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    ड्रिप व स्प्रिंकलर विधि से किसान करें सिचाई, बचाएं पानी

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 31 Aug 2020 08:02 PM (IST)

    जागरण संवाददाता मऊ जल ही जीवन है। बिना जल के जीवन की कल्पना असंभव है। पिछले कुछ वर्षों ...और पढ़ें

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    ड्रिप व स्प्रिंकलर विधि से किसान करें सिचाई, बचाएं पानी

    जागरण संवाददाता, मऊ : जल ही जीवन है। बिना जल के जीवन की कल्पना असंभव है। पिछले कुछ वर्षों से भू-गर्भ जलस्तर तेजी से भाग रहा है। इसे बचाने के लिए शासन-प्रशासन पूरी तरह से गंभीर है। पूरे देश में जल संरक्षण की कवायद चल रही है। यही वजह है कि किसानों को हर संभव कोशिश कर जलसंरक्षण के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। अब अधिक पानी से नहीं बल्कि कम पानी से खेतों की सिचाई भी कराई जाएगी और अन्न भी अधिक उपजेगा। इससे न सिर्फ पानी की बचत होगी बल्कि किसानों का लाभ ही लाभ होगा।

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    पूरे जनपद में प्रधानमंत्री कृषि सिचाई पर ड्राप मोर क्राप, माइक्रो इरीगेशन योजना के अंतर्गत वर्ष 2020-21 के लिए 1225 हेक्टेयर का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। कृषि फसल की सिचाई के लिए ड्रिप विधि से कुल 212 हेक्टेयर का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसमें लघु सीमांत किसानों के लिए 112 व अन्य के लिए 100 हेक्टेयर शामिल है। पोर्टेबल स्प्रिंकलर से सिचाई के लिए कुल 380 हेक्टेयर का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसमें लघु सीमांत के लिए 200 व अन्य के 180 हेक्टेयर शामिल है। इसी प्रकार औद्यानिक फसल की सिचाई के लिए ड्रिप विधि के लिए 40 हेक्टेयर का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसमें से 20 लघु सीमांत व 20 अन्य किसानों के लिए शामिल है। इसी प्रकार पोर्टेबल स्प्रिंकलर सिचाई के लिए कुल 543 हेक्टेयर का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसमें लघु सीमांत किसानों के लिए 245 व अन्य के लिए 298 हेक्टेयर का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस विधि से सिचाई करने में किसानों को सिचाईं लागत कम होगी। इसके लिए किसानों को मशीन लगाने के लिए अनुदान सरकार द्वारा दिया जाएगा। स्प्रिंकलर में एक हेक्टेयर में 30 पाइप की जरूरत होती है। इसे लगाने के बाद खेतों की सिचाई कम पानी की लागत में भी कर सकेंगे। इससे जल भी बचेगा और अन्न भी अधिक उपजेगा।

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    जितनी जरूरत उतना पानी

    सूक्ष्म सिचाई प्रणाली के दो अवयव है। इसमें ड्रिप यानी टपक विधि एवं दूसरा स्प्रिंकलर विधि है। ड्रिप विधि के प्रयोग के लिए किसानों को तैयार खेत में पहले पाइप बिछाना पड़ता है। पाइप में जगह-जगह पर छेद कर दिया जाता है। छेद के माध्यम से फसल के जड़ों में पानी जाता है। इस विधि से पटवन करने पर 95 प्रतिशत तक पानी की बचत होती है। किसान खाद व दवाई भी डाल सकते हैं। इससे पोषक तत्व की बर्बादी कम होती है। वहीं स्प्रिंकलर विधि के तहत खेत के बीच में पाइप बिछाकर झरना लगा दिया जाता है। झरना खेत के चारों तरफ घूम-घूमकर पानी का छिड़काव करता है। यानी जितनी पानी की जरूरत होती है, मिलता रहता है।

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    किसानों को खतौनी की नकल के साथ ऑनलाइन आवेदन करना होगा। इसके बाद उसकी दूसरी प्रति एक फोटो, आधार कार्ड, बैंक की पासबुक की फोटो कापी व खतौनी की नकल के साथ कार्यालय में जमा करना होगा।

    फोटो ..सुभाष कुमार, जिला उद्यान अधिकारी मऊ।