इन दो चीजों की खेती से किसान हो जाएंगे मालामाल, सरकार भी कर रही मदद... तगड़ी सब्सिडी भी मिलेगी
मऊ जिले में सरकार ने मखाना और सिंघाड़ा की खेती को बढ़ावा देने का फैसला किया है। इसके लिए किसानों को एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना के तहत अनुदान मिलेगा। 10-10 हेक्टेयर का लक्ष्य निर्धारित किया गया है जिसमें पहले आओ पहले पाओ के आधार पर चयन होगा। मखाना की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर 40 हजार रुपये और सिंघाड़ा की खेती के लिए 30 हजार रुपये का अनुदान मिलेगा।

जागरण संवाददाता, मऊ। जनपद में पहली बार शासन की तरफ से मखाना व सिंघाड़ा की खेती कराने का निर्णय लिया गया है। एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना के तहत खेती करने वाले किसानों को अनुदान मिलेगा और खेती करने वाला किसान खुशहाल होगा। इसके लिए 10-10 हेक्टेयर का लक्ष्य शासन की तरफ से निर्धारित किया गया है। पहले आओ पहले पाओ के आधार पर किसानों का चयन किया जाएगा। इसके आवदेन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।
जनपद में रतनपुरा मे गाढ़ा ताल, मधुबन में ताल रतोय, घोसी में पकड़ी ताल, कोपागंज में पीवा ताल है। यह ताल काफी क्षेत्रों में फैला है। यह ताल ठंड के दिनों में विदेशी साइबेरियन पक्षियों से गुलजार रहते हैं। इसके तट पर मछुआरा प्रजाति के लोग निवास करते हैं। इनके रोजगार का मुख्य संसाधन मछली पकड़ना व कवलगट्टा है।
इनके जीवन स्तर को सुधारने के लिए सरकार द्वारा पहल की जा रही है। अब तालाब व पोखरों में मखाना व सिंघाड़ा की खेती करने का निर्णय लिया गया है। इसके तहत मखाना की खेती के लिए 10 हेक्टेयर का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। प्रति हेक्टेयर आवेदक को 40 हजार रुपये अनुदान मिलेगा।
इसी प्रकार सिंघाड़ा की खेती के लिए सामान्य वर्ग के लिए सात हेक्टेयर व अनुसूचित जाति के लिए तीन हेक्टेयर का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसमें प्रति हेक्टेयर 30 हजार रुपये अनुदान की घोषणा की गई है। इसकी खेती करने वाले किसान मत्स्य पालन का भी लाभ उठा सकते हैं।
इससे उनका दोहरा लाभ मिल सकेगा। वरिष्ठ उद्यान निरीक्षक अरुण यादव ने बताया कि मखाना की खेती जलजमाव वाले क्षेत्र में अन्य फसलों की भांति होती है। इसमें 30 से 90 किलोग्राम स्वस्थ मखाना के बीज को तालाब में दिसंबर के महीने हाथों से छींटते हैं। बीज को लगाने 35 से 40 दिन बाद पानी के अंदर बीज का उगना शुरू हो जाता है तथा फरवरी के अंत या मार्च के शुरू में मखाना के पौधे जल की ऊपरी सतह पर निकल आते हैं।
मखाना के लिए तालाब तथा खेत की तैयारी
उद्यान निरीक्षक अरुण यादव का कहना है कि मखाने को तालाब में बीज बोने की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि पूर्व वर्ष के तालाब में बचे बीज आगामी वर्ष के लिये बीज काम करते हैं। खेती विधि में मखाना के बीज को सीधे खेतों में बोया जाता है या तो धान की फसल की भांति तैयार पौधे को रोपना होता है।
मखाना की खेती एक फीट तक पानी से भरे कृषि भूमि में की जाती है। एक खेत में मखाना के साथ-साथ धान एवं अन्य फसलों को उगाया जा सकता है। मखाना के पौधों को सर्वप्रथम नर्सनी तैयार की जाती है। खेत की दो से तीन गहरी जुताई के बाद ट्रैक्टर या देशी हल की सहायता से पाटा देकर खेत को मखाना की खेती के लिये तैयार करते हैं।
मखाना के पौधे में लगने वाले कीट तथा नियंत्रण
एफिड कीट पौधे की पत्तियों को नुकसान पहुंचाते हैं। जबकि केसवर्म एवं जड़ भेदक क्रमश फूल एवं जड़ को नुकसान पहुंचाते हैं। नियंत्रण के लिए 0.3 प्रतिशत नीम तेल के घोल का छिड़काव करना चाहिए। भेदक से बचाव के लिए 25 किलोग्राम नीम की खली को प्रारंभ में खेत की तैयारी करते वक्त डालना चाहिए।
मखाना के पौधे में झुलसा रोग एक बहुत ही नुकसानदायक फफूंदीजनक रोग है। इसे उत्पन्न करने वाला आर्गेनिज्म को अल्टरनेरिया टिनुईस कहते हैं। पत्तियों के ऊपरी सतह पर गहरे भूरे या काले रंग का गोलाकार मृत क्षेत्र बन जाता है। इससे बचाव के लिए कापर आक्सिक्लोराइड, डाइथेर्न जे-78 का डाइथेन एम-45 0.3 प्रतिशत घोल का पंद्रह दिन के अंतराल पर दो से तीन बार छिड़कना चाहिए।
किसानों को अनुदान के रूप में पौधा, खाद व अन्य चीजें प्रदान की जाएंगी। किसान उद्यान विभाग की वेबसाइट पर आवेदन कर सकते है। इसके साथ ही किसी कार्यदिवस पर आवेदन कर हार्ड कापी उद्यान विभाग में जमा कर सकते हैं।
-- संदीप गुप्ता, जिला उद्यान अधिकारी।
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