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    अदभुत गुरुकुल, महान गुरु..शून्य शुल्क में संपूर्ण शिक्षा

    By JagranEdited By:
    Updated: Sat, 01 Sep 2018 11:36 AM (IST)

    गुरुकुल प्रभात आश्रम में वेदमंत्रों के साथ विज्ञान-गणित की शिक्षा भी दी जाती है। धनुर्विद्या के लिए राष्ट्रीय खेल प्राधिकरण (साई) का अधिकृत प्रशिक्षण केंद्र यहीं पर है।

    अदभुत गुरुकुल, महान गुरु..शून्य शुल्क में संपूर्ण शिक्षा

    रवि प्रकाश तिवारी (मेरठ)।

    बिना किसी शुल्क के संपूर्ण शिक्षा। आवास और भोजन भी निशुल्क। यह कहानी मेरठ के एक गुरुकुल की है। शहर से करीब 25 किमी दूर गंगनहर के किनारे टीकरी गाव के गुरुकुल प्रभात आश्रम में पहुंचते ही पक्षियों के कलरव के बीच वेदमंत्रों की गूंज सुनाई पड़ेगी। यज्ञ की वेदी उठती अग्नि और फिर एकाएक ध्यान की शाति..। इस माहौल में रमने के लिए आगे बढ़ेंगे तो बासंती धोती-कुर्ते में लिपटे नौ वर्ष के बच्चों से लेकर 20 वर्ष तक के युवाओं की टोली नंगे पाव ही अपनी धुन में दिख जाएगी। आपसे आमना-सामना हो जाता है तो कुछ पल ठहरकर दोनों हाथ जोड़कर..नमस्कार जी! का संबोधन। शिक्षा-दीक्षा की इस व्यवस्था के पीछे आचार्य विवेकानंद सरस्वती का पूरा जीवन तप गया है। इस आश्रम में शिक्षा ग्रहण कर छात्र कई शैक्षणिक संस्थानों, खेल संस्थानों, पुलिस, अ‌र्द्धसैनिक बलों के साथ ही सेना में भी आचार्य से लेकर खिलाड़ी तक की भूमिका निभा रहे हैं।

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    तकनीक से हाथ मिलाकर परंपरा को जीते हैं

    हरियाली से आच्छादित इस आश्रम में पहनावे से लेकर बोलचाल और कर्मकाड में सौ फीसद भारतीय परंपरा का रस टपकता है, लेकिन तकनीक से भी मेलजोल कम नहीं है। अल सुबह वेदमंत्रों का उच्चारण करने वाले विद्यार्थियों की अंगुलिया कंप्यूटर के की-बोर्ड पर भी खटपट करती हैं। यहा के छात्र गुरुकुलीय पाठ्यक्रम के साथ-साथ आठवीं कक्षा तक यूपी बोर्ड का सिलेबस भी पढ़ते हैं। यानी, ¨हदी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान, सामाजिक ज्ञान, सामान्य ज्ञान आदि।

    पाठशाला से पाकशाला तक की शिक्षा

    आचार्य विवेकानंद सरस्वती बताते हैं कि भारतीय संस्कृति के वैभव को आने वाली पीढि़यों में सींचने, उन्हें संस्कारित कर आगे बढ़ाने के मकसद से वर्णाश्रम संघ के एक केंद्र के रूप में प्रभात आश्रम की स्थापना स्वामी समर्पणानंद सरस्वती ने 1939 में की थी। लगभग 16 एकड़ में फैले इस आश्रम की स्थापना के 33 वर्ष बाद यहा गुरुकुल की शुरुआत हुई। आचार्य ने यह सुनिश्चित कराया है कि शैक्षिक वातावरण में समान आहार, विहार एवं व्यवहार के साथ प्रत्येक को उसकी योग्यतानुसार उचित शिक्षा मिले। इस आश्रम में वर्तमान में लगभग 100 छात्र हैं और यहा छठी से आचार्य (एमए के समकक्ष) तक की शिक्षा दी जाती है। बच्चे खेती करते हैं। गौ-पालन से पाकशाला तक में खुद ही काम करते हैं।

    'आज का अर्जुन' भी यहीं से निकलता है

    आचार्य का मानना है कि पढ़ाई के साथ खेलकूद भी सर्वागीण विकास के लिए जरूरी है, लिहाजा यहा खेलकूद शुरू किया गया। छात्रों का ज्यादा मन धनुर्विद्या में लगा। आज यहा द्रोण समान उस्ताद हैं तो छात्र भी अर्जुन-कर्ण सरीखे पक्के निशानेबाज। राष्ट्रीय खेलों से ओलंपिक तक में यहा का तीर लग चुका है। विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में यहा के छात्रों ने लगभग 165 पदक जीते हैं। इस आश्रम से तीरंदाजों की निकल रही पौध, प्रशिक्षण आदि के स्तर को देखते हुए इसे राष्ट्रीय खेल प्राधिकरण (साई) का अधिकृत प्रशिक्षण केंद्र घोषित कर दिया गया है।

    गुरुकुल प्रभात आश्रम के आचार्य स्वामी विवेकानंद सरस्वती ने बताया कि उनकी कोशिश यही रही है कि आश्रम का हर छात्र संस्कारवान हो। वह देश-दुनिया में मानवता के उत्कर्ष के लिए काम करे, यही उनका मूल लक्ष्य है। छात्र आज की जरूरत के अनुरूप पढ़ें और खेलकूद में भी आगे बढ़ें, इसका यहा पूरा इंतजाम है।