म्हारी छोरियां छोरो से कम है के
मेरठ: हम न्यू इंडिया की बात कर रहे हैं, देश तरक्की की राह पर है। युवा भविष्य के भारत को बना रहे हैं
मेरठ: हम न्यू इंडिया की बात कर रहे हैं, देश तरक्की की राह पर है। युवा भविष्य के भारत को बना रहे हैं। ये कुछ ऐसी बातें हैं, जिसे सुनकर अच्छा लगता है कि देश बदल रहा है, लेकिन यह खुशी उस समय काफूर हो जाती है। जब हम सुनते हैं कि फला को बेटी हुई है, बेचारा, फिर बेटी हुई है। समाज लाख दंभ भरता हो कि बेटी और बेटों में कोई फर्क नहीं होता है। बेटियां बेटों से कम नहीं हैं, लेकिन यह सामाजिक बुराई आज भी समाज में रचा बसा है। बेटियों को दहेज के आगे मार दिया जाता है। जो बेटी कल को किसी घर को आगे बढ़ाने वाली बनेगी, उसका आकलन दहेज के चंद पैसे से किया जाता है, इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी।
बेटी ऐसी भी..
आमिर खान की फिल्म दंगल में देखने को मिलता है कि बेटियां बेटों से किसी भी तरह से कम नहीं है, आज मैं उस घटना को जिक्र करना चाहूंगी जो यह बताते हैं कि वास्तव में बेटी बेटों से कमतर नहीं हैं। शहर से दूर एक गांव की छोटी सी लड़की बबली ने बचपन से ठान लिया कि उसे कुश्ती करनी है। गांव के लोगों ने जब यह सुना कि कुश्ती और लड़की, यह तो संभव ही नहीं है। लोग बबली की बात पर करते थे, कि अरे लड़कियों का काम कुश्ती लड़ना नहीं है। घर पर खाना बनाना सीख ले, थोड़ा बहुत पढ़ लें। बस इसके अलावा कुछ करने की जरूरत नहीं होती है, लड़कियों को। उधर, बबली को गांव के लोगों के किसी भी बात की परवाह नहीं थी। वह सुबह चार बजे उठती थी। गांव से दूर एक कालेज में कुश्ती के हाल में प्रैक्टिस चलती थी। वहां जाकर वह घंटों पसीना बहाती थी। कोच उसके लगन से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने भी उसे पूरे मन से कुश्ती के दांव पेच सिखाना शुरू कर दिया। बबली के पिता अपने दो बेटों की वजह से परेशान थे, बेटी से उन्हें बहुत अधिक उम्मीद नहीं थी, लेकिन बबली को कुश्ती सीखा रहे कोच ने बबली के पिता को एक दिन बुलाया और कहा कि तुम्हारी बेटी बहुत नाम करेगी। इसका खुराक सही करो। कोच के कहने पर बबली के पिता ने उसका ध्यान देना शुरू किया। एक महीने में ही बबली ने कालेज स्तर पर सभी को पटखनी देकर गोल्ड जीता। दूसरे महीने में जिला स्तर पर गोल्ड जीता, तीसरे महीने में मंडल स्तर पर गोल्ड जीता। एक साल के भीतर बबली ने प्रदेश में कई पहलवानों को पटखनी देकर मेडल जीतने का कीर्तिमान बनाया। उसके बाद तो बबली के पिता का तो माने मन की मुराद मिल गई हो। कोच की मेहनत और बबली के अनुशासन ने एक दिन वह भी मुकाम दिला दिया जिसके विषय में बबली ने सोचा नहीं था। राष्ट्रीय स्पर्धा से बढ़कर एशियाड में गोल्ड जीतकर उसने तहलका मचा दिया। इसी गोल्ड जीतने के दौरान बबली ने अपनी मेहनत और काबिलियत से एक सरकारी मोहकमे में स्पोर्ट्स अफसर बन गई। बबली के पिता अपने दो बेटों के परवरिश में और उन्हें स्थापित करने के लिए सब कुछ बेच चुके थे। जबकि बबली को लेकर उन्होंने कुछ भी नहीं किया था। बबली ने नौकरी पाने के बाद और अपने बचत के पैसे से पिता के लिए जमीन खरीद कर दी, चलने के लिए स्कूटर, भाईयों के बिजनेस के लिए पैसा दिया, यहीं नहीं उसने खुद अपनी शादी का खर्चा भी खुद उठाया। शादी के बाद बबली जिसके घर गई, वहां भी वह रोशनी बनकर चमकी। आज सब कहते हैं कि बेटी हो तो बबली जैसी।
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शार्वी शर्मा, छात्रा 12वीं,
सेंट जोंस सीनियर सेकेंडरी स्कूल
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