भाई बसंत व बागपत के सरदार सिंह तूफान, रतन सिंह, रामलाल, उमराव सिंह, मुरारी आर्य, कर्ण सिंह तोमर, लहरी सिंह, सिरदारे और गिरवर सिंह आदि के साथ सिंगापुर पहुंचीं और आजाद हिंद फौज की रानी झांसी रेजीमेंट में भर्ती हो गईं।

    आजाद हिंद फौज में शामिल नीरा आर्य (चश्मा पहने हुए)। - सौजन्य से तेजपाल धामा

    नीरा आर्य ने रेजीमेंट की प्रथम कमांडर डा. लक्ष्मी सहगल व सचिव मानवती आर्या के नेतृत्व में सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त किया। 22 अक्टूबर, 1943 को सुभाष चंद्र बोस ने रानी झांसी रेजीमेंट की विधिवत घोषणा की। नीरा आर्य की काबिलियत को देखते हुए उन्हें गुप्तचर विभाग में अंग्रेजों की जासूसी करने की जिम्मेदारी दी गई। इसी कारण उन्हें देश की पहली महिला जासूस भी कहा जाता है। गुप्तचर विभाग के प्रमुख पवित्र मोहन राय के आदेश पर नीरा आर्य ने अपनी सहेली सरस्वती राजामणि, जानकी, बेला और दुर्गा आदि के साथ जासूसी की जिम्मेदारी संभाली। उन्होंने लड़कों की वेशभूषा में अंग्रेज अधिकारियों के घरों में काम करना शुरू कर दिया। इस बीच जासूसी करते हुए दुर्गा पकड़ी गईं। नीरा व सरस्वती राजामणि किन्नरों की वेशभूषा में बंदीगृह के नजदीक पहुंचीं और नशीला पदार्थ खिलाकर अंग्रेज अधिकारियों व सैनिकों को बेहोश कर दुर्गा को छुड़ा लिया। अचानक एक सैनिक को होश आ गया और उसने गोली चला दी, जो भागते हुए सरस्वती राजामणि के पैर में लग गई, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और जंगल में एक पेड़ पर चढ़कर जान बचाई। जब तीनों आजाद हिंद फौज के बेस कैंप पहुंचीं तो नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने तीनों की बहादुरी की खूब प्रशंसा की। इसके बाद नीरा आर्य को कैप्टन बनाया गया साथ ही सुभाष चंद्र बोस की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी नीरा आर्य को मिल गई।

    नीरा आर्य ने अपनी आत्मकथा मेरा जीवन संघर्ष में लिखा है कि एक रात वह कैंप में नेता जी की सुरक्षा में तैनात थीं, तभी उन्हें नजदीक किसी के होने का एहसास हुआ। उन्होंने चेतावनी दी तो उनके पति श्रीकांत जयरंजन हाथ में रिवाल्वर लेकर खड़े हो गए। श्रीकांत ने सुभाष चंद्र बोस पर गोली चला दी, लेकिन गोली उनके ड्राइवर निजामुद्दीन को लगी। इस पर नीरा ने पतिहंता के कलंक को स्वीकार करते हुए वहीं रायफल की संगीन से पति को मार डाला। बाद में भी नीरा आर्य ने आजाद हिंद फौज के लिए जासूसी का काम बखूबी निभाया। हालांकि तीन मई, 1945 को अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उन्हें कलकत्ता की जेल में रखा गया। वहां उन पर अनगिनत अत्याचार किए गए। उन्हें काला पानी भी भेजा गया, लेकिन वहां से वह अपने दो साथियों के साथ भाग निकलीं।

    बागपत के खेकड़ा निवासी साहित्यकार और लेखक तेजपाल धामा बताते हैं कि देश को आजादी मिलने के बाद नीरा आर्य ने हैदराबाद मुक्ति संग्राम में भी खास भूमिका निभाई थी। 26 जुलाई, 1998 को नीरा आर्य ने बीमारी के चलते एक अस्पताल में अंतिम सांस ली। तब तेजपाल धामा ने ही अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर उनका अंतिम संस्कार किया था। तेजपाल ने पत्नी मधु के साथ मिलकर नीरा आर्य द्वारा हैदराबाद में बिताए दिनों पर एक पुस्तक लिखी, जिसका नाम है आजाद हिंद फौज की पहली महिला जासूस। तेजपाल बताते हैं कि नीरा आर्य के नाम पर केरल में एक सड़क है और उनके नाम पर राष्ट्रीय स्तर का नीरा आर्य पुरस्कार भी प्रदान किया जाता है। उनकी जयंती पर खेकड़ा में हर वर्ष एक आयोजन होता है। खेकड़ा स्थित आर्य समाज मंदिर परिसर में नीरा आर्य की याद में एक स्मारक बनाने की योजना पर भी काम चल रहा है।