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    सूपर्णखा ने गंवाए नाक-कान और मारीच ने जान

    By JagranEdited By:
    Updated: Sat, 05 Oct 2019 08:15 AM (IST)

    नगर की प्राचीन रामलीला में अति संवेदनशील मारीच वध की लीला के प्रसंग का मंचन गुरुवार की शाम को नगर में किया गया। इस अति संवेदनशील मंचन के लिए काफी संख्या में पुलिस बल के साथ नगर मजिस्ट्रेट नगर क्षेत्राधिकारी कोतवाल समेत कई थानों की पुलिस फोर्स वहां मौजूद थी।

    सूपर्णखा ने गंवाए नाक-कान और मारीच ने जान

    जागरण संवाददाता, मऊ : नगर की प्राचीन रामलीला में अति संवेदनशील मारीच वध की लीला के प्रसंग का मंचन गुरुवार की शाम को नगर में किया गया। इस अति संवेदनशील मंचन के लिए काफी संख्या में पुलिस बल के साथ नगर मजिस्ट्रेट, नगर क्षेत्राधिकारी, कोतवाल समेत कई थानों की पुलिस फोर्स वहां मौजूद थी। इसके लिए पहले एक मकान का दीवार तोड़कर मारीच के लिए रास्ता बनाया गया। बाद में लीला की समाप्ति पर प्रशासन ने मकान की दीवार जोड़वा दी।

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    वन में सुकुमार मनोहर अवधेश कुमारों को देख लंकेश रावण की बहन सूपर्णखा का हृदय उन पर आसक्त हो गया। वह विवाह प्रस्ताव लेकर वहां गई परंतु दोनों भाइयों ने बारी-बारी से मना कर दिया। इस पर क्रोध में आकर सूर्पणखा ने माता सीता को इसका कारण मानते हुए उन पर हमला करना चाहा कितु पहले से ही तैयार लक्ष्मण ने भगवान राम का संकेत पाते ही उसके नाक-कान काट लिए। विलाप करती हुई सूर्पणखा वहां से भाग निकली और जाकर वन में ही रह रहे अपने भाइयों खर और दूषण को यह जानकारी दी। वे दिनों क्रोधित होकर सेना सहित वहां पहुंचे, भगवान राम व लक्ष्मण से उनका घोर संग्राम हुआ। श्रीराम ने सेना समेत उनका वध कर दिया। इसके बाद प्रसंग आरंभ हुआ राम दरबार का। सारा प्रकरण सूर्पणखा से जान रावण क्रोधित होकर अपने मायावी मामा मारीच की सहायता लेता है। मारीच सोने का हिरन बनकर माता सीता को आकर्षित करता है। उनके कहने पर प्रभु श्रीराम मारीच के शिकार के लिए उसके पीछे जाते हैं। मारीच जंगल में भागता है। उसके परंपरागत टेढ़े-मेढ़े रास्ते को बनाने के लिए नगर के एक मकान की चहारदीवारी समेत उसमें बने पावरलूम कारखाने की तीन दीवारों को तोड़ा गया। इस मौके पर काफी संख्या में सुरक्षाबलों के साथ मौजूद प्रशासन ने दीवार तोड़वाकर मारीच का रास्ता बनवाया। उछलता-कूदता मारीच अंदर तक गया। पीछा करते श्रीराम ने अंतत: उसका वध कर दिया। बाण लगते ही प्रभु श्रीराम की आवाज में वह हाय लक्ष्मण-हाय लक्ष्मण कहते हुए गिर पड़ा। उसका आर्तनाद सुनकर माता सीता किसी अनहोनी की आशंका से लक्षमण को वन में भेजती हैं। मारीच के गिरने के बाद प्रशासन ने दीवार जोड़वाई।

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