Jat Regiment Meerut: डोगराई के सीने पर दर्ज है जाट वीरों के बलिदान, मेरठ में श्रद्धासुमन किए अर्पित
Jat Regiment News मेरठ में जाट रेजिमेंट की तीसरी बटालियन ने डोगराई जीत की 57वीं वर्षगांठ मनाया। गठन के बाद सेवा के 200 साल पूरे कर चुकी तीन जाट के बलवानों ने युद्ध विराम से पहले जीता डोगराई। बलिदानी वीरों को नमन करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

मेरठ, जागरण संवाददाता। Jat Regiment भारत-पाकिस्तान के बीच वर्ष 1965 के युद्ध में डोगराई फतह करने वाली जाट रेजिमेंट की तीसरी बटालियन ने सेवा के 200 वर्ष पूरे कर लिए हैं। एक सितंबर को स्थापना दिवस मनाने के बाद बुधवार को बटालियन ने डोगराई जीत की 57वीं वर्षगांठ मनाई।
श्रद्धांजलि अर्पित की गई
दो दिनी समारोह के पहले दिन बटालियन के बलिदानी वीरों को नमन करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित कर्नल आफ द रेजिमेंट लेफ्टिनेंट जनरल बीएस राजू के साथ वर्ष 1967 में बटालियन में शामिल होकर सेवानिवृत्त हुए मेरठ के मेजर जनरल एसएस अहलावत ने पुष्पगुच्छ चढ़ाकर श्रद्धासुमन अर्पित किया।

वाघा बार्डर से घुसे भारतीय जवान
कश्मीर में पाकिस्तानी घुसपठियों को मार गिराने के बाद भारतीय सेना वाघा बार्डर से पाकिस्तानी सीमा में प्रवेश कर गई। जीटी रोड पर लखनके, गोपालपुर होते हुए इच्छोगिल कैनल कहे जाने वाले अपर ब्रांच द्वाबा कैनल पर जाट बलवानों ने छह सितंबर को ही कब्जा कर लिया था। पाकिस्तानी सेना को इस ओर संभलने का मौका भी नहीं मिला और भारती सेना लाहौर की ओर बढ़ रही थी।
पूरी ताकत झोंक दी
अपनी इज्जत बचाने के लिए पाकिस्तानी सेना ने इच्छोगिल कैनल बचाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। भारतीय टुकड़ी तक मदद न पहुंचने के कारण उन्हें इच्छोगिल कैनल से पीछे हटने को कहा गया। आला कमान के निर्देश पर एक कदम पीछे हटे भारतीय वीरों ने कैनल के पीछे मोर्चा संभाल लिया और अंत तक वहीं जमे रहे।
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डोगराई में 15 दिन चली लड़ाई
एक कदम पीछे हटने के बाद भारतीय सेना के वीरों ने यह ठान लिया था कि पाकिस्तानी सेना से डोगराई वापस जीतना ही है। पाकिस्तानी सेना के पूरी ताकत लगाने के बाद भारतीय सेना की टुकड़ी भी मौके पर पहुंची जिसमें तीन जाट के वीरों के अलावा मौके पर 13 पंजाब बटालियन और 55वीं इंजीनियर्स रेजिमेंट की 71 फील्ड कंपनी मोर्चे पर तैनात हो गई। इच्छोगिल कैनल पाकिस्तानी सेना के लिए दीवार का काम कर रही थी।
15 दिन तक लगातार गोलियां
कैनल के बाहर दुश्मन ने माइन बिछा रखा था। 15 दिन तक लगातार गोलियां चलती रहीं। उसी दौरान युद्ध विराम का दबाव बनने लगा। इच्छोगिल जीतने का मन बना चुके भारतीय वीरों की मदद के लिए इंजीनियर्स ने 21 सितंबर की रात माइन फील्ड में 300 मीटर का रास्ता बनाया। 22 सितंबर की भेर में पौ फूटते ही जाट बलवान दुश्मन पर कहर बनकर टूट पड़े। हथियार के बाद गन बैनट और फिर खाली हाथ भी लड़े। भारतीय युद्ध इतिहास में बैटल आफ डोगराई को सर्वाधिक वार कैजुअलिटी वाला युद्ध माना जाता है।
मोदीनगर के मेजर आशाराम त्यागी भी हुए बलिदान
डोगराई फतह करने के दौरान तीन जाट बटालियन के तात्कालीन कमान अधिकारी ले. डी. हाइड और मोदीनगर के मेजर आशाराम त्यागी भी बलिदान हुए थे। युद्ध में भारतीय सेना के करीब 80 सैनिक बलिदान हुए। वहीं पाकिस्तानी सेना के 350 से अधिक मारे गए और करीब 150 पकड़े गए थे।

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