सुहाग के कल्याण को आज निर्जला व्रत
जागरण संवाददाता, मऊ : भारतीय नारी के त्याग, तपस्या, सतीत्व व पतिव्रत का प्रतीक पर्व 'हरितालिका
जागरण संवाददाता, मऊ : भारतीय नारी के त्याग, तपस्या, सतीत्व व पतिव्रत का प्रतीक पर्व 'हरितालिका तीज' बुधवार को पूरे जनपद में आस्था व श्रद्धा के साथ मनाया जाएगा। सौभाग्यवती महिलाएं अपने सुहाग के अमरत्व, परिवार के कल्याण के लिए 24 घंटे के निर्जला व्रत का संधान करेंगी। हस्त नक्षत्र में होने वाले इस महान व्रत में सायंकाल सूर्यास्त के पश्चात गोधूलि बेला या प्रदोष काल में मां पार्वती व पार्थिव शिव¨लग के पूजन का विधान है।
पौराणिक कथानक के अनुसार भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए मां पार्वती ने कठोर व्रत किया था। अन्न-जल त्यागने के बाद कुछ दिनों तक वन में केवल पत्तियां खाकर निर्वाह किया। बाद में उसे भी त्याग दिया और निर्जल व्रत रहकर अखंड उपासना आरंभ कर दीं। इसी कारण उनका एक नाम अपर्णा भी पड़ा। अंत में उनके तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया को उन्हें दर्शन दिए और पत्नी के रूप में वरण करने का आश्वासन भी। इससे आह्लादित जगतजननी मां पार्वती ने भी वरदान दिया कि जो स्त्री इस तिथि को निर्जला व्रत रहकर भगवान शिव की पूजा करेगी, उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होगी। इसी वरदान की कामना में अपने पति परमेश्वर के अमरत्व एवं अखंड सौभाग्य के लिए भारतीय नारी आज भी भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया को इस व्रत का संधान करती हैं। सूर्योदय के पूर्व ही जागकर नहा-धोकर जल ग्रहण कर व्रतारंभ करती हैं। सायंकाल प्रदोष काल में अपने हाथों से मिट्टी का पार्थिव शिव¨लग व मां गौरी की प्रतिमा बनाकर, सोलह श्रृंगार कर सविधि उसका पूजन अर्चन करतीं हैं। अगले दिवस हस्त नक्षत्र समाप्त होने के पश्चात व्रत का पारण किया जाता है तथा सुहाग के सामान आदि का दान करती हैं। इस व्रत की तैयारी हेतु मंगलवार को पूरे दिन महिलाओं ने आवश्यक सामानों की खरीदारी की। इस बार तृतीया में नहीं मिलेगा हस्त नक्षत्र
मऊ : हरितालिका तीज व्रत हस्त नक्षत्र में करने का विधान है। इस बार हानि के चलते हस्त नक्षत्र तृतीया में नहीं मिलेगा। यह सोमवार की भोर में 5.55 से शुरू होकर मंगलवार की भोर में 5.08 पर ही समाप्त हो चुका है और चित्रा नक्षत्र लग गया है। इस बार सुहागिन महिलाओं को चित्रा नक्षत्र में पूजन करना होगा। चूंकि तृतीया तिथि भी मंगलवार की सायं 7.53 बजे से लगकर बुधवार की सायं 6.38 बजे तक ही रहेगी। इसलिए व्रती महिलाओं को अपना पूजन-अनुष्ठान शाम 6.38 बजे तक कर लेना श्रेयस्कर रहेगा। इसके बाद चतुर्थी लग जाएगी। पूजन के बाद गुरुवार की भोर में प्रात: 5.52 बजे सूर्योदय के पश्चात कभी भी वे अपने व्रत का पारण कर सकती हैं।