Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    मेरठ में एंटी रेबीज वैक्सीन..ढूंढ़ते रह जाओगे

    By JagranEdited By:
    Updated: Sun, 01 Apr 2018 01:52 PM (IST)

    मेरठ। प्रदेश सरकार चिकित्सा केंद्रों को हाइटेक बनाने की तमाम योजनाएं चला रही है, किंतु ह

    मेरठ में एंटी रेबीज वैक्सीन..ढूंढ़ते रह जाओगे

    मेरठ। प्रदेश सरकार चिकित्सा केंद्रों को हाइटेक बनाने की तमाम योजनाएं चला रही है, किंतु हकीकत में सिस्टम लाइलाज नजर आता है। सभी 12 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों एवं जिला अस्पताल में एंटी रेबीज वैक्सीन का संकट बना हुआ है। आपूर्ति करने वाली एजेंसियों की मानें तो वैक्सीन की कमी भविष्य में भी बनी रहेगी। इन्हीं वजहों से स्वास्थ्य विभाग काउंसलिंग करने के बाद ही मरीजों को इंजेक्शन लगाएगा। कहां जाएं मरीज

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    जिला अस्पताल में शहर के बाहर से आने वाले मरीजों को विशेष परिस्थितियों में ही वैक्सीन दी जाती है। जिले के 12 सीएचसी पर रोजाना वैक्सीन लगाई जाती है, किंतु छह माह से दवाओं का संकट बढ़ गया है। विभाग ने इस वर्ष वर्ष 31 हजार वायल की डिमांड कीख् जबकि 15 हजार ही मिल पाई। सरकारी केंद्रों पर एक वायल में पांच मरीजों को वैक्सीन लगाई जाती है। किंतु कई बार वैक्सीन बीच में खत्म हुई तो मरीजों को अगला डोज नहीं मिल पाया। -यूं बढ़ा वैक्सीन का संकट

    -पहले चिरोन कंपनी स्वास्थ्य विभाग को वैक्सीन देती थी, जिसे छह माह पहले ब्लैकलिस्ट कर भारत सीरम से खरीद की गई। किंतु खपत देखते हुए अब विभाग दोनों कंपनियों से खरीद रहा है। इसके बावजूद वैक्सीन का संकट बना हुआ है। उधर, प्राइवेट क्लीनिकों पर पहले रेबीपोर का प्रयोग होता था, किंतु इसे ग्लैक्सो ने खरीद लिया। अब इस वेक्सीन का उत्पादन कम कर दिया गया है, जिससे निजी क्षेत्र में भी किल्लत बढ़ी है। पांच अन्य कंपनियां भी बाजार में हैं, किंतु लैब में वैक्सीन टेस्ट होकर बाजार तक उतरने में समय लगता है, जो एक बड़ी वजह है।

    इनके काटने से होता है रेबीज

    डाक्टरों की मानें तो बदलते मौसम में जानवरों के व्यवहार में बदलाव आता है। इसी वजह से कुत्ते, बंदर, लोमड़ी व नेवले मनुष्यों पर हमलावर होते हैं। जिन जानवरों में लार बनती है, उन सभी से एंटी रेबीज वायरस का खतरा है। नवंबर, मार्च एवं बारिश के आसपास के मौसमों में डाग बाइट के मामले बढ़ जाते हैं। -सरकार खरीदती है 166 रुपए में, मरीजों के देती है फ्री

    -पागल कुत्ता काट ले तो पांच डोज जरूरी।

    -मेडिकल स्टोरों पर 250-300 रुपए प्रति वायल दाम।

    -मरीज को पांच डोज लेना जरूरी, ऐसे में 1500 तक खर्च।

    -प्राइवेट में जिले में हर माह करीब पांच हजार वायल की खपत।

    -जिले में 12 सीएचसी समेत 14 स्थानों पर वैक्सीन स्टोर। माइनस 5 डिग्री ताप में रखते हैं वैक्सीन।

    -यह बीमारी संक्रमित हो जाए तो मौत तय है। अब तक दुनिया में सिर्फ तीन व्यक्ति बचाए जा सके हैं।

    -कुत्ता या कोई जीव काट ले तो कटे स्थान को बहते पानी में 15 मिनट तक धोएं। ज्यादातर वायरस निकल जाते हैं।

    -मस्तिष्क के जितना करीब कुत्ता काटेगा, उतना जल्द हाइड्रोफोबिया हो सकता है। मेरठ के सीएमओ डॉ राजकुमार का कहना है कि कुत्ते, बिल्ली, लोमड़ी एवं बंदर के काटने से मरीज को पहला डोज-0 डे पर तत्काल लेना चाहिए। इसके बाद जानवर पर नजर रखते 15 दिन में हुए तीन डोज लें। अगर काटने वाला जीव जिंदा है तो आगे वैक्सीन की जरूरत नहीं। इन जानवरों द्वारा हल्की खरोंच पर तत्काल वैक्सीन न लेकर डाक्टर से परामर्श करें। जरूरत हो, तभी वैक्सीन लगवाएं।