मथुरा मूर्ति कला को आंचल में समेटे है संग्रहालय
बौद्ध मूर्तिकला के लिए दुनिया में प्रसिद्ध है मथुरा का संग्रहालय

जागरण संवाददाता, मथुरा : मूर्तिकला को अपने आंचल में समेटे राजकीय संग्रहालय बौद्ध मूर्तियों के लिए दुनिया में प्रसिद्ध है। संग्रहालय में बौद्ध, शैव, जैनियों के पूजा स्थल होने के भी यहां प्रमाण हैं। इसलिए इसकी गणना सप्तपुरियों में की जाती है। नंद, मौर्य, शुंग, क्षत्रप, कुषाण वंश के शासन काल यहां होने के साक्ष्य इसी संग्रहालय में हैं। विभिन्न धर्मों से संबंधित हजारों मूर्ति यहां बनाई गई। ये कार्य 12वीं सदी तक जारी रहा।
कुषाण काल और गुप्तकालीन की कलाकृतियां की संग्रहालय में अधिक संख्या है। शुंगकालीन, मातृदेवी, कामदेव, फलक, गुप्तकालीन नारी, विदूषक, कार्तिकेय, सांचे, सिक्के में अंकित बलराम, आहत मुद्राओं के सांचे गोविद नगर टीले से खोदाई में मिले। कुषाणकालीन सिक्के, धातु की मूर्तियों में कार्तिकेय, देव युगल प्रतिमा, नाग की मूर्तियां, मंदिरों की पिछवाईयां, सांझी चित्र सौंख टीला से प्राप्त हुए हैं। मूर्तियों का सर्वाधिक संकलन सौंख स्थित टीला से किया गया। यहां से 12 हजार मूर्तियां प्राप्त हुईं। प्राप्त मूर्तियों का क्रम बुद्ध, महावीर, मौर्यकाल, शुंगकाल, शक क्षत्रप, उत्तर शुंगवंश, कुषाण काल, गुप्तकाल, पूर्व मध्य काल और उत्तर मध्यकाल है। चीन तक मिले प्रमाण
-लाल चित्तीदार बलुए पत्थर की तराशी मूर्तियां तक्षशिला, सारनाथ, कुशीनगर, श्रावस्ती, भरतपुर, बोध गया, सांची और कौशांबी तक ये कला फैली हुई है। इस शैली के प्रभाव के प्रमाण दक्षिण पूर्व एशिया और चीन तक प्राप्त हुए। ये है विशेषता:
-स्त्री आकृति के अंकन में लावण्य और आकर्षण
-राजपुरुषों की मूर्तियों का निर्माण किया गया
-विदेशी तत्वों का भी सामंजस्य है
-नूतन कला विधाओं का विकास
-मध्यदेशीय कला का अनुसरण और विकास
-प्राचीन यक्ष शैली का अन्य देवी-देवताओं का समन्वय
-प्रतीकों का मानवाकृतियों में रूपांतरण है यहां से चुराई गई मूर्ति
-गोविदनगर टीला, कंकाली टीला, सौंख टीला और सप्तऋषि टीला से मूर्तियां चुराए जाने की आशंका काफी समय से व्यक्त की जा रही है। माना यह जा रहा है कि चुराई गई मूर्तियों को विदेश भेजा गया, लेकिन इसका कोई रिकार्ड स्थानीय संग्रहालय में नहीं है। चालीस साल पहले लौटी चोरी गई एक मूर्ति : मथुरा के संग्रहालय से एक मूर्ति कई साल पहले चोरी हुई। संस्कृति विभाग के अधिकारी करीब चालीस साल पहले विदेश घूमने के लिए गए। उन्होंने ने मथुरा के संग्रहालय में अभय मुद्रा में देवी लक्ष्मी की मूर्ति देखी। तब उन्होंने इसकी जानकारी की तो मालूम हुआ ये मूर्ति मथुरा के संग्रहालय से चोरी की गई थी। करीब चालीस साल पहले ये मूर्ति विदेश से वापस लाई गई, जो संग्रहालय में हैं। धातु का संग्रह:
-158 स्वर्ण सिक्के
-5440 रजत सिक्के
-15481 ताम्र सिक्के
-32 गहने
पाषाण का संग्रह:
5005-पाषाण प्रतिमाएं
-349 धातु की कलाकृतियां
-1280 विविध प्रतिमाएं
-260 मिट्टी के बर्तन
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