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    Vrindavan News: संत प्रेमानंद युवाओं को सद्मार्ग दिखा रहे हैं... जगद्गुरु रामभद्राचार्य से नाराज संत समाज

    वृंदावन में जगद्गुरु रामभद्राचार्य द्वारा संत प्रेमानंद पर की गई टिप्पणी से संत समाज में नाराजगी है। संतों का कहना है कि संत प्रेमानंद युवाओं को सद्मार्ग दिखा रहे हैं ऐसे में उन पर टिप्पणी करना उचित नहीं है। संतों ने यह भी कहा कि एक संत को दूसरे संत की बुराई नहीं करनी चाहिए इससे सनातन धर्म का ह्रास होता है।

    By Vipin Parashar Edited By: Abhishek Saxena Updated: Tue, 26 Aug 2025 09:17 AM (IST)
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    जगद्गरु रामभद्राचार्य और संत प्रेमानंद की तस्वीर। फाइल

    संवाद सहयोगी, जागरण, वृंदावन। पद्मविभूषण जगद्गरु रामानंदाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य द्वारा संत प्रेमानंद पर की गई टिप्पणी से संत समाज में नाराजगी है। संतों का कहना है सनातन धर्म के उत्थान के लिए संत प्रेमानंद जिस प्रकार युवाओं पर अपना प्रभाव छोड़ रहे हैं और उन्हें सद्मार्ग पर चलने की राह दिखा रहे हैं।

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    ऐसे संत पर जगद्गुरु की टिप्पणी निंदनीय है। ये सनातन धर्म के विपरीत है। एक संत को दूसरे संत की बुराई नहीं करनी चाहिए। ऐसे में सनातन विरोधियों को ऊर्जा मिलती है और सनातन धर्म का ह्रास होता है।

    संत बोले- जगद्गुरु की टिप्पणी निंदनीय, ये सनातन धर्म के विपरीत

    इंटरनेट मीडिया पर पोडकास्ट में जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य ने एक दिन पहले संत प्रेमानंद के बारे उनकी किडनी खराब होने के बावजूद सनातन धर्म का प्रचार करने पर सवाल में कहा था कि संत प्रेमानंद अगर संस्कृत में एक श्लोक भी बोलकर दिखा दें तो वे उन्हें चमत्कारिक मानेंगे।

    हालांकि जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने संत प्रेमानंद को अपने बालक के रूप में भी वार्ता के दौरान स्वीकार किया था। लेकिन, ये भी कहा कि संत प्रेमानंद राधावल्लभीय संप्रदाय से हैं, अगर वे राधासुधानिधि का एक श्लोक भी बोलकर दिखा दें तो वे उन्हें चमत्कारिक मानेंगे। इस टिप्पणी के बाद ब्रज के संतों में जगद्गरु के इस बयान पर आक्रोश उत्पन्न हो गया।

    संतों का कहना है कि जगद्गुरु को इस तरह की टिप्पणी से बचना चाहिए। मीडिया में इस तरह की टिप्पणी जाने पर सनातन विरोधियों को ऊर्जा मिलती है।

     कहते हैं संत:

    जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने संत प्रेमानंद पर जो टिप्पणी की है वह शोभनीय नहीं है। चूंकि संत प्रेमानंद कलियुग के दिव्य संत हैं, जो हमेशा पाखंड का विरोध करते हैं। लाखों युवक-युवतियों को बुरे कर्मों से सद्मार्ग पर लाने का काम किया। ऐसे संत पर टीका टिप्पणी करना बिल्कुल शोभनीय नहीं है। वे महान ज्ञानी हैं, इसका हम समर्थन करते हैं। इसका मतलब ये नहीं कि ज्ञान के अहंकार में किसी संत के बारे में कुछ भी बोलना आपको शोभा नहीं देता है। -संत अभिराज महाराज।

    संत प्रेमानंद के बढ़ते वैभव व लोकप्रियता को सहन न करते हुए जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने अनावश्यक विलाप कर रहे हैं। चूंकि इन्हें दिखाई दे दे रहा है कि संत प्रेमानंद समाज में सुधार कर रहे हैं। ये अपनी बात करते हैं। लेकिन, जो वास्तव में संत प्रेमानंद कर रहे हैं, उसे जगद्गरु सहन नहीं कर रहे हैं। उन्होंने तो तुलसीदास की हनुमान चालीसा व रामायण पर भी आक्षेप लगाए हैं। दूसरे को गिराने के लिए वे दूसरे की जड़ काट रहे हैं, ये सनातन धर्म के लिए उचित नहीं है। - संत रासबिहारीदास।

    संत प्रेमानंद के प्रवचन लोगों को अच्छे लग रहे हैं, देश दुनिया के लोग उनसे प्रेरणा ले रहे हैं। आध्यात्म के मार्ग पर युवा चल रहे हैं। संत प्रेमानंद की हर बात लोगों को अच्छी लगती है, तभी तो उनका अनुसरण कर रहे हैं। संत प्रेमानंद के प्रवचन ऐसे हैं कि सनातन धर्म और भी पुष्ट होगा। ऐसे ही युवा उनके अनुयायी नहीं बन रहे हैं। इस तरह की वार्ता करना अनुचित है। संत प्रेमानंद के प्रवचन लोगों को प्रभावित कर रहे हैं। - संत मोहित महाराज।

    जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने संत प्रेमानंद के बारे में कहा है कि वे मेरे सामने संस्कृत का एक शब्द भी नहीं बोल पाएंगे। वे चमत्कारिक नहीं हैं। जगद्गरु का इतना घमंड अच्छा नहीं है। उनकी उम्र भी हो चुकी है। संत प्रेमानंद आज युवाओं के दिलों की धड़कन हैं। उन्होंने युवाओं में इतना बदलाव किया है कि जो युवा उल्टे सीधे मार्ग पर चल रहे थे, वे सद्मार्ग पर चलने लगे हैं।

    संत प्रेमानंद ब्रज की शान हैं। किसी संत के बारे में ऐसा बोलना उचित नहीं। संत प्रेमानंद ने कभी नहीं कहा वे चमत्कार करते हैं, उन्होंने केवल इतना कहा पाखंड से दूर रहिए। राधानाम का जप करिए। -आचार्य अनमोल शास्त्री।