कार्बन फुटप्रिंट कम करने से बच सकेगा पर्यावरण
जागरण संवाददाता, मोदीपुरम : देश में कार्बन फुटप्रिंट की मात्रा दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है, जिसे नियंत्रित करने की आवश्यकता है। अधिक संख्या में पौधरोपण कर जलवायु परिवर्तन के प्रकोप से बचा जा सकता है। पर्यावरण में जो उतार-चढ़ाव आता है उसका भीषण परिणाम अभी हाल ही में उत्तराखंड में देखने का मिला, क्योंकि वहां पर्यावरण के साथ जमकर खिलवाड़ किया गया। यह जानकारी रविवार को कृषि विवि के कुलपति डा. एचएस गौड़ ने दी।
उन्होंने बताया कि इस कारण उन्होंने कृषि विवि में व्यापक स्तर पर पौधरोपण शुरू कर रखा है। प्रत्येक कार्य में ऊर्जा की जरूरत होती है तथा उसमें कार्बन डाई आक्साइड गैस (सीओटू) निकलती है, जो धरती को गर्म करने वाली एक अहम गैस है। मनुष्य सालभर में जितनी सीओटू पैदा करता है, वह हमारा कार्बन फुट प्रिंट है। इसकी मात्रा कम करके ही पृथ्वी को जलवायु परिवर्तन के प्रकोप से बचाया जा सकता है। सीओटू का पौधों में अधिक से अधिक उपयोग हो, ऐसा शोध कृषि विवि में भी कराया जाएगा।
उन्होंने जानकारी दी कि कार्बन फुटपि्रंट इकोलॉजिकल फुटप्रिंट का एक अंग है। किसी व्यक्ति, संस्था या वस्तु के कार्बन फुट प्रिंट का आंकलन ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के आधार पर किया जा सकता है। संभवत: कार्बन फुटप्रिंट का सबसे बड़ा कारण इंसान की इच्छा होती है। घर में इस्तेमाल होने वाली बिजली की जरूरत भी इसका बड़ा कारण है। इंसान की करीब सभी आदतें खानपान से लेकर पहने जाने वाले कपड़े तक इसमें शामिल हैं। ये सब कार्बन फुटप्रिंट का बड़ा कारण बनते हैं।
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इनका कहना है..
वातावरण में कार्बन डाईआक्साइड की मात्रा कम करने को शोध कार्य किए जाएंगे, जिससे सी थ्री पौधों के जीन को बदलकर सी फोर की तरह किया जाएगा, जिससे सी थ्री पौधों में भी सीओटू की अधिक खपत हो और आक्सीजन की अधिक मात्रा निकले। बायोटेक्नोलॉजी के सहारे सी थ्री एवं सी फोर पौधों की स्क्रीनिंग की जाएगी। इससे अच्छे पौधों को छांटकर कार्बन फुटप्रिंट की मात्रा का कम करने में सहायता मिलेगी।
- डा. आरएस सेंगर वैज्ञानिक, कृषि विवि।
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