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    Yamuna Expressway Accident : हाथों में अपनों के जले शव, रोते हुई बोले, हमारा तो अब सब कुछ ही हो गया खत्म... 

    Updated: Wed, 24 Dec 2025 02:00 AM (IST)

    कानपुर निवासी अली अब्बास के लिए जीवन का सबसे दुखद दिन तब आया, जब यमुना एक्सप्रेसवे हादसे में मारे गए उनके पिता सलीम रिजवी का पूरी तरह जल चुका शव पोस्ट ...और पढ़ें

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    जागरण संवाददाता, मथुरा। कानपुर के अली अब्बास के जीवन में शायद इससे बुरा दिन कभी नहीं आया होगा। पोस्टमार्टम हाउस पर दो बाडी बैग में पूरी तरह जल चुके पिता सलीम रिजवी का पार्थिव शरीर था। बैग को थामते हाथ कांपने लगे। कभी नहीं सोचा था कि पालनहार का शव इस तरह मिलेगा। साथ लाए ताबूत में पिता के दो भागों में बंटे अवशेष रखे। हाथ लगाते ही अवशेष भी राख की तरह झरने लगे। यह देख आंखें नम हो गईं। यमुना एक्सप्रेसवे हादसे में मारे गए लोगों के स्वजन अपनों का शव पाने के लिए आठ दिन से इंतजार कर रहे थे।

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    स्वजन के आंसू भी रात-दिन रोते-रोते शायद सूख गए। सोमवार रात पुलिस ने अली अब्बास को खबर दी कि उनके पिता के डीएनए की जांच हो गई। रात में ही कानपुर से निकल लिए। सुबह पोस्टमार्टम हाउस पहुंच गए थे।

    रात को फोन आते ही समझ गए खत्म हो गया भाई

    आजमगढ़ के गांव इटौरा बुजुर्ग टंडवा जलाल आलापुर निवासी सुनील 24 वर्ष से संविदा चालक थे। भाई सुभाष ने बताया कि सोमवार रात 11 बजे उनके पास मथुरा से फोन आया। फोन की घंटी बजते ही अहसास हो गया कि हादसे में भाई भी खत्म हो चुका है। भाभी अनीता को बताकर वह स्वजन के साथ मथुरा पहुंच गए और शव लेकर वापस रवाना हो गए।

    पहले नहीं था विश्वास, अब पक्का हो गया

    चंदौसी के हयातनगर जैरोई निवासी पंकज लक्ष्मी होलीडेज की बस चलाते थे। इसी गांव के दूसरे चालक सत्यजीत और हेल्पर प्रमोद भी उसी बस में थे। हादसे में पंकज बस की स्टेयरिंग में फंस गए। वह आग में फंसे तो सत्यजीत और प्रमोद भाग गए। भाई के शव को ले जाते सुभाष कांपते हुए कहा, पहले विश्वास नहीं हो रहा था, अब पक्का हो गया कि भाई अब इस दुनिया में नहीं रहा।

    डीएनए का मिलान हुआ, लेकिन मन को विश्वास नहीं

    कानपुर के सेवा ग्राम कालोनी राधा नगर निवासी अनुज श्रीवास्तव इवेंट मैनेजमेंट का काम करते थे। सामान लेने के लिए कर्मचारी सोनू वर्मा के साथ 15 दिसंबर को दिल्ली के लिए निकले थे। भाई शुभम श्रीवास्तव ने बताया कि भाभी से भाई की आखिरी बात रात 10 बजे हुई थी। पिता उमाकांत और मां लक्ष्मीकांत का डीएनए से मिलान हो गया है, लेकिन अभी भी विश्वास नहीं है कि भाई इस दुनिया में नहीं रहे।

    टिकट बनाने वाले ने दी हादसे की जानकारी

    हमीरपुर के बरुआ गांव निवासी शैलेंद्र दिल्ली के आरटीओ कार्यालय में प्राइवेट काम करते थे। वह दिल्ली में पत्नी रचना उर्फ किरण व बच्चों के साथ रहते थे। भाई नरेंद्र ने बताया कि जहां से टिकट बनवाया था, उसने ही फोन पर जानकारी दी कि बस का सड़क हादसा हो गया है। इसके बाद उन्होंने शैलेंद्र की तलाश की, लेकिन कुछ पता नहीं चला।

    पिता की तबीयत खराब होने पर घर पहुंचे थे सलीम

    इटावा के फ्रेंड्स कालोनी आजाद नगर निवासी सलीम नोएडा में एक एक्सपोर्ट कंपनी में सिलाई का काम करते थे। बेटे कलीम ने बताया कि दादा की तबीयत खराब थी। उन्हें देखने के बाद 15 दिसंबर की रात वापस दिल्ली जा रहे थे।

    माता-पिता को देखने गांव गए थे राघवेंद्र

    मूल रूप से जालौन के कुठाउट अहीर निवासी 30 वर्षीय राघवेंद्र गाजियाबाद के मोहन नगर अर्थला गांव में भाई अनिरूद्ध संग परिवार के साथ किराए पर रहते थे। यहां पर फुटवेयर की दुकान करके दोनों भाई संभालते थे। भाई अनिरुद्ध ने बताया कि राघवेंद्र माता-पिता से मिलने के लिए गांव गए थे। वापस लौटते समय हादसा हो गया।