फूल ही नहीं आयुर्वेदिक औषधि भी है गुड़हल
जागरण संवाददाता घोसी (मऊ) आमतौर पर गुड़हल का पेड़ फूल के चलते पवित्र माना जाता है। य
जागरण संवाददाता, घोसी (मऊ) : आमतौर पर गुड़हल का पेड़ फूल के चलते पवित्र माना जाता है। यह पौधा आस्था से जुड़ा है। अंतर्राष्ट्रीय योग संस्थान घोसी से जुड़े डा. रामनिवास आर्य बताते हैं कि इसका आयुर्वेद में काफी अधिक औषधीय महत्व है। हिबिस्कस गोसोरालासाइन (वैज्ञानिक नाम) नामक इस पौधे की श्वेत, लाल और नारंगी फूल की प्रमुख प्रजाति भारत में सर्वत्र पाई जाती है। इसके फूल में प्रचुर मात्रा में श्वेत रक्त कणिका होती है। इसमें कैलिश्यम, विटामिन सी, डी एवं के और फास्फोरस होता है।
गुणधर्म : इसका औषधीय प्रयोग केश वर्धन, वीर्य वर्धन, रक्त वर्धन, गर्भ निरोधक सहित उदर रोग नाश में किया जाता है। इसके सेवन से स्मरण शक्ति बढ़ती है।
औषधीय प्रयोग : बादाम की गिरी और गुड़हल के दस फूल के क्वाथ का सेवन करने से स्मरण शक्ति और मेधा में वृद्धि होती है। गुड़हल के सूखे फूल के चूर्ण का भुने चना और गुड़ के साथ सुबह-शाम सेवन करने से कुछ दिनों में रक्त अल्पता (एनीमिया) समाप्त हो जाती है। इसके फूल के चूर्ण, मिश्री और आंवला का समान मात्रा में चूर्ण लेने से वीर्य की सांद्रता बढ़ती है। गुड़हल की पत्ती पीस कर लुगदी बनाकर बाल में तीन घंटे तक लगा लें। बाद में साफ पानी से धो लें। ऐसा नियमित करने से बाल का गिरना बंद और गंजापन दूर होता है। सूजन और दर्द वाले स्थान पर गुड़हल की पत्ती को पानी में पीस कर बनाए गए गाढ़े लेप का सेवन करने से आराम मिलता है। गुड़हल के फूलों का रस पीने समस्त उदर रोग दूर होते हैं। मासिक धर्म के दौरान तीन दिन तक इसके फूल को ओखली में कूट कर कई वर्ष पुराने गुड़ की पचास ग्राम मात्रा संग सेवन करने से गर्भधारण नहीं होता है। कटे स्थान पर इसके पत्ते पीसकर मधु मिलाकर बने मिश्रण को रखने से घाव जल्दी भरता है।
चेतावनी : डा. शर्मा बताते हैं कि औषधीय गुणों के बावजूद अधिक मात्रा में गुड़हल के फूल का सेवन करने से आंख पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसका सेवन काली मिर्च एवं गुड़ के साथ ही करना चाहिए।
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