17 हजार तीन सौ दंडवत में होती गोवर्धन दंडवती परिक्रमा
संवाद सूत्र, गोवर्धन: सात कोस में विराजमान पर्वतराज गोवर्धन भगवान श्रीकृष्ण की ब्रज लीलाओं का प्रमाण हैं। यहां विदेशी भक्त भी गिरिराजजी की सात कोस यानी 21 किमी की परिक्रमा कर मनोकामना पूर्ण करने को झोली फैलाते हैं। श्रद्धालु विभिन्न तरीके से परिक्रमा कर प्रभु की भक्ति करते हैं। इनमें पैदल परिक्रमा, दंडवती परिक्रमा, दुग्धधार परिक्रमा, धूप परिक्रमा मुख्य रूप से लगाई जाती है। गोवर्धन पैदल परिक्रमा अनवरत चलती रहती है। प्रत्येक महीना में आने वाली पूर्णिमा पर लाखों लोग पैदल परिक्रमा लगाते हैं।
संवाद सूत्र, गोवर्धन: सात कोस में विराजमान पर्वतराज गोवर्धन भगवान श्रीकृष्ण की ब्रज लीलाओं का प्रमाण हैं। यहां विदेशी भक्त भी गिरिराजजी की सात कोस यानी 21 किमी की परिक्रमा कर मनोकामना पूर्ण करने को झोली फैलाते हैं। श्रद्धालु विभिन्न तरीके से परिक्रमा कर प्रभु की भक्ति करते हैं। इनमें पैदल परिक्रमा, दंडवती परिक्रमा, दुग्धधार परिक्रमा, धूप परिक्रमा मुख्य रूप से लगाई जाती है।
गोवर्धन पैदल परिक्रमा अनवरत चलती रहती है। प्रत्येक महीना में आने वाली पूर्णिमा पर लाखों लोग पैदल परिक्रमा लगाते हैं। इसमें लोग जूते-चप्पल उतारकर नंगे पैर परिक्रमा करते हैं। दुग्धधार परिक्रमा में भक्त हाथों में मिट्टी के बर्तन में दूध भरकर चलते हैं। मिट्टी के बर्तन में नीचे की तरफ छेद होता है। इसमें कुशा (एक तरह की घास) लगी होती है। छेद से दूध की धार निकलती रहती है। इसमें करीब 40 से 45 लीटर दूध लग जाता है। धूप परिक्रमा में भक्तगण मिट्टी के बर्तन में जलता हुआ गोबर का उपला डालकर हवन में प्रयुक्त होने वाली सुगंधित धूप डालते हैं।
इनमें सबसे कठिन दंडवती परिक्रमा है। इसमें भक्त गिरिराज प्रभु की 21 किमी लंबी परिक्रमा दंडवत करते हुए लेटकर लगाते हैं। इसमें एक बार लेटकर सर और आंखों को ब्रजरज से स्पर्श कर प्रभु को दंडवत करते हैं। हाथ की अंगुलियों से पैर की अंगुलियों तक की लंबाई की दंडवत एक दंडवती में आती है। निशान के रूप में हाथों में छोटा सा पत्थर अथवा नारियल रखते हैं। लंबा हाथकर लेटने के बाद निशान को वहीं छोड़ देते हैं। फिर निशान के बाद अगली दंडवती करते हैं। दंडवती के निशान से पैदल आगे नहीं जाना धार्मिक परंपरा में शामिल है। यह अमूमन सात दिन में पूरी हो जाती है। इसमें साबुन व तेल का प्रयोग निषेध माना गया है। दूध पीना भी वर्जित है। हालांकि चाय को मान्यता मिली हुई है। कई भक्तों ने निशानी के लिए एक रुपये के सिक्के का भी प्रयोग किया। प्रत्येक दंडवती पर एक रुपये का सिक्का छोड़ा गया। जिसकी कुल राशि 17300 रुपये बैठी। यानी पर्वतराज की दंडवती परिक्रमा में 17 हजार 300 बार दंडवत करनी पड़ती है। वैसे तो परिक्रमा कहीं से भी प्रारंभ हो जाती है, लेकिन समापन उसी जगह पर होगा जहां से परिक्रमा शुरू होगी।
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