मऊ के श्रीराम के पास है दुर्लभ सिक्कों का खजाना, अयोध्या में करेंगे दान; 30 सालों से कर रहे हैं एकत्रित
दोहरीघाट के श्रीराम जायसवाल 30 वर्षों से दुर्लभ सिक्के जमा कर रहे हैं जिनमें भगवान राम के चित्र वाले सिक्के शामिल हैं। वे इन सिक्कों को अयोध्या के राम मंदिर को दान करना चाहते हैं। उनके संग्रह में 2500 वर्ष पुराने चंद्रगुप्त मौर्य काल के सिक्के भी हैं जिन पर राम सीता और लक्ष्मण के चित्र हैं। वह एक संग्रहालय खोलना चाहते हैं।

संवाद सूत्र, जागरण दोहरीघाट (मऊ)। दोहरीघाट निवासी भारतीय मुद्रा परिषद वाराणसी के सदस्य श्रीराम जायसवाल के पास प्राचीन काल के अनेक दुर्लभ सिक्कों का खजाना है। इसमें श्रीराम के चित्र वाले सिक्कों को वह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के माध्यम से भगवान श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या श्रीराम मंदिर को सौंपेंगे। इसके लिए जल्द ही वह मुख्यमंत्री से मिलने का प्रयास कर रहे हैं।
सौंदर्य प्रसाधन की दुकान चालने वाले श्रीराम जायसवाल लगभग 30 वर्षों से इन दुर्लभ सिक्कों को एकत्रित करने में लगे हुए हैं। अपने घर के एक कमरे को इन्होंने संग्रहालय बना रखा है। इनके संग्रहालय में 34 ऐसे सिक्के हैं, जिन पर भगवान श्रीराम और हनुमानजी की तस्वीर है।
श्रीराम जायसवाल के संग्रहालय में रखे सिक्के व विभिन्न देशों की करेंसी। जागरण
देशभर में घूम-घूम कर सिक्कों को इकट्ठा करना जैसे उनके जीवन का मकसद ही बन गया है। इनमें से कुछ ऐसे सिक्के हैं जो इनकी कई पीढि़यों से होते हुए उन तक पहुंचा हैं।
इनके संग्रहालय में 95 रियासतों के दुर्लभ सिक्के मौजूद हैं। इन पुरातन सिक्कों में प्रभु श्रीराम, माता सीता व भ्राता लक्ष्मण सहित श्री राम दरबार समेत कई दुर्लभ सिक्के व अन्य धार्मिक कृतियां मौजूद हैं।
संग्रहालय में मौजूद राजा विक्रमादित्य काल का सिक्का। जागरण
तांबा, रजत व विशेष धातु के बने सिक्कों पर भगवान राम से जुड़ी आकृतियां विराजमान हैं। लगभग 2500 वर्ष पूर्व चंद्रगुप्त मौर्य के शासन काल के समय का सुंदर रजत मुद्रा है।
संग्रहालय में रखा मौर्य काल का प्रभी श्रीराम का नाम लिखा सिक्का। जागरण
इन मुद्राओं पर आगे के भाग में भगवान श्रीराम, माता जानकी व लक्ष्मण जी के चित्र बने हुए हैं तो पीछे के भाग पर राष्ट्रीय पक्षी मोर बना हुआ है।
संग्रहालय में रखा मौर्य काल के समय का प्रभु श्रीराम, लक्ष्मण व माता जानकी का चित्र बना सिक्का। जागरण
यह बेहद चमकीला सिक्का है। इस पर उर्दू व हिंदी में राम लिखा है। यह संवत 1759 से 1806 के मध्य का बताया जा रहा है। रजत के एक सिक्के पर श्री लिखा हुआ है तो एक तांबे के दुर्लभ सिक्के पर राम दरबार का चित्र बना हुआ है।
श्रीराम जायसवाल ने बताया कि प्रभु श्रीराम की चित्र बनी मुद्राएं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलकर वह श्रीराम मंदिर को भेंट करेंगे।
बताया कि इसके पूर्व वह कथावाचक राजन महराज, मंत्री एके शर्मा आदि को भेंट कर चुके हैं। उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि उनके पास अगर ऐसे सिक्के मौजूद हों तो उसे सहेज कर रखें। ये सिक्के इतिहास जानने का महत्वपूर्ण माध्यम होता है।
सिक्कों पर होती है चर्चा, नहीं निकला निष्कर्ष
श्रीराम जायसवाल ने बताया कि इन सिक्कों के बारे में काफी अध्ययन किया गया है। जानकारों ने बारीकी से अध्ययन किया, इतिहास भी खंगाला। वाराणसी से लेकर लखनऊ तक इस पर विशेषज्ञों से चर्चा होने के बाद भी इस पर अंतिम निष्कर्ष आज तक नहीं निकल पाया।
बताया गया कि कुछ सिक्के त्रेतायुग के हैं, पर यह कहना मुश्किल है कि यह सिक्के चलन में रहे होंगे। कुछ लोग इसे करेंसी के रूप में देखते हैं तो कुछ का मानना है कि यह टोकन क्वाइन हैं। अभी भी लोग इसे देखने परखने और समझने आते रहते हैं।
कुषाण काल से आज तक 600 सिक्कों का है संग्रह
बचपन से ही सिक्कों का शौक पाले श्रीराम जायसवाल ने बताया कि उनके पास कुषाण काल, मुगल काल, गुप्त काल, खिलजी वंश, तुगलक वंश, पृथ्वी राज चौहान, छत्रपति शिवाजी, मौर्य काल, ब्रिटिश राज समेत आदि काल के करीब 600 सिक्के हैं।
इसके अतिरिक्त 150 देशों की करेंसी के संग्रह के साथ विश्व के सभी देशों की मुद्राएं भी हैं। यह विशेष युग की संस्कृति, समृद्धि के सार व सामाजिक आर्थिक वातावरण को दर्शाते हैं। यह हमारी पुरातन विरासत है और हमें इसे संरक्षित करके रखना चाहिए।
संग्रहालय खोलने की है योजना
श्रीराम जायसवाल ने बताया कि दो हरियों के बीच की पावन भूमि दोहरीघाट जिस प्रकार से अपने अंदर धार्मिक व पौराणिक आस्था समेटे हुए है, उसी प्रकार से सरकार के सहयोग से इस पौराणिक नगरी में प्राचीन काल के एकत्रित सिक्के, मुद्राओं व विश्व के अन्य देशों के करेंसी का संग्रहालय खोलने की योजना है। इसके लिए जल्द ही प्रदेश सरकार से मिल कर इसका प्रस्ताव रखा जाएगा।
हमारी भावी पीढ़ियां होंगी रूबरू
दोहरीघाट में खोले जाने वाले इस संग्रहालय का लाभ सीधे हमारे देश के भावी पीढ़ियों को मिलेगा। इससे रिसर्च करने वाले युवाओं को सहूलियत मिलेगी और दोहरीघाट प्राचीन धरोहरों का केंद्र माना जाएगा।
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