नेपाल दंगा में फंसे वृंदावन के तीन दंपती, बोले- 'कांप गए थे प्राण, टूट चुकी थी बचने की उम्मीद'
वृंदावन के तीन दंपती नेपाल तीर्थाटन पर गए थे जहाँ उन्होंने दंगों और आगजनी का भयावह दृश्य देखा। काठमांडू और पोखरा में भ्रमण के बाद जनकपुर जाने का कार्यक्रम था लेकिन प्रदर्शनों के कारण उन्हें पोखरा में ही रुकना पड़ा। उन्होंने होटल से निकलने की कोशिश की पर हालात बदतर थे। पुलिस और सेना से मदद न मिलने पर वे छिपकर रहे। बाद में रक्सौल बॉर्डर होते हुए बिहार पहुंचे।

संवाद सहयोगी, जागरण, वृंदावन। वृंदावन से तीन दंपती नेपाल तीर्थाटन के लिए दो सितंबर को गए थे। सबकुछ सामान्य था, बड़े ही आनंद से वे तीर्थाटन करके नेपाल की सैर कर रहे थे। नेपाल प्रवास के अंतिम दिनों में ऐसा भयावह दृश्य देखने को मिला कि जान बचाना भी मुश्किल लगने लगा।
हालांकि नेपाल में हुई आगजनी, दंगों के दौरान तीनों ही दंपती किसी से आंदोलनकारियों ने कुछ नहीं कहा। लेकिन, हालात बदतर देख उन्हें होटल से बाहर निकलना भी दूभर हो गया। ऐसे हालात में वे घर लौटने की भी उम्मीद छोड़ चुके थे। शाम ढलने पर उन्हें मौका मिला तो वह बिहार पहुंचे तब जाकर राहत की सांस ली।
रंगजी मंदिर के समीप रहने वाले अजय अग्रवाल दस सितंबर को नेपाल यात्रा से वापस वृंदावन लौटे। लेकिन, तीन दिन होने के बावजूद उन्हें नेपाल के दंगों का दृश्य आंखों से बार-बार घूम रहा है। सहमे स्वर में अजय अग्रवाल ने जागरण को बताया दो सितंबर को वे अपनी पत्नी, गोपीश्वर मंदिर के समीप रहने वाले विश्वनाथ गुप्ता एवं उनकी पत्नी व अनाजमंडी निवसी धीरज अग्रवाल व उनकी पत्नी दिल्ली हवाई अड्डे से फ्लाइट से शाम सात बजे काठमांडू पहुंच गए।
पशुपतिनाथ के किए दर्शन
तीन दिन तक काठमांडू का भ्रमण किया, पशुपतिनाथ के दर्शन किए। इसके बाद पोखरा में मुक्तिनाथ दर्शन कर भ्रमण किया। जनकपुर जाने का कार्यक्रम तय था। सात सितंबर को पोखरा से निकले ताे शाम चार बजे पोखरा में प्रदर्शन के साथ आगजनी की घटनाएं शुरू हो गईं। ये देख सभी का दिल दहल गया। दंगे देखकर हम लोगों ने अपना कार्यक्रम बदला और पोखरा से एक घंटे चलने के बाद चितवन नेशनल पार्क के समीप चितवन नेशनल रिजार्ट में रुक गए।
यहां से सुबह हमें जनपुर निकलना था। लेकिन, दंगे, आगजनी को देख कार्यक्रम रद कर दिया। बोले, हमें केवल यही लग रहा था कैसे भी हम यहां से निकल जाएं। लेकिन, कोई रास्ता हमारे सामने नहीं था। सुबह हमने नौ बजे होटल से चेकआउट किया और सड़क पर आए तो आगजनी हो रही थी, उग्र प्रदर्शन हो रहा था। ये देख हम फिर लौटकर रिजोर्ट चले गए।
तीन घंटे बाद गांव के रास्ते पंद्रह किमी पैदल ही आगे बढ़ते रहे। जब एकबार फिर सड़क पर पहुंचे तो उग्र प्रदर्शन मिला। लोग बसों, मोटरसाइकिल में आग लगा रहे थे। पुलिस और सेना मूकदर्शक बनी थी, कोई कुछ नहीं कर रहा था। हमने पुलिस और सेना के अधिकारियों से निकलने के लिए संपर्क साधा, लेकिन कोई मदद हमें नहीं मिली। फिर हम लोग छिपकर करीब सात घंटे खड़े रहे।
शाम साढ़े सात बजे जब प्रदर्शन शांत हुआ तो हम रक्सोल बार्डर होते हुए बिहार पहुंचे और राहत की सांस ली। यहां आकर लगा कि अब जान बच जाएगी। यहां से दरभंगा होते हुए दस सितंबर को वृंदावन आ गए। आज भी वहां का दृश्य आंखों में बार-बार आ रहा है। यह देख दिल कांप उठता है।
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