प्रेम से प्रकट होते हैं भगवान
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नौसेमरघाट (मऊ) : भगवान प्रेम से प्रकट होते हैं, पर प्रेम कैसे प्रकट हो, प्रेम प्रकट होने में तीन चीजें बाधक हैं। पहला अनृत यानि झूठ। जीवन में जब झूठ का बोलबाला हो जाता है तब प्रेम का प्राकट्य नहीं होता। दूसरा अनृत्य यानि रागहीनता। जिस व्यक्ति के जीवन में राग नहीं है, जिसके पैरों में भक्ति के घुंघरू नहीं बंधे। जिसके जीवन में रस नहीं है, वहां प्रेम प्रकट नहीं होता। तीसरा अनित्य भाव यानि हम यह मान बैठे हैं कि यहां नित्य कुछ भी नहीं है। सब नाशवान है। यह अनित्य भाव भी प्रेम प्रकट होने में बाधक है। आनंद तो नित्य है, जब इसकी स्थापना हमारे हृदय में हो तब तो प्रेम प्रकट हो। यह कहना है लखनऊ से पधारे संत रामेश भाई शुक्ल का। वह रैनी में चल रही रामकथा में भक्तों के समक्ष प्रेममयी अमृतवाणी की वर्षा कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि रामजी अयोध्या में अवतरित हुए। अयोध्या का आध्यात्मिक अर्थ है युद्धमुक्त। यानि हम चाहते हैं कि हमारे जीवन में प्रभु राम प्रकट हों तो हमें अपने जीवन को अयोध्या यानि तकरार मुक्त बनाना होगा। रामजी का अवतार दशरथ के यहां हुआ। दशरथ का तात्पर्य है दस इंद्रियों से युक्त यह शरीर यानि रथ। इन इंद्रियों पर संयम की लगाम लगाकर जो अपने शरीर को सुमार्ग पर चलाएगा, उसी के यहां राम जन्म लेंगे। इसके विपरीत जिसकी दसों इंद्रियां उस पर प्रभावी हैं, वह दशानन है। ऐसे व्यक्ति का तो नाश ही होना है।
श्री शुक्ल ने बताया कि श्रीराम के जन्म के लिए तीन माताएं भी चाहिए। कौशल्या यानि ज्ञान, सुमित्रा यानि भक्ति और कैकेयी यानि कर्म। जीवन में ज्ञान, भक्ति और सुकर्म का संगम होने पर ही प्रभु का अवतार होगा। रामजी का अवतार नवमी को हुआ। नवमी अर्थात नवधा भक्ति। जिसके जीवन में नौ प्रकार की भक्ति है, उसी के यहां रामजी प्रकट होते हैं।
कथा आयोजक जेके उपाध्याय का कहना है कि माता-पिता से बढ़कर इस दुनिया में कुछ भी नहीं है। उनकी संतुष्टि ही सबसे बड़ी पूजा है। यह हमारे संतों की वाणी है। उन्होंने कथा में आए जितेंद्र त्रिपाठी, माधव पांडेय, शिवाश्रय राय, डॉ. आरके सिंह, दिनेश राय, त्रिपुरारी राय, देवेंद्र प्रताप यादव, बुद्धिराम यादव आदि समेत सभी भक्तों को धन्यवाद ज्ञापित किया।
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