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    न बेगम रहीं न बाग नाम बेगम बाग

    By Edited By:
    Updated: Fri, 06 Apr 2012 02:35 AM (IST)

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    इसी मोहल्ले में बूढ़ा किसान रहता था, ये वो जगह है जहां आसमान रहता था

    सही बात है, मोहल्ले का तवील और लंबा सिलसिला किसी आसमान से कम नहीं होता। दरअसल, मोहल्ले शहर की संस्कृति और रिवायत का हिस्सा होते हैं। मोहल्ले के दामन में भरे होते हैं किस्से, कहानियां और बुजुर्गो के तजुर्बाें से लबरेज बातें। इनका हल्का-सा जिक्र पलकों के कैनवास पर मोहल्ले की पुरानी तस्वीर उकेर देता है। पौराणिक और ऐतिहासिक नगरी मेरठ के मोहल्लों के दामन में भी ऐसी बहुत सारी यादें और खुश्बू बसी हुई हैं। हम इन्हीं रस और सुगंध से सराबोर कर आपको मोहल्लों की परिक्रमा कराएंगे। शुरुआत बेगम बाग मोहल्ले से..

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    मेरठ : बेगम बाग शहर में नामवर इलाके के तौर पर जाना जाता है। कहने को नाम के साथ बाग लगा है, लेकिन यह इलाका कंकरीट की इमारतों से पटा है। तारीख के आइने में झांककर देखें तो बेगमबाग किसी जमाने में बेगम समरू का वो चमन था, जिसे कुदरत ने मुकम्मल हुस्न से नवाजा था। बाग की हरियाली से रिश्ता कायम कर ठंडी हवाएं शहर की बस्तियों में जलवा अफरोज होती थी। दरख्तों की लहलहाती नाजुक शाखों पर परिंदों की गुनगुनाहट, तितलियों का रक्स, और भवरों की छटपटाहट हसीन मंजर पेश करती थी, लेकिन सहूलियत पसंद इंसान इस खूबसूरत चमन को अपने पांव तले रौंदता चला गया और बेगम बाग रफ्ता-रफ्ता कंकरीट के जंगल में तब्दील हो गया।

    बेगम बाग की बाबत इतिहास के पन्नों पर नजरें इनायत की जाए तो मालूम होता है कि बेगम बाग में महज एक कोठी थी और चारों ओर पेड़ों से पटा बाग। अंग्रेजों से एक पैक्ट के मुताबिक तय था कि जब तक बेगम जिंदा रहेंगी, वे अपनी संपत्ति की मालकिन बनी रहेंगी। उनकी मृत्यु के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी को मालिकाना हक मिलेगा। 1837 में बेगम समरू के इंतकाल के बाद अंग्रेजों ने सारी संपत्ति अपने कब्जे में ले ली। इसके बाद यहां की कोठी में जनरल के एडीसी रहने लगे, लेकिन बाग की शान बरकरार रही। वक्त बदला, हालात बदले और बाग की कोठी को चकबंदी कार्यालय के नाम से पहचाना जाने लगा। बाद में इस खंडहर होती कोठी की जगह पर एमडीए ने एक बड़ी इमारत खड़ी कर दी।

    इसके साथ ही बाग का रिहायश में तब्दील होने का सिलसिला भी शुरू हुआ। 1860 से 1890 के दशक में बड़े बदलाव हुए। बाग की जमीन पर फीता फैलता गया, कीमत लगती गई और हरियाली का सीना चीरकर नींव खुदती गई। बड़ा बदलाव आजादी के बाद हुआ। इतिहासकारों के मुताबिक बंटवारे के बाद पाकिस्तान से आए लोगों ने बेगमबाग में अपने आशियाने बनाए। वक्त के साथ पेड़, तितली और भंवरे गुजरे जमाने की बात हो गए और बेगम बाग की मौजूदा तस्वीर आपके सामने है।

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