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    कमेला : काली नदी का 'काल' बना कमेला

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    Updated: Fri, 04 May 2012 03:09 AM (IST)

    मेरठ : कमेले के प्रदूषण ने जल स्रोतों की गुणवत्ता पर कहर ढा दिया। मुजफ्फरनगर के दंतवाड़ा से निकलकर 300 किमी की यात्रा पूरी करने वाली काली नदी को मेरठ में कमेले ने जबरन मांसाहारी बना दिया। रोजाना एक लाख किलोलीटर से अधिक प्रदूषित रक्तरंजित जल नदी में घुलने से पानी की शुद्धता दरक गई। केन्द्रीय भूजल बोर्ड, उत्तर क्षेत्र द्वारा किए गए सर्वे में पता चला कि कमेले के पानी से नदी में रसायनों एवं बैक्टीरिया की मात्रा असाध्य स्तर तक पहुंच चुकी है। नागिन नाम से मशहूर काली नदी से मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद, बुलंदशहर, अलीगढ़, एटा, फरुखाबाद, एवं कन्नौज में गंगा में मिलने तक 300 किमी के सफर में बोर्ड ने 266 सैंपल जुटाए।

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    राज्य सरकार की चुप्पी से बना नासूर

    काली नदी में प्रदूषण के भयावह स्तर पर पर्यावरणविदों की चिंता से जागी केन्द्र सरकार ने 1999 में बोर्ड को सैंलिंग के लिए कहा। तत्कालीन भूजल बोर्ड के अध्यक्ष डा. डीके चढ़ढा एवं क्षेत्रीय निदेशक पीसी चतुर्वेदी के निर्देशन में तैयार की गई रिपोर्ट में चौंकाने वाले परिणाम मिले। बोर्ड ने नदी में रासायनिक प्रदूषण के लिए उद्योगों एवं बैक्टीरियल संक्रमण के लिए कमेले को सबसे बड़ा कारक बताया। राज्य सरकार ने रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया।

    पर्यावरणविदों ने देखा कमेले का सच

    दिल्ली में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आठ फरवरी को लिविंग रिवर्स, डाइंग रिवर्स प्रोग्राम में नीर फाउंडेशन के रमन त्यागी ने काली नदी की स्थिति पर पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन किया। बताया कि नदी के प्रदूषण में कमेले से भयावह संक्रमण पनप रहा है। जल संसाधन मंत्रालय के पूर्व सचिव प्रोफेसर रामास्वामी ने केन्द्र सरकार, लालकृष्ण आडवाड़ी, यशवंत सिंहा, भरत झुनझुनवाला, राजेन्द्र सिंह सहित कई लोगों को भी पत्र लिखकर अपने स्तर से प्रयास करने की अपील की।

    रक्तरंजित जल में पले जानलेवा परजीवी

    जल में कार्बनिक पदार्थो की अधिकता से बैक्टीरिया, वायरस, प्रोटोजोआ, शैवाल, कवक तेजी से बढ़ रहे हैं। कच्चा खून मिलने से जल में कठोरता, चिकनाहट, एवं होलीफार्म बैक्टीरिया का संक्रमण भयावह स्तर तक पहुंच गया। नाले में बहते खून से भूगर्भ जल में विषाक्त बैक्टीरिया घुल रहे हैं। कटान के बाद शव एवं हड्डियों की सफाई में प्रयोग होने वाले रसायनों से बीओडी दो के सापेक्ष 84 मिलीग्राम प्रति लीटर तक पहुंच गई। चिकनाई 0.1 मिलीग्राम से बढ़कर दो मिलीग्राम प्रति लीटर तक मिली।

    गंगा एक्शन प्लान पर सात हजार करोड़ खर्च

    क्षेत्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने माना कि मेरठ में नदी की सफाई के लिए बजट एवं योजना नहीं है। गंगा की सफाई के लिए सात हजार करोड़ खर्च हुए किंतु इसकी ट्राइब्यूटरी काली ईस्ट, वेस्ट, एवं हिंडन के नसीब में बजट नहीं आया।

    ये कहते हैं पूर्व जल संसाधन मंत्री

    सोमपाल शास्त्री कहते हैं कि कमेले के जल से काली नदी का गुणधर्म ही बदल गया। राज्य सरकार को भयावह स्थित से आगाह किया गया, किंतु कोई पहल न होने से उन्हें निराशा हुई।

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