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    गोवर्धन पर्वत पर बना श्रीनाथजी मंदिर, जहां अष्टछाप के काव्य गूंजते हैं आज भी

    By Tanu GuptaEdited By:
    Updated: Thu, 03 Sep 2020 07:29 PM (IST)

    विलुप्त होने के कगार पर है गोवर्धन में अष्टछाप कवियों के समाधि स्थल। एसडीएम राहुल यादव ने संरक्षण को लेखपालों से मांगी रिपोर्ट।

    गोवर्धन पर्वत पर बना श्रीनाथजी मंदिर, जहां अष्टछाप के काव्य गूंजते हैं आज भी

    मथुरा, रसिक शर्मा। अष्टछाप यानी उन महान कवियों का संग्रह जो पद सुनाकर श्रीनाथजी प्रभु को रिझाते थे। अष्टछाप के कवियों के इतिहास से भावी पीढ़ी को अवगत कराने के लिए एसडीएम राहुल यादव ने लेखपालों को निर्देश दिए हैं। विलुप्त होते इनके समाधि स्थलों को सहेजने के साथ- साथ इनके इतिहास की जानकारी देते बोर्ड श्रद्धालुओं को स्वर्णिम काल से अवगत कराएंगे।      

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    धार्मिक इतिहास में अंकित है कि बल्लभकुल आचार्य महाप्रभु बल्लभाचार्य जी के सानिध्य में साहित्य और काव्य के पहरेदार बन श्रीनाथजी की अष्टयाम सेवा में अष्टछाप के कवि पद सुनाकर श्रीनाथजी प्रभु को रिझाते थे। बल्लभाचार्य जी ने श्रीनाथजी को पद सुनाने के लिए कुम्भनदास जी, सूरदास जी, परमानंद दास जी और कृष्णदास जी की नियुक्ति कीर्तनिया के रूप में की। बल्लभाचार्य जी के सुपुत्र गुंसाई विठलनाथजी ने गोविंद स्वामी, छीत स्वामी, नंददास जी और चतुर्भुजदास जी की भी नियुक्ति कीर्तनिया के रूप में कर दी। इन आठ महान कवियों को गुंसाईजी ने अष्टछाप के कवि की उपाधि प्रदान की। कुम्भनदास जी की प्रथम कीर्तनिया के रूप में नियुक्ति हुई। बल्लभ संप्रदाय की वैष्णव वार्ता में इतिहास के इन साहित्यकारों के स्वर्णिम काल का उल्लेख अंकित है।     गिरिराज प्रभु की प्रत्येक शिला कृष्णलीला की साक्षी है तो ब्रजभूमि की कण कण साहित्य और संगीत से ओत प्रोत है। पर्वत पर बने श्रीनाथजी मंदिर से अष्टछाप का काव्य सुनाई पड़ता है। श्रीबल्लभाचार्यजी एवं गोस्वामी  विट्ठलनाथजी ने ब्रजभाषा के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए अष्टछाप के कवियों को श्रीनाथजी की कीर्तन सेवा में नियुक्त किया। ये महापुरुष इतिहास के पन्नों में अष्टछाप के नाम से अंकित हैं। अष्टछाप का प्रत्येक कवि अपने आप में एक काव्य का समंदर समेटे है। दुनियाभर से उठती काव्य की घटाएं श्रीनाथजी के आंगन में काव्य रस की बारिश करती थीं। पूंछरी में कृष्णदास जी और छीत स्वामी की समाधियों के सिर्फ अवशेष हैं जो कि जल्द विलुप्त होने के कगार पर हैं।

    अष्टछाप के कवि हमारा अद्भुत इतिहास है। भावी पीढ़ी को जानकारी देने के लिए इन महान कवियों के समाधि स्थलों को संरक्षित करना हमारा दायित्व है। इसके लिए योजना तैयार की गई है। लेखपालों की टीम इन स्थलों का सर्वे कर रिपोर्ट सौंपेगी। कुछ स्थल राजस्थान सीमा में हैं। संबंधित अधिकारियों से बात कर योजना तैयार की जाएगी।

    राहुल यादव, एसडीएम गोवर्धन