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    कुक्कुट पालन रोजगार का बेहतर साधन : डा. वर्मा

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 28 Feb 2022 06:03 PM (IST)

    जागरण संवाददाता मऊ कृषि विज्ञान केंद्र पिलखी द्वारा सोमवार को मधुबन ब्लाक के ताराडीह में ...और पढ़ें

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    कुक्कुट पालन रोजगार का बेहतर साधन : डा. वर्मा

    जागरण संवाददाता, मऊ : कृषि विज्ञान केंद्र पिलखी द्वारा सोमवार को मधुबन ब्लाक के ताराडीह में दुग्ध उत्पादन एवं पशुधन प्रबंधन प्रशिक्षण द्वारा क्षमता विकास योजनांतर्गत तीन दिवसीय रोजगारपरक कुक्कुट पालन लाभकारी व्यवसाय विषय पर प्रशिक्षण आयोजित किया गया। इस दौरान प्रशिक्षणार्थियों को मुर्गी पालन से संबंधित साहित्य एवं प्रमाण पत्र भी प्रदान किया गया।

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    प्रशिक्षण में केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डा. एलसी वर्मा ने मुर्गी पालकों को संबोधित करते हुए कहां की ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में मुर्गी पालन छोटे और बड़े स्तर पर करके अल्पावधि में ही आमदनी एवं स्वरोजगार उपलब्ध कराने का एक अच्छा विकल्प है। पशुपालन वैज्ञानिक एवं प्रशिक्षण समन्वयक डा. वीके सिंह ने व्यावसायिक मुर्गी पालन तकनीक पर विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि मुर्गी पालन व्यवसाय में सात सप्ताह में ही आय प्राप्त होने लगती है। 1000 मुर्गियों को पालकर 10 से 15 हजार रुपये ढाई से तीन माह में लाभ प्राप्त किया जा सकता है। मुर्गी पालन व्यवसाय प्रारंभ करने से पूर्व फार्म बनाने की रूपरेखा में बिजली, पानी एवं पार्क में आवागमन हेतु रोड एवं बाजार की उपलब्धता सुनिश्चित कर लेनी चाहिए। अच्छा लाभ प्राप्त करने के लिए मुर्गी चूजे एवं मुर्गी आहार दाना किसी विश्वसनीय संस्था से लेना चाहिए। अच्छे आहार प्रबंधन करने पर ब्रायलर मुर्गियां लगभग तीन किग्रा आहार खाकर दो किग्रा के लगभग वजन ग्रहण कर लेती हैं। कम लागत में बैकयार्ड कुक्कुट पालन पद्धति में मुर्गियों की कड़कनाथ, कैरी श्यामा, कैरि प्रिया, निर्भीक, बनराजा नस्लें अंडे और मांस के लिए पालकर अच्छा लाभ लिया जा सकता है। अंडा उत्पादन के लिए वाइट लेगहार्न मुर्गियां अच्छी मानी जाती हैं। फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डा. अजीत वत्स ने मुर्गियों में लगने वाले विभिन्न रोग जैसे रानीखेत, गुमबोरो, संक्रामक खांसी, आदि संक्रामक रोगों से बचाव हेतु समय से टीकाकरण एवं अन्य परजीवी रोग के कारण बचाव एवं उपचार की जानकारी दी। शस्य वैज्ञानिक डा. अंगद प्रसाद ने बताया कि मुर्गी फार्म प्रबंधन एवं उसके गोबर से खाद बनाकर भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ा सकते हैं।