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    अटल-कांशीराम, मुलायम और कल्याण ने जब बदल दी थी सियासी हवा; जातिवाद के चक्रवात से हिल गए थे राजनीतिक समीकरण

    Updated: Tue, 12 Mar 2024 01:13 PM (IST)

    Lok Sabha Election 2024 अटल बिहारी वाजपेयी... कांशीराम... कल्याण सिंह और मुलायम सिंह यादव। दशकों तक राजनीति की दिशा तय करने वाले दिग्गज। राजनीति के नए ...और पढ़ें

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    अटल बिहारी, कांशीराम-मुलायम और कल्याण ने जब बदल दी थी सियासी हवा

    संतोष शुक्ल, मेरठ। चुनावी अनुष्ठान से पहले भाजपा के क्षेत्रीय कार्यालय में कार्यकर्ता पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की फोटो के सामने खड़े होकर उनकी ओजभरी कविताओं से चुनावी नारे गढ़ रहे हैं। पास के कमरे में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से जुड़ी फाइलों में से हिंदुत्व को धार देने वाली चुनावी सामग्री निकाली जा रही है। वह राम मंदिर के महानायक, हिंदुत्व के सारथी और भाजपाइयों के लिए ‘बाबूजी’ रहेंगे।

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    डॉ. राम मनोहर लोहिया के दर्शन को राजनीतिक और व्यवहारिक धरातल पर उतारने वाले ‘धरतीपुत्र’ मुलायम सिंह यादव समाजवादी पीढ़ियों के लिए ‘नेताजी’ रहेंगे। बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के चिंतन पर दलित चेतना का पिरामिड खड़ा करने वाले कांशीराम वंचितों के लिए ‘मान्यवर’ कहलाते रहेंगे।

    मंडल और कमंडल ने गढ़े नए नायक

    उत्तर प्रदेश में हर दशक राजनीतिक चरित्र बदलता रहा। 70 के दशक में आपातकाल के बाद कांग्रेस सरकार के खिलाफ वैचारिक चक्रवात उठा। 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी। सर्वाधिक ताकतवर नेता इंदिरा गांधी रायबरेली से चुनाव हार गईं, लेकिन जनता पार्टी के हाथ से वक्त रेत की तरह फिसल गया।

    80 के दशक के अंत में मंडल और कमंडल का तूफान एक साथ उठा और विचारधारा के तीन छोर से एक साथ गूंजा तीन नायकों का नाम... मुलायम सिंह, कल्याण सिंह और कांशीराम। इनकी विचारधारा अपने-अपने दलों के लिए चुनावी शास्त्र बन गया।

    लंबे समय तक सत्ता में रही कांग्रेस नेपथ्य में चली गई। बिहार की तरह उत्तर प्रदेश में जातिवाद का शोर उठा। किसान, छात्र और युवा भी पिछड़ा, अति पिछड़ा, अगड़ा, दलित, महादलित व अल्पसंख्यक में बंट गए थे।

    जहां चले वहीं खींच दी लकीर

    अटल बिहारी वाजपेयी का राजनीतिक प्रभाव देशभर में था, लेकिन सियासी केंद्र ज्यादातर यूपी रहा। 1957 में बलरामपुर से जनसंघ के टिकट पर पहली बार संसद पहुंचे तो 1991 से 1999 तक लखनऊ से लगातार सांसद रहते हुए प्रधानमंत्री भी रहे।

    प्रदेश की राजनीति पर उनका गहरा वैचारिक असर था, जिसका प्रतिनिधित्व पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह कर रहे थे। दोनों के बीच रिश्ते तल्ख भी हुए, लेकिन अटल ने बड़ा दिल दिखाते हुए कड़वाहट में फिर शहद घोल दिया।

    यूपी की राजनीति में मुलायम सिंह का धोबी पछाड़ यूं ही मशहूर नहीं हुआ। चौधरी चरण सिंह की अंगुली पकड़कर लोकदल का प्रदेश अध्यक्ष बने। चौधरी अजित सिंह की संभावनाओं को परास्त करते हुए 1989 में प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए।

    आरक्षण की सीढ़ी से सत्ता तक पहुंचे तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह का समर्थन हटा तो चंद्रशेखर और कांग्रेस की मदद से अप्रैल 1991 तक सरकार खींच ले गए। इसके बाद मंदिर आंदोलन की ऊंची तरंगों ने कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री पद तक पहुंचा दिया।

    छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा ढहते ही इस्तीफा देकर कल्याण सिंह हिन्दुत्व के महानायक बन गए। इसी बीच 80 के दशक में बामसेफ की स्थापना कर दलित चेतना की जमीन बनाने में जुटे पंजाब के कांशीराम ने उत्तर प्रदेश की उर्वरता को भांप लिया। उन्होंने मायावती को दलित नेत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया।

    ओबीसी वोटों के हाथ जीत की चाबी

    उत्तर प्रदेश में राम मंदिर की लहर ऊंची थी, जिसे रोकने के लिए मुलायम सिंह ने मुस्लिमों के अलावा यादव, कुर्मी, मौर्य समेत ओबीसी की दर्जनों जातियों को जोड़ा, वहीं कांशीराम ने आक्रामक नारों से पारा चढ़ाते हुए 22 प्रतिशत दलित आबादी को साधने पर फोकस किया।

    चुनावी टकराव की वजह से 90 के दशक में जातिवाद चरम पर पहुंच गया। मुलायम सिंह ने राजनीतिक के आदर्शों को नव समाजवाद के नजरिये से परिभाषित करते हुए कई दागी चेहरों को सदन पहुंचाकर जनाधार बढ़ाया। बाद में सभी दलों की मजबूरी बन गई।

    कांशीराम के सपने पर खरी उतरीं मायावती

    नवंबर 1993 में कांशीराम और मुलायम ने सपा-बसपा गठबंधन कर यूपी को अभेद्य दुर्ग बनाया। मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बने, लेकिन मायावती की राजनीतिक महत्वाकांक्षा से दोनों दलों में दूरी बन गई। दो जून 1995 को बसपा ने समर्थन वापस ले लिया और लखनऊ के एक गेस्ट हाउस कांड में मायावती पर हमले ने प्रदेश की राजनीति को झकझोर दिया। इस बीच मायावती भाजपा के समर्थन से सीएम बन गईं।

    चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के राजनीति विभाग के अध्यक्ष डा. संजीव शर्मा कहते हैं कि 1989 से छह मार्च 2012 के बीच उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह तीन बार, कल्याण सिंह दो बार, जबकि मायावती चार बार मुख्यमंत्री बनीं। यह कालखंड सामाजिक परिवर्तन का था, जिसमें पिछड़ा और दलित समाज राजनीति का अगुआ बना।

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